हम सौ लोग रहते है एक देश में एक धर्म को मानने वाले। धर्म के सार्वजनिक उत्सव है, रीति रिवाज है, मान्यतायें है, विधान है, जिन्हें हम मानते है उनका अनुसरण करते है, उन्हें जीते है, निजी जीवन में भी, सार्वजनिक जीवन में भी व सरकारी कार्यकर्मों में भी।
एक दिन बीस लोग धर्म बदल लेते है।
और कहते है कि अब क्यूँकि दो धर्मों को मानने वाले लोग है इसलिए सरकारी कार्यकर्मों में कोई धार्मिक रीति रिवाज परम्परा नहीं दिखेंगे।
तो अस्सी लोग न कही गए, न धर्म बदला, लेकिन उन्हें अपना धर्म छुपाना पड़ेगा। क्यूँ?
क्यूँकि बीस लोगों के पास वीटो आ गया है।
किसने दिया?
बस आ गया है।
धर्म उन्होंने बदला और अपने रीति रिवाज, परम्परायें, संस्कार, पूजा हम छोड़ दे।
हम शस्त्र पूजा न करे क्यूँकि शस्त्र सरकारी है। क्यूँकि बीस लोगों के पास वीटो है।
किसने दिया?
अपनी धरती नहीं छोड़ी, अपना राष्ट्र नहीं छोड़ा, अपना धर्म नहीं छोड़ा, लेकिन शस्त्र पूजा छोड़ दे?
जिन्हें कष्ट है वो हमारा देश क्यूँ न छोड़ दे?
Do we have to live in the tyranny of the minority? Why? Why this tyranny is good? Why not the tyranny of the majority?
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