मेरे वीसीपीएल और समय प्रबंधन के लेख को जारी रखते हुए, जिसमें मैंने लिखा था कि कैसे कंपनी ने चतुराई से इंतजार किया ताकि प्रतिभूतियों अपीलीय अधिकरण (एसएटी) के न्यायिक सदस्य सेवानिवृत्त हो जाएं और इस वजह से अपील करने से पूर्व एसएटी कार्यसाधक संख्या खो दे[1]। यह भारतीय प्रतिभूति विनिमय मंडल (सेबी) के वीसीपीएल को एनडीटीवी के वास्तविक स्वामी के रूप में स्वीकार करने के एवँ उन्हें 45 दिनों से पहले एनडीटीवी के शेयरों को सार्वजनिक पेशकश द्वारा हासिल करने के विषय पर है[2]।
मेरे पिछले लेख में मैंने लिखा था कि सेबी को यह ध्यान रखना चाहिए कि उनका प्राथमिक दायित्व शेयरधारकों के प्रति है और वे शेयरधारकों के हितों का प्रतिनिधित्व करते हैं। 10 साल तक यातना सहना लंबा समय है। इसे अभी एवँ यहीं खत्म करो। सेबी और एसएटी को एक मिसाल कायम करना चाहिए कि प्रधानमंत्री मोदी के नए कार्यकाल में, व्यासायिक क्षेत्र और अन्य लोग सार्वजनिक शेयरधारकों (पूंजी) के साथ खिलवाड़ नहीं कर सकते। समय आ गया है कि एक व्यक्ति व्यासायिक क्षेत्र में चाहे कोई भी हो, न्याय समान होगा और कोई भी वित्तीय धोखाधड़ी और घोटाले करके बच नहीं सकता।
एसएटी ने 8 अगस्त को सुनवाई क्यों की?
एसएटी की कार्यसाधक संख्या उसी दिन खो गयी थी जब न्यायिक अधिकारी पीठासीन, जे पी देवधर ने अपना पांच साल का कार्यकाल (11जुलाई, 2018) को समाप्त किया। परंतु केवल एक सदस्य रहते हुए भी डॉ सी के जी नायर, ने अवैध रूप से 8 अगस्त को मामले की सुनवाई की और अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाते हुए दोनों पक्षों को तुरंत लिखित बयान दर्ज करने को कहा। तत्पश्चात, उन्होनें सारी परंपराओं को तोड़ते हुए मामले की अगली सुनवाई 13 अगस्त को रखी।
एसएटी के संविधान के अनुसार, केवल एक सदस्य कोई आदेश पारित नहीं कर सकता और ना ही कोई निर्णय ले सकता है। वह सिर्फ मामले की सुनवाई कर सकता है और कार्यवाही जारी रख सकता है। वास्तव में सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायाधिकरण के कार्यकरण पर कई सारे आदेश पारित किए हैं जो इस स्थिति का समर्थन करते हैं।
13 अगस्त को क्या हुआ?
उनकी स्तिथि को स्पष्ट करने के और एसएटी द्वारा वीसीपीएल को शेयरधारकों को भुगतान आरंभ करने को कहने के विपरीत, सेबी ने जवाब देने के लिए अधिक समय की मांग की। अधिक समय किस लिए? उन्होंने अवधारणा बना ली है और बहुत समय से पीड़ित शेयरधारक (40000 लोग) कुछ भुगतान की अपेक्षा कर सकते हैं जब तक सरकार एसएटी नामिका में न्यायिक सदस्य को नियुक्त करते हैं। इसके विपरीत एसएटी के एकमेव सदस्य, डॉ सी के जी नायर, ने मामले की सुनवाई को 14 सितंबर को सूचीबद्ध किया। एक और दिन, एक और विलंब।
अगर मैं गलत नहीं हूँ, वित्त मंत्रालय को यह नियुक्ति करनी चाहिए, जो संयोग से एक से अधिक व्यक्ति द्वारा प्रशासित किया जा रहा है (शायद प्रधानमंत्री बता सके कि वास्तविक वित्त मंत्री कौन है)। मंत्रालय को आने वाले रिक्ति के बारे में कई सालों से जानकारी थी परंतु अब तक कोई कार्यवाही नहीं हुई। मेरा प्रधानमंत्री से आग्रह है कि वे 40000 शेयरधारक, जो 10 वर्षों से पीड़ा सहन कर रहे हैं, की पीड़ा को खत्म करने के लिए उचित कदम उठाएं और एक ईमानदार सेवानिवृत्त न्यायाधीश को एसएटी के अधिष्ठता के रूप में जल्द से जल्द नियुक्त करें।
और विचित्र घटनायें
13 अगस्त को, शिकायतकर्ता एवँ अल्पसंख्यक शेयरधारक, जिसकी 2015 के शिकायत पर सेबी ने कार्यवाही की और 26 जून के आदेश को पारित किया, ने एसएटी में स्वयं को मध्यस्थ के रूप में स्वीकार करने की मांग की। यह महत्वपूर्ण है क्योंकि सेबी का आदेश विकृत था और उसने ठोस वास्तविकताओं की अनदेखी की जिससे रिलायंस इंडस्ट्री लिमिटेड समूह एवँ एनडीटीव्ही के मालिक आसानी से बच निकले। परंतु सबको आश्चर्यचकित करते हुए, एसएटी के एकमेव सदस्य ने अपने सांविधानिक अधिकार पर अतिक्रमण करते हुए स्वयं ही सेबी को बलपूर्वक कार्यवाही यानी आदेश का कार्यान्वयन करने से निरोधक आदेश पारित किया।
और तो और अल्पसंख्यक शेयरधारकों को सुना भी नहीं गया एवँ मामले को 14 सितंबर तक स्थगित किया गया जब यह तय होगा कि क्या शेयरधारक को कोई हक है एवँ कानूनी या अधिस्थति है जिससे वह हस्तक्षेप कर सके और वास्तविक तथ्यों को एसएटी के समक्ष ला सके। सेबी ने दिसम्बर 2016 को शपत पत्र द्वारा दिल्ली उच्च न्यायालय में कहा कि इस मामले में कार्यवाही की गयी क्योंकि इस शेयरधारक ने शिकायत की और जानकारी प्रस्तुत की। वास्तव में, सेबी एवँ उच्च न्यायालय से कई बार प्रार्थना करने पर भी, शेयरधारक को सेबी ने इस मामले में सुना नहीं।
कितनी धनराशि शामिल है?
मेरे कच्ची गणना के अनुसार, वीसीपीएल को 400 रुपये प्रति शेयर के हिसाब से 1.30 करोड़ शेयर को देने थे, जो कुलमिलाकर 500 करोड़ रुपये होते हैं। ब्याज दर उस समय के शेयर के भाव 214 रुपये का लगभग 100% है। इस हिसाब से होता है 200 रुपये का 1.30 करोड़ गुना या 260 करोड़ रुपये। सेबी ने इस पर निलम्बलेख की मांग क्यों नहीं की?
इसके अलावा रॉय दम्पत्ति को कई चूकों जैसे धोखाधड़ी व्यापारों एवँ संवेदनशील मूल्य के अप्रकाशित सामग्री का खुलासा नहीं करना इत्यादि के लिए कदाचित 200 करोड़ रुपये का जुर्माना भी देना होगा। आश्चर्य की बात है कि सेबी रॉय दम्पत्ति के खिलाफ इन आदेशों को रोक रहा है। मेरी सूचना के अनुसार, काफी समय पहले कारण बताओ सूचना जारी कर दिया गया है। चित्र 1 में अब तक की धनराशि दिखाई गयी हैं।
सरकार को क्या करना चाहिए
1. सेबी चुपचाप सारी घटनाओं में प्रेक्षक बन कर रह नहीं सकता और उसे एक सदस्यीय एसएटी के कार्यकरण की कानूनी वैधता का विरोध करना चाहिए था।
2. अब जब सरकारी एजेंसी द्वारा स्वामित्व की जाँच हो चुकी है, सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने कार्यवाही क्यों नहीं की?
3. वित्त मंत्रालय, या यदि वे अब भी यह निर्णय कर रहे हैं कि वित्त मंत्री कौन है, तो प्रधानमंत्री कार्यालय को एसएटी के लिए न्यायिक सदस्य की नियुक्ति पर तुरंत फैसला करना चाहिए। न्याय में देरी का अर्थ है न्याय से इनकार।
एसएटी के 13 अगस्त के आदेशों प्रतियां नीचे दी गई हैं।
Fig 1. SAT ruling Page 1
सन्दर्भ :
[1] VCPL and the art of Time Management – Aug 10, 2018, PGurus.com
[2] NDTV and Roys Fraud, SEBI vindicates PGurus findings in a stinging order against RIL Group co. – Jun 27, 2018, PGurus.com
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