काफिर, सबसे जातिवादी शब्द

काफिर शब्द एक तुच्छ और अपमानजनक शब्द है जिसका इस्तेमाल आमतौर पर गैर-मुस्लिमों के लिए किया जाता है। यह लगभग मुसलमानों द्वारा गाली के रूप में उपयोग किया जाता है।

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काफिर, सबसे जातिवादी शब्द
काफिर, सबसे जातिवादी शब्द

काफिर शब्द कई मुसलमानों को प्रेरित कर रहा है कि वे अन्य गैर-मुस्लिमों के साथ खुद को एकीकृत न करें।

पिछले 1300 या इतने वर्षों के इस्लामिक इतिहास के दौरान गैर-मुसलमानों के खिलाफ विभिन्न इस्लामी शासकों द्वारा काफिर शब्द और काफ़िरों के लिए सजा का औचित्य बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया गया है। गैर-मुस्लिमों को जबरन इस्लाम के अधीन करने के लिए जिज़्या के रूप में कुख्यात कर थोपा गया, काफिरों के प्रति अवर्णनीय हिंसा और कई बार गैर-मुस्लिमों या काफिरों के खिलाफ हिंसा का औचित्य इस्लामी आक्रमणकारियों द्वारा किया गया। जिज़्या शब्द फारस से आया है जब अरबी इस्लाम ने ससनिद साम्राज्य पर आक्रमण किया था। अरबी मुस्लिम आक्रमणकारियों ने करों की सस्सानीद प्रणाली को अपनाया और उन लोगों पर एक विशेष कर थोपा, जिन्होंने उनके शासन को स्वीकार नहीं किया। जिन लोगों पर यह कर लगाया गया था उन्हें धिम्मी कहा जाता था। इस प्रकार काफिर शब्द दुनिया के इतिहास में अब तक का सबसे नस्लवादी और अपमानजनक शब्द है।

इस्लाम मुसलमानों और गैर-मुसलमानों के बीच बहुत मजबूत अंतर बनाता है। जहाँ भी इस्लाम धर्म का पालन होता है, वहां यह अंतर अक्सर मुस्लिम समुदायों के द्वीप बना देता है। अंतत: इस्लामी शासकों का लक्ष्य सभी को इस्लाम के प्रति अधीन बनाना है। इस्लाम के अनुसार आस्था के छह प्रमुख तत्व हैं ईश्वर, उनके दूत, फ़रिश्ते, प्रकट किताबें, पुनरुत्थान का दिन (कयामत) और नियति। जो कोई भी उन पर विश्वास नहीं करता है या विश्वासों की एक वैकल्पिक प्रणाली को अपनाता है उसे काफिर कहा जाता है।

ब तक इस परिभाषा को हल नहीं किया जाता है, तब तक मुस्लिम और गैर-मुस्लिम समुदायों के बीच कोई एकीकरण नहीं होगा।

काफिर शब्द एक तुच्छ और अपमानजनक शब्द है जिसका इस्तेमाल आमतौर पर गैर-मुस्लिमों के लिए किया जाता है। यह लगभग मुसलमानों द्वारा गाली के रूप में उपयोग किया जाता है। जबकि कई शिक्षित मुसलमान भी इस शब्द को सभी इस्लामी ग्रंथों से हटाना चाहते हैं, लेकिन चरमपंथी इस्लामी मौलवी इस शब्द का उपयोग जारी रखना चाहते हैं। गैर-मुस्लिम या काफिरों के खिलाफ सभी इस्लामी विजय धार्मिक रूप से इस शब्द के प्रति फैलाई गई नफरत से प्रेरित हुई है। एक और शब्द है, जिसे ‘मुशरिक‘ कहा जाता है, जिसका अर्थ है बहुदेववादी। एक अन्य संबंधित शब्द प्रयोग होता है जिसको ‘तकफिर‘ के रूप में जाना जाता है, जिसका अर्थ है कि कोई व्यक्ति मुस्लिम होने का झूठा दावा करता है। कभी-कभी लोग ‘कुफ्र‘ शब्द का भी उपयोग करते हैं, जो ‘काफिर’ के समान है।

कुरान में, काफिर या इसके विशेषण या बहुवचन शब्दों का प्रयोग कुल 420 बार किया गया है। इस शब्द का पहला उपयोग मक्का में हुआ था जब स्थानीय लोगों ने मोहम्मद के संदेश पर विश्वास नहीं किया था। इस शब्द का उपयोग अकादमिक रूप से विभिन्न स्थितियों में भिन्न होता है। हालांकि, विशेष रूप से गैर-मुस्लिमों के खिलाफ इस शब्द का व्यावहारिक अनुप्रयोग पूरे राजनीतिक इस्लाम के इतिहास में सुसंगत रहा है चाहे वह लेवांत, फारस, भारतीय उपमहाद्वीप, सुदूर पूर्व या कहीं और जीता हो।

इस्लाम में आस्तिकों को मुमिनिन कहा जाता है। कुरान के अंत की ओर, मुमिनिन काफिर को नष्ट करने के लिए पुकारा जाता है। यह मध्य पूर्व और सुदूर पूर्व में सभी इस्लामी विजय का आधार था। अब यही रवैया यूरोप के मुसलमानों में भी देखा जा रहा है और अमरीका और कनाडा में भी देखा जाने लगा है। बाइबल और तोराह को मानने वाले, यहूदी और ईसाई भी काफ़िर माने जाते हैं क्योंकि कुरान में यह माना गया है कि वे मुमिनिन से अलग हैं। ईसाई धर्म की धार्मिक अवधारणाएं ट्रिनिटी में निहित हैं जो कुरान द्वारा कुछ हद तक खारिज कर दी गई हैं। विभिन्न इस्लामिक विद्वानों द्वारा कई व्याख्याएं की गई हैं, कि जब तक वे लोग जिज़्या अदा करते हैं, तब तक ईसाई और यहूदि लोगों को क्षमा कर दिया जाता है। लेकिन दूसरों को विधर्मी माना गया और उन्हें मुशरिक कहा गया, जो हिंदू, बौद्ध, जैन, सिख और कई अन्य समुदायों को संदर्भित करता है और इस तरह उन्हें तलवार से मौत की सजा दी जाती है। यहां तक कि इस्लामिक देशों में, जिस किसी को भी काफिर का ठप्पा लगाया जाता है, उसे मौत की सजा दी जाती है। उदाहरणार्थ, इस्लामी देशों में हिंदू, बौद्ध, यजीदी, ईसाई, अहमदिया के खिलाफ इस्लामी हिंसा सभ्य शब्दों में कहें तो क्रूर है, लेकिन उसे उचित सिद्ध करने की कोशिश की जाती है।

हम इस शब्द के प्रयोग को सभी गैर-मुस्लिमों के खिलाफ शोषक रूप से इस्तेमाल करते देखते हैं। लेकिन सबसे बुरा हिंदू, बौद्ध और अन्य पूर्वी धर्मों के लिए आरक्षित था। अधिकांश इंडोनेशियाई लोगों को भी मुशरिक कहा गया क्योंकि वे हिंदू ग्रंथ रामायण में विश्वास करते हैं। अब इंडोनेशिया में भी हिंदुओं के खिलाफ एक अभियान चल रहा है क्योंकि उन्हें काफ़िरों के रूप में चिन्हित किया गया है।

मुगलकाल के दौरान, भारत में, सभी गैर-मुस्लिमों पर जिज़्या नामक कर लागू किया गया था। तैमूर, औरंगज़ेब, अकबर, बाबर की बर्बरता इस तथ्य से उपजी है कि कुरान की आयतें (9.1-15) का प्रयोग काफ़िरों के खिलाफ हिंसा के कृत्यों को न्यायसंगत ठहराने के लिए किया गया था जब तक कि वे इस्लाम को न अपना लें। यह लेवांत, फारस, अफगानिस्तान, मध्य एशिया, भारत, दक्षिण पूर्व एशिया और अन्य पर इस्लाम के सभी विजय में इस्तेमाल किया गया एक सा सूत्र था। मैंने अपनी पहली पुस्तक जो ‘सत्तोलोजी’ के सम्बंध में है, में इस्लामी विजय का विस्तार से उल्लेख किया है।

इस खबर को अंग्रेजी में यहाँ पढ़े।

यह शब्द कई मुस्लिमों को खुद को अन्य गैर-मुस्लिमों के साथ एकीकृत नहीं करने हेतु प्रेरित कर रहा है। एक मुस्लिम परिवार के एक छोटे बच्चे को काफ़िरों के साथ न मिलने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। इसलिए, जब वे बड़े होते हैं, तो वे बच्चे कभी भी गैर-मुस्लिम देश में अन्य गैर-मुस्लिम आबादी के साथ एकीकृत नहीं होते हैं। भले ही एक मुस्लिम परिवार एक बहुत ही सुरक्षित लोकतांत्रिक देश में रह सकता है, लेकिन वे हमेशा खुद को अन्य गैर-मुस्लिम लोगों से अलग रखेंगे क्योंकि उन्हें पहचान के नुकसान से डरने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है यदि वे बहुत अधिक मेलमिलाप करते हैं। इसके अलावा, मुशरिक बनने या मिश्रित विश्वास होने का डर उन्हें बचपन से ही है।

लोकतांत्रिक समाजों के लिए जहां कई धर्मों के लोग रहते हैं, मुसलमानों और गैर-मुस्लिम समुदायों के एकीकरण को सुनिश्चित करने के लिए निम्नलिखित कदम उठाने की अत्यधिक अनुशंसा की जाती है:

1. शब्द काफिर और उसके सभी व्युत्पन्न शब्द सन्दर्भ सभी इस्लामी ग्रंथों से हटाएं

2. काफिर की परिभाषा को ‘अन्य प्रमाणिक और मान्यता प्राप्त विश्वासों’ जैसे कि हिंदू, बौद्ध, ईसाई, यहूदी, जैन से बदल दें

3. सुनिश्चित करें कि सभी मुस्लिम बच्चों को सभी गैर-मुस्लिमों के लिए सम्मान सिखाया जाए

4. मस्जिदों में पाठ्यक्रम को विनियमित करें विशेष रूप से ‘काफिर’ शब्द से संबंधित

मैं इस विषय इस्लामी और अन्य धार्मिक विद्वानों को, विभिन्न समुदायों के बीच स्थायी शांति और विश्वास के लिए हिंदू, बौद्ध, ईसाई, सिख, और यहूदियों से गैर-मुस्लिम धार्मिक विश्वासों के बारे में सोचने और समाधान के साथ आने के लिए कहूँगा। जब तक इस परिभाषा को हल नहीं किया जाता है, तब तक मुस्लिम और गैर-मुस्लिम समुदायों के बीच कोई एकीकरण नहीं होगा। क्योंकि हमेशा एक खंड ऐसा होगा जो दूसरों से घृणा करेगा और दूसरे तबके को सुरक्षा का कोई भरोसा नहीं होगा।

ध्यान दें:
1. यहां व्यक्त विचार लेखक के हैं और पी गुरुस के विचारों का जरूरी प्रतिनिधित्व या प्रतिबिंबित नहीं करते हैं।

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