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गिद्धों का गुट स्वतंत्रता से काम कर रहा है, जिसमें उच्च पदों पर स्थित अधिकारी भी शामिल हैं।
एक समय था जब भारतीय रूपए की ताकत पूरी दुनिया में चलती थी, दक्षिण पूर्व एशिया, खाड़ी के देशो में भारतीय रूपए की गूंज थी। डॉलर भी उस वक़्त रूपए के समकक्ष था। मगर जैसे देश आज़ाद हुआ रूपए और डॉलर में अंतर होना शुरू हो गया। रुपये की कीमत बाकी मुद्राओं के मुकाबले कम होने लगी और साथ ही भारतीयों और उनके बेनामियोंं द्वारा अपूर्वदृष्ट विदेशी संपत्ति में निवेश में बढ़त होने लगी। और इसी के साथ विदेशों में कई लोगों का पैसा रखना शुरू हो गया, जिसको चुपके से अंजाम दिया गया।
भारत को बहुत ही सधे हुए तरीके से लुटा गया है उदाहरण के लिए भारत में जहाँ कोयले का उद्पादन ज्यादा है वहा से कोयला लेने के बजाये कोयले को बाहर से मंगवाया जाता है यह कहते हुए की देश में कोयले का उत्पादन कम हो रहा है, और महंगे दामों पर कोयले को ख़रीदा जाता है।
जिन्होंने डॉलर जमा कर रखे हैं वे 2018 में सबसे बुरा प्रदर्शन करने वाले भारतीय रुपये के गिरने से बहुत ज्यादा प्रसन्न होंगे। उन्हें अब उनके यूएस डॉलर से अधिक लाभ प्राप्त होगा जो 6 महीने पहले मुमकिन नहीं था। यह प्रक्रिया तब से चल रही है जब 1950 में भारतीय अर्थव्यवस्था पर सोविएत आयोजन थोपा गया। कई सरकारी अधिकारी, उद्योगपति, नेता लोग अपने विदेशी खातों में पैसे को हवाला के जरिये पहुंचाते रहते हैं, और यह सब बड़े संगठित तरीक से अंजाम किया जाता है। इससे उन देशभक्तों का घाटा होता है जो केवल भारतीय रुपये पर भरोसा करते है ना कि यूएस डॉलर या ब्रिटिश पाउंड पर। ऐसे देशभक्तों को धोखा दे कर उन अधिकारियों, उद्योगपतियों एवं राजनेताओं को लाभ पहुँचाया जा रहा है जो हवाला के माध्यम से अपनी संपत्ति को विदेशों में जमा करते हैं। इनका आरबीआई एवँ उत्तर ब्लॉक के सबसे शक्तिशाली लोगों के साथ हर हफ्ते उठना बैठना होता है।
8 नवम्बर 2016 को देश के 86% मुद्रा की नोटबंदी में बुरी तरह घायल भारतीय रुपये के छोटे व्यापारी को निशाना बनाया गया परंतु अर्थव्यवस्था को वास्तविक खतरा ऐसे छोटे व्यापारियों से नहीं है। हालाँकि नोटबंदी का मुख्य जोर इन सब पर वार करना था, जिसमें काफी हद तक सफलता भी मिली, यह तो मार्केट एक्सपर्ट और फण्ड मैनेजर जैसे लोग जो घाटा दिखा कर मुनाफा कमाने में पारंगत होते हैं, वो अक्सर इस तरह गैरकानूनी तरह के कामों में पाए जाते हैं और वो यह सब कुछ खास लोगों के लिए करते हैं जिनकी राजनीतिक ताकत तगड़ी होती हैं। यह लोग मासूम भारतियों को घाटा दिखा कर उनके पैसे को हवाला के जरिये विदेशों में जमा करवाते हैं। कई सरकारी संस्थाए भी इनके मकड़जाल में उलझ जाती है और समझ नहीं पाती की गड़बड़ कहा से हुई है।
कई स्टॉकब्रोकर्स, मार्किट एक्सपर्ट्स, बिजनेसमैन और उच्च अधिकारी जो की पूर्व में केंद्रीय मंत्री के संरक्षण में रह कर इस तरह के कार्य को अंजाम देते आये हैं, और भारतीय अर्थव्यवस्था का विनाश करते रहे हैं। इस गुट ने शेयर बाजार को इस तरह मोड़ा ताकि वे छोटे निवेशक एवँ एलआईसी जैसे सार्वजनिक संस्थानों की कीमत पर लाभ कमा सके। सेबी एवँ अन्य संस्थाओं ने इस तरह की धोखाधड़ी पर कड़ी नजर रखने का और खासतौर से उन लोगों पर जो शेयर मार्केट में गड़बड़ करने में माहिर है पर जाँच करवाने का दावा किया है। सीबीआई और ईडी ने उन पुलिस अधिकारियों को काम पर लगया है जिन्हें शेयर बाजार में किए जानेवाले गड़बड़ की जानकारी नहीं है जबकि अब तक अधिकारियों के संवर्ग को तैयार करना चाहिए था जो इस तरह की बाजार एवँ अर्थिक धोखेेबाजी को पहचानने में निपुण हो। जांच एजेंसियों ने अपने लोगों को इसमें लगा रखा है जिससे उन धोखाधड़ी करने वालों पर शिकंजा कसा जा सके। यदि इन एजेंसियों ने यह सुनिश्चित नहीं किया कि अंदरूनी व्यापार और गैरकानूनी सट्टेबाज़ी करने वालों की पहचान कर उन पर मुकदमा नहीं चलाया गया, इसके बजाय कि उन्हें बच कर निकलने दिया जाए जैसे अब हो रहा है, तो भारतीय सत्ता बाजार विनियमक दुनियाभर में उपहास के पात्र होंगे।
भारत को बहुत ही सधे हुए तरीके से लुटा गया है उदाहरण के लिए भारत में जहाँ कोयले का उद्पादन ज्यादा है वहा से कोयला लेने के बजाये कोयले को बाहर से मंगवाया जाता है यह कहते हुए की देश में कोयले का उत्पादन कम हो रहा है, और महंगे दामों पर कोयले को ख़रीदा जाता है। यदि भारतीय खरीदारों को अधिक कीमत देना पड़े तो अवश्य ही कुछ गलत है। क्या ये संयोग की बात है कि कोयले की घरेलू उत्पादन (जबकि इस देश में इस प्राकृतिक संसाधन का भंडार है) असंतोषजनक है जबकि ऊंचे दामों पर आयात हो रहे हैं और इस बात पर डीआरआई या ईडी ध्यान केंद्रित नहीं कर रहे? आने वाले दिनों में उन लोगों पर कार्यवाही होनी चाहिए जो कम दामों पर निर्यात एवँ ऊंचे दामों पर आयात को अंजाम देने वाले अधिकारियों पर कार्यवाही नहीं कर रहे हैं क्योंकि इसी प्रकार के कदाचार से उन लोगों को लाभ प्राप्त हो रहा है जो चाहते हैं कि वर्ष के अंत तक भारतीय रुपये की कीमत डॉलर के मुकाबले 100 तक पहुंच जाए।
कड़ी निगरानी रखनी होगी जालसाज लोगों पर जो शेयर मार्केट में धोखाधड़ी करने में उस्ताद है वरना जिस तरह की पिछली सरकार का ढुलमुल रवैया था वैसे रवैया अगर वर्तमान सरकार का रहा तो देश बड़े आर्थिक संकट में फस जायेगा।
जब एक जिम्मेदार नीति-निर्माता टीवी पर लाचारी व्यक्त करता है (यह कहते हुए कि कारण घरेलू नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय है) और जब आरबीआई रुपये की जबर्दस्त गिरावट पर चुप्पी साधे हुए हैं, तब उन लोगों को आत्मविश्वास प्राप्त होता है जो यह सोचते हैं कि उनके द्वारा रुपये की कूटाई उसी तरह सफल होगी जैसे 2013 में ऐसी लोग विरोधी अटकलें हुई थी जब तक सन्डे गार्डीअन ने उनका पर्दाफाश नहीं किया था। पहले भी अपूर्ण बिक्री उन लोगों ने की थी जो अब भारत के अर्थव्यवस्था को लूट रहे हैं ताकि वे समृद्ध हो सकें। आरबीआई से मूर्ति की तरह स्थिर रहने की अपेक्षा नहीं है, उन्हें रुपये के मालिकों के लिए काम करना चाहिए ना कि उन विदेशी फ़ंड मैनेजरों के लिए जो रुपये के कीमत पर डॉलर से लाभ कमाकर प्रसन्न होते हैं।
दिलचस्प बात यह है कि सेबी के विदेशी मुद्रा पर नियम में बदलाव नकदी के सूत्रों पर पारदर्शिता नहीं लाते, इसके विपरीत भारतियों को ऐसे धन को प्रबंधित करने से रोकती है। अमरीकी या चीनी चलती है परंतु भारतीय नहीं! हालांकि, यह कह कर कि सेबी के इस नियम से $75 बिलीयन शेयर बाजार से निकल जाएगा, कृत्रिम आतंक पैदा करने की कोशिश इस ओर संकेत करते हैं कि ऐसी अफवाह फैलाने वाले कौन है और उनका उन लोगों से क्या संबंध है जो देश की अर्थव्यवस्था को 2019 के चुनावों के पहले आर्थिक मंदी की ओर ले जाना चाहते हैं। परंतु जाँच एजेंसी अब तक विफल रही हैं। गिद्धों का गुट स्वतंत्रता से काम कर रहा है, जिसमें उच्च पदों पर स्थित अधिकारी भी शामिल हैं। कई लेख भी लिखते हैं और ऐसे नीतियों के समर्थन में बयान देते हैं जिससे उनके लाभ में वृद्धि होगी
इसके बजाय कि रुपये की ताकत पर जोर दें और लोगों में रुपये के प्रति विश्वास बढ़ाएं, हमारे नीति-निर्माताओं के बयान एवँ कार्य ऐसी धारणा बनाते हैं कि रुपये का 100 प्रति डॉलर तक गिरना सुनिश्चित है और इससे अधिक गिरावट भी होगी। इस तरह के गलत कामों को रोकने के लिए रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया को भी ठोस नीतियां बनानी होगी और अपनी चुप्पी को तोड़ना होगा वरना जिस तरह रूपए और डॉलर का अंतर बढ़ रहा है, उससे उन लोगो को फायदा है जो अपने पैसे को जमा करके बैठे हैं विदेशो में, अगर मोदी जी ने इस सन्दर्भ में ठोस कदम नहीं उठाया तो हालात बड़े बेकाबू हो सकते हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को रुपये को कार्यवाही मुक्त (अब तक) गिद्धों के गुट से बचाने के लिए स्वयं अभियान चलाना होगा। इसके लिए मोदी जी को निर्यात पर जीसटी को कम करके तेल के पदार्थो पर लगाना होगा और ऐसी ठोस नीतियां बनानी होगी जैसे तेल वही से ख़रीदा जाये जो भारतीय रूपए में खरीदारी करेगा, जिसमें ईरान भी शामिल है। यदि वे तेल भारतीय रुपये से खरीदने के लिए तैयार होते हैं तब तेहरान से तेल के आयात को बढ़ाना चाहिए ना कि घटाना। दूरसंचार की नीतियों को बढ़ाना होगा और उसमे ठोस कदम लेने पड़ेंगे। स्टार्टअप एवँ निर्यात को प्रोत्साहन देना होगा। कड़ी निगरानी रखनी होगी जालसाज लोगों पर जो शेयर मार्केट में धोखाधड़ी करने में उस्ताद है वरना जिस तरह की पिछली सरकार का ढुलमुल रवैया था वैसे रवैया अगर वर्तमान सरकार का रहा तो देश बड़े आर्थिक संकट में फस जायेगा। केंद्रीय सरकार को लाचारी नहीं व्यक्त करनी चाहिए जिससे केवल पूर्व केंद्रीय मंत्री के गुट को लाभ होगा। गिद्धों का गुट अर्थव्यवस्था को कमजोर बनाने में सक्रिय है जिससे 2019 के लोकसभा चुनावों तक अर्थव्यवस्था बहुत अस्वस्थ हो जाएगी।
अपडेट: हमारी सूचना के अनुसार प्रधानमंत्री ने इस पर कार्यवाही शुरू कर दी है जिसके बारे में कुछ दिन प्रकाशित करेंगे
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