अयोध्या, जहां हिंदू दुखी हैं

अयोध्या के प्रति 1947 के बाद से लगातार सरकारों द्वारा दिखाई गई उपेक्षा पूरी तरह से भ्रष्ट/ शातिर दिखती है। ऐसा लगता है कि हिंदुओं के खिलाफ धर्मनिरपेक्षता का इस्तेमाल उनके विश्वास को तोड़ने के लिए किया गया!

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अयोध्या के प्रति 1947 के बाद से लगातार सरकारों द्वारा दिखाई गई उपेक्षा पूरी तरह से भ्रष्ट/ शातिर दिखती है। ऐसा लगता है कि हिंदुओं के खिलाफ धर्मनिरपेक्षता का इस्तेमाल उनके विश्वास को तोड़ने के लिए किया गया!
अयोध्या के प्रति 1947 के बाद से लगातार सरकारों द्वारा दिखाई गई उपेक्षा पूरी तरह से भ्रष्ट/ शातिर दिखती है। ऐसा लगता है कि हिंदुओं के खिलाफ धर्मनिरपेक्षता का इस्तेमाल उनके विश्वास को तोड़ने के लिए किया गया!

हिंदुओं को जागने की आवश्यकता है, अयोध्या को जिस तरह के ध्यान की आवश्यकता है, उसे देने के लिए हिंदुओं को निजी और सार्वजनिक दोनों तरह की पहल करने की जरूरत है।

अयोध्या का दौरा करने के बाद, मेरा दिल अरबों हिंदुओं के प्रति सहानुभूति से भर गया। अपने ही देश में हिंदुओं को अपने विश्वास की वैधता साबित करनी होगी। हिंदुओं का धैर्य, अच्छाई और दृढ़ता इस बात का उदाहरण है कि उनके विश्वास को चुनौती दिए जाने पर भी कैसे संयम और शालीनता बनाए रखी जाए। अपनी ही मातृभूमि में, आज, नश्वर न्यायालयों ने शास्वत भगवान राम के पक्ष में दलीलें सुनीं और मुसलमानों द्वारा भगवान राम के खिलाफ दलीलें भी दी गयीं। 57 में से कौन सा इस्लामिक देश अपनी अदालत प्रणाली में अल्लाह पर प्रश्न चिन्ह उठाने की अनुमति देगा? राम के पक्ष और राम के विपक्षी तर्क विश्व स्तर पर अरबों हिंदुओं की आंखें खोल देंगे। महर्षि वाल्मीकि द्वारा वर्णित अयोध्या अपने समय के सबसे बड़े शहरों में से एक था, जिसका क्षेत्रफल लगभग 96 मील × 24 मील था। वह वाल्मीकि का वृत्तांत है। महाराजा दशरथ, भगवान राम, भगवान भरत, भगवान लक्ष्मण, भगवान शत्रुघ्न के काफी बड़े महल और कई अन्य रानियों के विशाल महल थे। भगवान राम ग्रह पर सभी हिंदुओं की आस्था, प्रेम, भक्ति और आकांक्षाओं के प्रतीक हैं। अरबों हिंदुओं के विश्वास और उस विश्वास के विरोध के बीच का संघर्ष अदालतों में संघर्ष को जन्म देता है। पिछले 500 वर्षों से हिंदुओं को न्याय से वंचित रखना पीड़ा का कारण है। आज, भगवान राम एक तंबू के नीचे खड़े हैं, जबकि पहले वह भव्य महलों में रह रहे थे। अरबों हिंदुओं के लिए इससे ज्यादा दुख की बात और क्या हो सकती है?

1528 में संघर्ष शुरू हुआ जब बाबर ने हिंदुओं के विश्वास को अपमानित करने के लिए अपने उत्साह में भगवान राम के जन्मस्थान पर एक मौजूदा राम मंदिर को न केवल नष्ट कर दिया, बल्कि इसके ऊपर एक मस्जिद का निर्माण भी किया। मुसलमानों ने हिंदुओं की आस्था को अपमानित करने के लिए काशी विश्वनाथ मंदिर और वृंदावन के कई मंदिरों को तोड़ दिया। हिंदुओं को अपमानित करने के लिए उन मंदिरों के ऊपर मस्जिदें बनाई गईं। काबुल हिंदुओं और बौद्धों का एक प्राचीन शहर था, सभी मंदिरों को नष्ट कर दिया गया था। पाकिस्तान में हिंदू इतिहास को पाकिस्तान की धरती से मिटाने के लिए 1947 से अब तक लगभग 29000 हिंदू मंदिरों को नष्ट कर दिया गया। यहां तक कि संयुक्त राष्ट्र के हस्तक्षेप से पहले पाकिस्तान में पुरातात्विक स्थल उपेक्षित थे। बांग्लादेश में, 18000 से अधिक हिंदू मंदिरों को नष्ट कर दिया गया था, ताकि उनकी जमीन से हिंदू इतिहास को मिटाया जा सके। यह नफरत क्या है? हिंदुओं या काफ़िरों की गहरी असुरक्षा से घृणा और गहरे अविश्वास का यह भाव उनकी धार्मिक पुस्तकों में पढ़ाया जाता है। यह तथ्य कि हिंदू धर्म उनके हमलों से बच गया है, हिंदुओं का लचीलापन दर्शाता है।

सुप्रीम कोर्ट ने राम की दिव्यता पर मूल लेखक वाल्मीकि के ऐतिहासिक वृतान्तों को खारिज कर दिया। सभी समिति सदस्यों, जो राम की दिव्यता को तय करने का प्रयास कर रहे हैं, के लिए वाल्मीकि रामायण पर एक सत्र होना चाहिए।

स्वतंत्रता के बाद की भारतीय सरकारों को भारत के लोगों ने उसी पुराने इस्लामी शोषण की मानसिकता के साथ देखा। मैक्स मुलर और मैकाले द्वारा निर्मित भारत की अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली ने ब्रिटिश ईसाई इंजील औपनिवेशिक मालिकों की धारणा का भी समर्थन किया। भारत के अलावा किसी अन्य देश ने इस हद तक अपनी संस्कृति और विरासत की उपेक्षा नहीं की है।

तथ्यों द्वारा समर्थित विश्वास

हिंदुओं के लिए धार्मिक महत्व के सभी स्थानों को विशेष रूप से उपेक्षित किया गया था ताकि हिंदू अधिक अपमानित और आहत हों। भारत की अदालतों ने भी उनके फैसले में देरी करके या असमंजस की स्थिति पैदाकर हिंदुओं के खिलाफ काम किया, जो उन्हें न्याय से वंचित करता है। आज, एक हिंदू अपनी जमीन पर अपने विश्वास को मान्यता देने के लिए एक अदालत की ओर देख रहा है। इससे ज्यादा बुरा नहीं हो सकता। आज अदालतें पूछ रही हैं कि क्या राम का अस्तित्व था? ब्रह्मा के बारे में क्या, जिन्होंने वाल्मीकि को भगवान राम का ऐतिहासिक वृत्तांत लिखने के लिए अधिकृत किया था? ब्रह्मा ने यह भी घोषित किया था, कि जब तक ग्रह पर पर्वत हैं, तब तक इस ग्रह पर राम की महिमा गाई जाएगी। उसी रामायण को राम के पुत्र लव और कुश ने भगवान राम के सामने गाया था, और राम ने स्वयं उन ऐतिहासिक वृत्तांतों को स्वीकार किया। वास्तव में, आधुनिक शहर लाहौर (लव) और कसूर (कुश) का नाम जुड़वा बच्चों के नाम पर रखा गया था। यह आस्था का विषय है। यह विश्वास हिंदू धर्म को मजबूत बनाता है। रामायण में वर्णित हर जगह आज भी विद्यमान है। यह पुरातात्विक तथ्यों द्वारा समर्थित आस्था है। राम अब केवल आस्था का विषय नहीं है, बल्कि एक वास्तविकता भी हैं।

यदि मुसलमान अपने अतीत को पहचान लेते और हिंदुओं की इस मांग को खुले दिल से स्वीकार कर लेते तो बहुत अच्छा होता। वे अरबों हिंदुओं का दिल जीत लेते। इस मामले का तथ्य यह है कि उनमें से अधिकांश बलपूर्वक इस्लाम में परिवर्तित किए गए थे और उससे पहले वे हिंदू थे। लेकिन इसके बजाय, वे चाहते थे कि अदालतें इस मामले पर फैसला करें क्योंकि वे अरबों हिंदुओं के विश्वास को देरी, निराशा और अपमानित करना चाहते थे। राम मंदिर का विरोध अब भूमि पर नियंत्रण के लिए नहीं है, बल्कि हिंदू धर्म के लिए है। यदि इस मंदिर को अनुमति दी जाती है, तो यह विश्व स्तर पर हिंदू धर्म के पुनरुत्थान की शुरुआत होगी। साथ ही, ग़ज़वा ए हिंद का सपना हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा। यह वास्तविक असुरक्षा है। मुसलमानों का हिन्दुओं के देवत्व को चुनौती और उनकी आस्था पर सवाल खड़े करना ही उनके इमामों के हिंदुत्व के प्रति दुर्भावपूर्ण धारणा को सार्वजनिक रूप से उजागर करता है। उस सटीक स्थल पर राम मंदिर के निर्माण के हिंदू संकल्प की निश्चितता को देखते हुए, यह राम के लिए हिंदुओं के साथ सहयोग करने और जुड़ने के लिए उनकी ओर से अधिक विवेकपूर्ण होगा। लेकिन उन्होंने प्रतिवाद को चुना। मैं आशा करता हूं और प्रार्थना करता हूं कि इस मुस्लिम-हिंदू विभाजन पर पार पाना मुश्किल नहीं होगा। यह बेहतर होता अगर 1.2 अरब हिंदुओं की संवेदनशीलता का सम्मान करते हुए मुसलमान बड़ा ह्रदय दिखाते क्योंकि 57 देशों में इस्लामिक सरकारें हैं जबकि 1.2 अरब हिंदुओं का एक भी देश नहीं। अब, दक्षिण एशिया में मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा नष्ट किए गए शेष 100000 मंदिरों पर सवाल बढ़ रहे हैं।

इस खबर को अंग्रेजी में यहाँ पढ़े।

राम जन्मभूमि पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में उठे प्रश्न

1. क्या राम में हिंदुओं की आस्था सदियों से निरंतर रही है?

2. अयोध्या आने वाले विदेशियों का ऐतिहासिक वृत्तांत

3. क्या राम एक पूज्य देवता थे?

4. देवता और मूर्ति के बीच अंतर

5. क्या राम स्वयं भगवान थे?

सुप्रीम कोर्ट ने राम की दिव्यता पर मूल लेखक वाल्मीकि के ऐतिहासिक वृतान्तों को खारिज कर दिया। सभी समिति सदस्यों, जो राम की दिव्यता को तय करने का प्रयास कर रहे हैं, के लिए वाल्मीकि रामायण पर एक सत्र होना चाहिए। इससे हिंदुओं की आस्था और विश्वासों को चोट पहुँची है क्योंकि आज राम का परीक्षण/परख/जांच हो रही है। इस्लामिक और ईसाई धर्मों की दिव्यता की जांच के लिए एक समान परीक्षण क्यों नहीं किया गया? इस परीक्षण पर 1.2 अरब हिंदुओं द्वारा दिखाई गई व्यापक सोच ही इस बात का प्रमाण है कि राम विजयी होंगे। लेकिन क्या हम एक समुदाय के रूप में राम पर मुकदमा चलाने का अधिकार रखते हैं? इसका पहले से ही भगवद गीता में उत्तर दिया गया है, जिसमें नारायण अर्जुन को जवाब देते हैं, ‘आपके और मेरे दोनों के कई अवतार हो चुके हैं, लेकिन आपके और मेरे बीच का अंतर यह है कि, मैं उन सभी अवतारों को याद कर सकता हूं लेकिन आप नहीं कर सकते’। क्या राम हमारे संकल्प को परख रहे थे?

अयोध्या के प्रति 1947 के बाद से लगातार सरकारों द्वारा दिखाई गई उपेक्षा पूरी तरह से भ्रष्ट/ शातिर दिखती है। ऐसा लगता है कि हिंदुओं के खिलाफ धर्मनिरपेक्षता का इस्तेमाल उनके विश्वास को तोड़ने के लिए किया गया! बीजेपी के साथ, लखनऊ से अयोध्या तक पहुंच में सुधार हुआ है, लेकिन हिंदुओं के विश्वास का सम्मान करने के लिए बहुत कुछ किया जाना चाहिए। स्वच्छता, नदी की सफाई और अच्छी सड़कों में सुधार की बहुत गुंजाइश है। पूरे शहर को हिंदू संस्कृति और विरासत का सम्मान करने के लिए राज्य और हिंदू समुदाय का ध्यान आकर्षित करने की आवश्यकता है।

संक्षेप में, हमें नश्वर के रूप में हिंदुओं के विश्वास का परीक्षण करने का कोई अधिकार नहीं है। अगर हम ऐसा करते हैं, तो हमें सभी का भी परीक्षण करना होगा। हिंदुओं को जागने की आवश्यकता है, अयोध्या को जिस तरह के ध्यान की आवश्यकता है, उसे देने के लिए हिंदुओं को निजी और सार्वजनिक दोनों तरह की पहल करने की जरूरत है। डॉ सुब्रमण्यम स्वामी नवंबर 2019 को मंदिर निर्माण की शुरुआत के रूप में पहले ही घोषित कर चुके हैं। जय श्री राम!

ध्यान दें:
1. यहां व्यक्त विचार लेखक के हैं और पी गुरुस के विचारों का जरूरी प्रतिनिधित्व या प्रतिबिंबित नहीं करते हैं।

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