पीटर फ्रेडरिच के गाँधी, हिंदू संगठन आरएसएस और वीएचपी विरोधी लेख का प्रतिउत्तर

आने वाले विश्व हिंदू सम्मेलन, वीएचपी और आरएसएस, ओएमएफआई पर हमले, पर प्रतिनिधि तुलसी गब्बार्ड को दूर रहने का प्रोत्साहन

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पीटर फ्रेडरिच के गाँधी, हिंदू संगठन विरोधी लेख का प्रतिउत्तर
पीटर फ्रेडरिच के गाँधी, हिंदू संगठन विरोधी लेख का प्रतिउत्तर

द्वेष फैलानेवाली वेबसाइट CaravanDaily.Com ने सामान्य रूप में हिंदूओं एवँ खास तौर पर संघ संगठनों के बारे में झूठी खबर फैलाई है(1, 2)। इस लेख के लेखक को कुछ तथाकथित अप्रजातंत्रवादी, अनिर्वाचित, स्वघोषित दक्षिण एशियाई प्रवासी, जो खुद को “प्रगतिशील” हिंदू, सिख, अल्पसंख्यक, मुसलमान, अंबेडकरवादी, पेरियारवादी, देसी इत्यादि का प्रतिनिधित्व करनेवाले गठबंधन बताते हैं, का समर्थन प्राप्त है।

घृणा से अंधे होकर, पीटर फ्रेडरिच दुनियाभर में एम के गाँधी के चित्र एवँ मूर्तियों को हटाने का अभियान चला रहे हैं।

इस झूठी खबर का लेखक सदैव गांधीवादी मार्टिन लूथर किंग जूनियर के आराध्य व्यक्ति पर अपना निशाना साधता है। (3)एम के गाँधी अवश्य ही किंग के आराध्य है क्योंकि इसकी पुष्टि उन्होंने स्वयं की जब उन्होंने कहा “अन्य देशों में मैं पर्यटक बनकर जाता हूँ परंतु जब भी भारत आता हूँ तब तीर्थयात्री बनकर आता हूँ”। जब वे 1959 में भारत आए तो उन्होंने उस समय के अग्रणी गाँधीवादियों से मुलाकात की, गांधी के पुत्र रामदास से भी मिले एवँ गाँधी स्मारक में श्रद्धांजलि अर्पित की। उनके शब्दों में कहें तो भारत की यात्रा का उन पर गहरा प्रभाव पड़ा(4)

परंतु घृणा से अंधे होकर, पीटर फ्रेडरिच दुनियाभर में एम के गाँधी के चित्र एवँ मूर्तियों को हटाने का अभियान चला रहे हैं। उनका दावा है, उसके तथाकथित गाँधी के साउथ अफ्रीका में शुरुवाती कार्यकाल के अनुसंधान के आधार पर, कि गाँधी नस्लवादी थे क्योंकि वे जाहिरा अफ्रीकी लोगों को अवर मानते थे और अफ्रीकियों के वियोजन में विश्वास करते थे। यदि यह सत्य भी हो तो, जो बहुत संदिग्ध है, हमे ये समझना चाहिए कि लोग विकसित कैसे होते हैं। नस्लवादी ईसाई अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था से आए हुए नए व्यक्ति होने के नाते, जिन्होंने उपनिवेशवाद के मुख्य केंद्र यानी लंदन से शिक्षा प्राप्त की थी, किसी को ईसाई अंग्रेजी नस्लवादी प्रकृति के नस्लीय जटिलता से प्रभावित ना होने की अपेक्षा करना विवेकहीन है। वास्तव में, गांधी के स्वीकारोक्ति के अनुसार साउथ अफ्रीका में रहने के बाद वे तेजी से विकसित हुए, और यदि उन्होनें अपने अंग्रेजी ईसाई स्वामियों से कोई पक्षपात में शिक्षा प्राप्त की हो तो वह स्वयं के मर्यादा को प्रतिकूल अपमान से पहुंचे ठेस के साथ चला गया। प्रादेशिक शासन-स्वतंत्रता से खुश आंग्लरागी से पूर्ण स्वतंत्र के प्रिय भारतीय की उनकी उत्क्रांति कोई रहस्य नहीं है और एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक तथ्य है। गाँधी की छवि को नष्ट करने के लिए एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक तथ्य को मोड़ना, अफ्रीकी नागरिक अधिकार नेता के आराध्य और इस प्रकार प्रसिद्ध नेता एवँ उनके आराध्य दोनों के छवि को नष्ट करने का खेल एक ऐसा सांघातिक बुराई का खेल है जो केवल एक ईसाई गोरा ही खेल सकता है। और यह खेल खेलकर वह पूरी दुनिया में ऐसा भद्दा उत्पात मचा रहा है जैसे कोई लहलहाती हरि खेत टिड्डियों द्वारा नष्ट की जा रही हैं।

पूरी दुनिया को अब भी इस संक्रमण के कारण हुए तबाही से उबरना है। वास्तव में, इससे उबरना असंभव है। देशी अमरीकी और देशी ऑस्ट्रेलिया के लोगों का पूर्णतः सत्यानाश हो गया है। हम उन्हें अब केवल टेस्ट ट्यूब के माध्यम से पुनर्निर्माण कर सकते हैं। यहीं नहीं बल्कि जो ईसाई लुटेरे, उपनिवेशवादी, जो स्वयं को दुनिया को सभ्य बनाने वाले बताते हैं, वास्तव में येही अब तक सबसे बड़े संपत्ति के लुटेरे हैं, लोगों की संपत्ति (गुलामी से लेकर अनुबंधित श्रम एवँ सामग्री डकैती तक) एवँ प्राकृतिक संपत्ति (पर्यावरणीय क्षति और प्रजातियों की विलुप्ति)। फिर भी, ना ही उनकी उद्दंडता या उनकी आत्म घोषित नैतिक श्रेष्ठता में कमी आई है। और उनका समर्थन करनेवाले स्व-नफरत सिपाहियों और पश्चिम की नकल करनेवाले न्यागत वानरों की संख्या भी कम नहीं हुई है। मानवता स्टॉकहोम सिंड्रोम से जूझ रही है।

1964 में, वामपन्थीयों के चहेते उस समय के भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा नेहरू ने आरएसएस को सरकारी सेना के साथ प्रदर्शन करने के लिए न्योता दिया जो उनके राष्ट्र सेवा के लिए सम्मान था।

लड़ो या फिर सदैव के लिए नष्ट हो जाओ। यह धर्म या प्रजाति की लड़ाई नहीं है। यह अंतर्राष्ट्रीय कुरुक्षेत्र है धर्म एवँ मानव जाति के अस्तित्व को बचाने के लिए, इससे पहले की यह संक्रमण बचे हुए व्यवहार्य उपजाऊ खेतों को भी नष्ट कर दे। यदि किसी को पसंद हो या नहीं, हिंदू धर्म ही अब तक इस लड़ाई में टिका हुआ है।

यह बैर एवँ झूठी खबर फैलाने वाली वेबसाइट राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से खुश नहीं होगी, क्योंकि आरएसएस मुसलमानों के लिए मुस्लिम मोर्चा नामक विंग चलाती है और इस वजह से नफरती मतशिक्षा के लिए स्रोत सामग्री कम हो जाती है। वे, बेशक ही, विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) के खिलाफ प्रतिहिंसक होंगे क्योंकि शिया मुसलमानों ने उनके राम मंदिर के माँग का समर्थन किया और इससे हिंदू – मुस्लिम एकता बढ़ती है एवँ बांटो और राज करो के अवसर कम हो जाते हैं। बेशक ही वे जड़ से अलग हुए खालिस्तानियों से समर्थन लेने के इच्छुक हैं, वही खालिस्तानी जो बेशर्मी से उन लोगों का समर्थन लेते हैं जिन्होंने उनके गुरुओं पर अत्याचार किया। उनके गुरुओं ने इस्लामवादियों को अपनी भूमि से निकालने एवँ अपने देवताओं और गुरुओं की आराधना करने के पैतृक अधिकारों को पुनः स्थापित करने के लिए सिख धर्म की स्थापना की। खालिस्तानी अपने गुरुओं के त्याग को अपमानित कर रहे हैं एवँ उनके इतिहास और विरासत पर कलंक है। (5)वास्तव में खालिस्तानियों को, सांस्कृतिक हत्यारे होने के कारण, उनके धर्म के अंदर और बाहर किसी भी प्रकार का अधिकार नहीं है क्योंकि हत्यारों को विरासत पर अधिकार नहीं दिया जाता है।

नस्लवादी पेरियार दलित विरोधी था

ये पेरियार (ई वी रामास्वामी नायकर) कौन है? वह एक जातिवादी गालियां बकनेवाला गैर तमिल (परंतु जिसने तमिल लोगों का नेता होने का स्थान हड़प लिया) नस्लवादी था जिसने भारत रत्न डॉ बाबासाहेब अंबेडकर के आर्यन-द्रविड़ियन कल्पित कथा के अनुसंधान को नकारा। अंबेडकर ने इस कल्पित कथा को ईसाई यूरोपियन गोरों की मनगढ़ंत कहानी बतायी।(6) ई वी रामास्वामी नायकर दलित विरोधी था जिसने कहा कि दलित महिलाओं के अच्छे कपड़े पहनने एवँ दलित युवाओं के शिक्षण प्राप्ति जिससे उद्यम के लिए प्रतियोगिता में वृद्धि ही मुद्रास्फीति की दर और बेरोजगारी का कारण है। यह उन्ही के शिष्यों ने उनकी खिल्ली उड़ाते हुए प्रकाशित किया। इसके पश्चात, बेईमान वामपन्थी बेशर्मी से ईवीआर को निचले वर्गों के लिए लड़ने वाला बताते हैं या यह झूठ फैलाते हैं कि अंबेडकर उनके इस राय का समर्थन करते थे। वास्तव में अंबेडकर ने 1939 में आरएसएस शिविर में शामिल होकर उस संगठन के जातिविहीन प्रकृति की तारीफ की। 1964 में, वामपन्थीयों के चहेते उस समय के भारतीय प्रधानमंत्री नेहरू ने आरएसएस को सरकारी सेना के साथ प्रदर्शन करने के लिए न्योता दिया जो उनके राष्ट्र सेवा के लिए सम्मान था।(7, 8)

ईसाई समुदाय, कुछ जगहों में छूतों और अछूतों में विभाजित है। सभी जगहों में ऊँचे एवँ नीचे वर्गों में विभाजित है

भारत रत्न डॉ अंबेडकर स्पष्टतः इस्लाम और मुसलमान को नापसंद करते थे

वास्तव में भीमजी ने मुसलमानों और इस्लाम की आलोचना करते हुए एक पूर्ण निबंध लिखा। उसमे उन्होनें श्री पूल को उद्धरण करते हुए कहा “इसलिए कुरान, गुलामी के मामले में, मानवता विरोधी है। और हमेशा की तरह महिला ही इसका शिकार है”। भीमजी इस्लाम का महिलाओं के प्रति व्यवहार से नफरत करते थे और उन्होंने कहा “दुनिया में सबसे लाचार व्यक्ति मुसलमान महिला है… वास्तव में इस्लाम में हिंदू समाज के सारी बुराइयां हैं और कुछ अधिक बुराइयां भी है। और वह अधिक बुराई महिलाओं के लिए अनिवार्य पर्दा व्यवस्था है…यह बुर्का में घूमनेवाली महिलाएं भारत के रास्तों पर दिखनेवाले दृश्यों में से सबसे घृणित दृश्य है“।(9)

असल में, भीमजी ने कभी भी मुसलमानों पर भरोसा नहीं किया और अपने दलित बन्धुओं से भारत के विभाजन पर यह सलाह दी : “मैं पाकिस्तान में शोषण सह रहे अनुसूचित जाति के लोगों को जो कोई साधन मिले उसके माध्यम से भारत आने का आग्रह करना चाहता हूं। दूसरी बात जो मैं कहना चाहता हूं वह ये है कि अनुसूचित जाति के लोगों का , यदि वे पाकिस्तान में हो या हैदराबाद में, मुसलमानों पर या मुस्लिम लीग पर भरोसा करना आत्मघातक होगा। अनुसूचित जातियों को मुसलमानों को अपना मित्र मनाने की आदत हो गयी केवल इस कारण से कि वे जातीय हिन्दुओं को नापसंद करते हैं। यह एक गलत दृष्टिकोण है“। “हैदराबाद के निज़ाम का समर्थन ना करें और भारत के दुश्मन के समर्थक का समर्थन करके समुदाय को लज्जित ना करें“।(10)

ईसाइयत ने जन्म से जाति और अस्पृश्यता का निर्माण किया

भीमजी की ईसाईयों के लिए कम कटु टिप्पणी नहीं है। अफसोस की बात है, कि उनके पास वह जानकारी नहीं थी जो अब हमारे पास है, जिससे यह साबित होता है कि ईसाई अंग्रेजों ने जन्म से जाति का निर्माण किया। (11, 12)फिर भी उन्होनें ईसाइयत के मिथ्या को समझ लिया और निम्नलिखित बयान दिए:

“जब एक भारतीय से पूछा गया कि ईसाइयत और ईसाईयों पर उसकी क्या राय है तो उसने अपने टूटे हुए अंग्रेजी में बताया – ईसाई धर्म, शैतानी धर्म; ईसाई पीते बहुत, गलत बहुत करते, बहुत मारते, दूसरो पर बहुत अत्याचार करते” – और कौन कह सकता है कि यह विचार तथ्यों के विपरीत था?(13)

* “ब्राह्मण और गैर ब्राह्मण ईसाई है। गैर ब्राह्मण ईसाईयों में मराठा, महार, मांग और भंगी ईसाई है। इसी प्रकार, दक्षिण भारत में पराया, मल्ला और मडीगा ईसाई है। वे अंतर्जातीय विवाह नहीं करते और अंतर्जातीय भोजन भी नहीं करते”(13)

* “यह निश्चित है कि ईसाइयत कई शताब्दियों से स्थापित संस्था होने के बावजूद यूरोप में दासत्व कायम था। यह एक मुंहतोड़ तथ्य है कि अमेरिका में हबशियों की गुलामी समाप्त करने के लिए ईसाइयत काफी नहीं थी(13)

* “क्या ईसाइयत अछूतों को आगे बढ़ने को प्रोत्साहित करता है? मुझे विवशता से कहना पड़ रहा है कि वह ऐसा नहीं करता… समानता। ईसाई समुदाय संमिश्रित समुदाय है। कुछ जगहों में वह छूतों और अछूतों में विभाजित है। सभी जगहों में ऊँचे एवँ नीचे वर्गों में विभाजित है”(13)

अंतिमतः, पीनोचे को छोड़ कर सभी तानाशाही, फ़ासिस्टवादी वामपन्थी पारिस्थितिकी तंत्र से आए हैं और ईसाई गिरजाघर से बारीकी से संबद्धित रहे हैं। यह एक ऐतिहासिक तथ्य है। उदाहरणार्थ, नाजी का विस्तार किया जाए तो राष्ट्रीय समाजवादी बनता है। फिर भी हिंदू अधिकार कार्यकर्ताओं और संगठनों को “दक्षिण पंथ” के नाम पर एक करना और उन्हें नरसंहार नस्लवादी ईसाइयत या नाजी हिटलर जैसे वामपन्थी पागलों या ईसाई कॅथलिक फासिस्ट मुसोलिनी के साथ जोड़ना आपराधिक मानहानिकारक है और ऐसे बौद्धिक धोखेबाजों एवँ नरसंहार के अपराधियों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही करनी चाहिए ताकि उन्हें सबक सिखाया जा सके।(14, 15)

Note:
1. The views expressed here are those of the author and do not necessarily represent or reflect the views of PGurus.

सन्दर्भ:

  1. About us CaravanDaily.com. Available at: http://caravandaily.com/portal/aboutus/ [Accessed August 31, 2018].
  2. US Congresswoman Tulsi Gabbard Urged to Sever Ties with Indian “Hate Groups” (2018) Available at: http://caravandaily.com/portal/us-congresswoman-tulsi-gabbard-urged-to-sever-ties-with-indian-hate-groups/ [Accessed August 31, 2018].
  3. OFMI (2018) Canadian Students Demand Removal of “Racist” Gandhi Statue. Available at: https://www.sikh24.com/2018/04/12/canadian-students-demand-removal-of-racist-gandhi-statue/#.W4kiIJMzand [Accessed August 31, 2018].
  4. What King Learned from Gandhi – Los Angeles Review of Books Los Angeles Review of Books. Available at: https://lareviewofbooks.org/article/what-king-learned-from-gandhi/ [Accessed August 31, 2018].
  5. Nayyar S How The British Sowed The Seeds For Khalistani Movement Before Indians Took Over: Part 1. Available at: https://swarajyamag.com/minibooks/how-the-british-sowed-the-seeds-for-khalistani-movement-before-indians-took-over-part-1 [Accessed August 31, 2018].
  6. Ambedkar BR (1946) Who Were the Shudras? How they came to be the Fourth Varna in the Indo-Aryan Society (Thackers).
  7. Ma. Venkatesan (2016) இந்துத்துவ அம்பேத்கர் / Hindutva Ambedkar (Kizhakku Pathippagam) Available at: https://www.amazon.in/Hindutva-Ambedkar-Ma-Venkatesan/dp/9384149675/.
  8. வெங்கடேசன்ம. (2009) பெரியாரின் மறுபக்கம் – பாகம் 15: தாழ்த்தப்பட்டோருக்குப் பாடுபட்டவரா ஈ.வே.ராமசாமி நாயக்கர்? | தமிழ்ஹிந்து. Available at: http://www.tamilhindu.com/2009/09/periyar_marubakkam_part15/ [Accessed March 7, 2018].
  9. Ambedkar BR (1941) Thoughts on Pakistan (Thacker and Company Limited).
  10. Keer DV (1954) Dr. Ambedkar: life and mission (Popular Prakashan) Available at: https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.532476.
  11. Murali KV (2017) Mathematically, caste-by-birth could not have existed in Bharat. Available at: https://therationalhindu.com/mathematically-caste-by-birth-could-not-have-existed-in-bharat-c7be1f38af89 [Accessed November 7, 2017].
  12. Murali KV The Curious Case Of Procreating Castes And Ghost Castes. Available at: https://swarajyamag.com/politics/the-curious-case-of-procreating-castes-and-ghost-castes [Accessed August 6, 2018].
  13. Ambedkar BR (4 October, 2003) Dr. Babasaheb Ambedkar : Writings and Speeches ed Moon V (Dr. Ambedkar Foundation, Ministry of Social Justice & Empowerment, Govt. of India, 15, Janpath, New Delhi – 110 001).
  14. Kertzer DI (2014) The Pope and Mussolini: The Secret History of Pius XI and the Rise of Fascism in Europe (Oxford University Press).
  15. Cornwell J (2000) Hitler’s pope: the secret history of Pius XII (Penguin).

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