सेमीकंडक्टर उत्पादन से भारत भी वैश्विक बाजार में उतरने की तैयारी में
ऐसे मौके किसी उद्योगपति के जीवन में बहुत कम आते हैं जब वे इतिहास रचने जैसी घोषणाएं करते हैं और देश के प्रधानमंत्री उनकी इस उपलब्धि की दाद देते हैं। लेकिन मौजूदा सप्ताह ऐसे ही एक पल का साक्षी बना है। वेदान्ता ग्रुप के चेयरमैन अनिल अग्रवाल का ट्वीट चर्चा का विषय बना हुआ है। ट्वीट में अनिल अग्रवाल ने लिखा है कि, “इतिहास रच दिया गया है! यह घोषणा करते हुए खुशी हो रही है कि गुजरात में नया वेदांता-फॉक्सकॉन सेमीकंडक्टर प्लांट स्थापित किया जाएगा। वेदांता का ₹1.54 लाख करोड़ का ऐतिहासिक निवेश भारत में #आत्मनिर्भर सिलिकॉन वैली को एक वास्तविकता बनाने में मदद करेगा।”
हम बात कर रहे हैं, अनिल अग्रवाल की अगुवाई वाली वेदांता लिमिटेड और ताइवान की फॉक्सकॉन कंपनी के बीच किए गए समझौते की। अग्रवाल की कंपनी ने मंगलवार 13 सितंबर को राज्य में 1.54 लाख करोड़ रुपये के निवेश के साथ सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले एफएबी निर्माण इकाई स्थापित करने के लिए गुजरात सरकार के साथ समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए। समझौते पर हस्ताक्षर के दौरान गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल और केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव उपस्थित रहे। इस अवसर पर गुजरात सरकार के शिक्षा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री जीतूभाई वघानी भी उपस्थित थे।
अनिल अग्रवाल ने अपने एक और ट्वीट में लिखा कि “भारत की अपनी सिलिकॉन वैली अब लक्ष्य के एक क़दम और क़रीब आ गई है। भारत न केवल अब अपने लोगों की डिज़िटल ज़रूरतों को पूरा कर सकेगा बल्कि दूसरे देशों को भी भेज सकेगा। चिप मंगाने से चिप बनाने तक की यह यात्रा अब आधिकारिक तौर पर शुरू हो गई है।”
History gets made! 🇮🇳 Happy to announce that the new Vedanta-Foxconn semiconductor plant will be set up in #Gujarat. Vedanta’s landmark investment of ₹1.54 lakh crores will help make India’s #Atmanirbhar Silicon Valley a reality. (1/4)
— Anil Agarwal (@AnilAgarwal_Ved) September 13, 2022
अहमदाबाद के पास बनने वाले इस प्रोजेक्ट पर 1.54 लाख करोड़ रुपये का निवेश होगा। संयुक्त उपक्रम में वेदांता का हिस्सा 60 फ़ीसदी होगा, जबकि ताइवान की कंपनी की 40 फ़ीसदी हिस्सेदारी होगी। पिछले कुछ साल में यह भारत में होने वाले सबसे बड़े निवेशों में से एक है।
मोबाइल, रेडियो, टीवी, वॉशिंग मशीन, कार, फ़्रिज, एसी… आज के ज़माने में शायद ही कोई इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस होगी जिसमें सेमीकंडक्टर का इस्तेमाल न होता हो। यानी सेमीकंडक्टर रोज़मर्रा की ज़िंदगी की हिस्सा बन चुका है और इसकी कमी होने पर दुनियाभर में खलबली मच जाती है।
दरअसल, सेमीकंडक्टर, कंडक्टर और नॉन-कंडक्टर या इंसुलेटर्स के बीच की कड़ी है। यह न तो पूरी तरह से कंडक्टर होता है और न ही इंसुलेटर। इसकी कंडक्टिविटी या करंट दौड़ाने की क्षमता मेटल और सेरामिक्स जैसे इंसुलेटर्स के बीच की होती है। सेमीकंडक्टर किसी प्योर एलीमेंट मसलन सिलिकॉन, जरमेनियम या किसी कंपाउंड जैसे गैलियम आर्सेनाइड या कैडमियम सेलेनाइड का बना हो सकता है।
सेमीकंडक्टर या चिप को बनाने की एक ख़ास विधि होती है जिसे डोपिंग कहते हैं। इसमें प्योर सेमीकंडक्टर में कुछ मेटल डाले जाते हैं और मैटेरियल की कंडक्टिविटी में बदलाव किया जाता है। चिप और डिस्प्ले फ़ैब्रिकेशन में अभी चीन का दबदबा है। चीन, हॉन्गकॉन्ग, ताइवान और दक्षिण कोरिया ही दुनिया के तमाम देशों को चिप और सेमीकंडक्टर की सप्लाई करते हैं।
चीन की अर्थव्यवस्था में चिप एक्सपोर्ट का हिस्सा बताता है कि किस तरह ‘ड्रैगन’ ने अमरीका समेत दुनिया के तमाम देशों को सिलिकॉन चिप बेचकर अपना ख़ज़ाना भरा है। चीन और भारत दुनिया की दो सबसे बड़ी आबादी वाले देश हैं। यही हाल स्मार्टफ़ोन मैन्युफ़ैक्चरिंग में भी है। चीन इस रेस में पहले नंबर पर है और भारत दूसरे। लेकिन हैरानी नहीं होनी चाहिए की भारत सेमीकंडक्टर का 100 फ़ीसदी आयात करता है। यानी भारत सालाना 1.90 लाख करोड़ रुपये के सेमीकंडक्टर दूसरे देशों से मंगाता है जिसमें बहुत बड़ा हिस्सा चीन को जाता है।
वेदांता सेमीकंडक्टर्स के प्रबंध निदेशक आकर्ष हेब्बार ने जॉइंट वेंचर के लिए सहमति पत्र पर दस्तख़त होने के बाद मीडिया से कहा, “प्रस्तावित निर्माण इकाई में 28 नैनोमीटर टेक्नोलॉजी नोड्स का उत्पादन होगा, स्मार्टफ़ोन, आईटी टेक्नोलॉजी, टेलीविजन, नोटबुक्स और इलेक्ट्रिक वाहनों में इसका इस्तेमाल होता है। दुनियाभर में इसकी बहुत अधिक डिमांड है।” यानी ये प्रोजेक्ट भारत के इलेक्ट्रॉनिक बाज़ार की ज़रूरतों को तो पूरा करेगा ही, यहाँ बने चिप्स का निर्यात भी होगा।
इलेक्ट्रॉनिक्स गैजेट के एक बड़े उपभोक्ता देश के तौर पर उभर रहे भारत के लिए माइक्रोचिप के क्षेत्र में दूसरे देशों पर निर्भरता कम करना ही अपने आप में कोई छोटी बात नहीं है। देश में पेट्रोल और सोना के बाद सबसे ज़्यादा आयात इलेक्ट्रॉनिक सामान का होता है। फ़रवरी 2021 से अप्रैल 2022 के बीच इसके 550 अरब डॉलर के आयात बिल में अकेले इलेक्ट्रॉनिक्स आइटम की हिस्सेदारी 62.7 अरब डॉलर की थी।
भारत के इंजीनियर इंटेल, टीएसएमसी और माइक्रोन जैसी दिग्गज चिप कंपनियों के लिए चिप डिज़ाइन करते हैं। सेमीकंडक्टर प्रोडक्ट की पैकेजिंग और टेस्टिंग भी होती है। लेकिन चिप बनाए जाते हैं अमेरिका, ताइवान, चीन और यूरोपीय देशों में।
सवाल ये है कि क्या वेदांता और ताइवान के बीच ये क़रार भारत की इलेक्ट्रॉनिक सामानों के इंपोर्ट के मामले में चीन पर निर्भरता कम कर देगा? इस संदर्भ में व्यापारिक संगठन पीएचडी चैंबर ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री की पिछले महीने आई एक रिपोर्ट पर गौर करना होगा। इसमें दावा किया गया है कि भारत चीन से 40 फ़ीसदी इलेक्ट्रॉनिक इंपोर्ट घटा सकता है बशर्ते मोदी सरकार पीएम गति शक्ति स्कीम के तहत मिलने वाली रियायतों को ईमानदारी से लागू करे।
भारतीय उत्पादकों की इस भावना का ख़्याल रखे कि वो कंपिटेटिव क़ीमतों पर उत्पाद तैयार कर सकें। केमिकल्स, ऑटोमोटिव पुर्ज़ों, साइकिल, कॉस्मेटिक, इलेक्ट्रॉनिक्स चीज़ों का उत्पाद बढ़ाया जाए। संगठन के अध्यक्ष प्रदीप मुलतानी के मुताबिक़ चीन से सस्ता सामान ही भारत की राह में सबसे बड़ा रोड़ा है। चीन ‘लो कॉस्ट लो वैल्यू‘ के फ़ॉर्मूले पर काम करता है और यही वजह है कि भारत की छोटी कंपनियां चीन की लागत के सामने टिक नहीं पाती। अगर सरकार इन कंपनियों को इंसेंटिव पैकेज दे ताकि वो कंपीटिशन में बनी रह सकें।
हालांकि सेमीकंडक्टर सप्लाई चेन की एक बड़ी ताक़त बनने के भारत के सपने में चुनौतियां भी कम नहीं हैं। सेमीकंडक्टर के दिग्गज देशों ने बड़ी चिप मेकर कंपनियों को इंसेंटिव देने के लिए जिस तरह से अपना ख़ज़ाना खोल दिया है, उसमें भारत जैसे नए खिलाड़ी के लिए खेल और मुश्किल हो गया है।
वेदांता के चेयरमैन अनिल अग्रवाल ने एमओयू साइन करने के बाद कहा कि चिप बनाने के मामले में भारत आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ गया है। हालाँकि एक्सपर्ट ‘आत्मनिर्भरता‘ के इस दावे से सहमत नहीं दिखते। जानकारों का कहना कि आज तकनीक के क्षेत्र में कोई भी देश पूरी तरह से आत्मनिर्भर नहीं हो सकता है और सेमीकंडक्टर्स के मामले तो बिल्कुल ही नहीं, क्योंकि इस सेक्टर में कई सेगमेंट है। इस प्रोजेक्ट में जो कुछ बनेगा, उसकी कुछ खपत भारत में होगी तो कुछ चीज़ों का एक्सपोर्ट भी होगा।
जानकारों के अनुसार, सेमीकंडक्टर चिप्स का उत्पादन दुनिया भर के अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग कंपनियां करती हैं। चिप की डिज़ाइन मुख्य रूप से अमरीका में तैयार की जाती है। मोटे तौर पर उसका उत्पादन ताइवान में होता है तो उसकी असेम्बलिंग और टेस्टिंग या तो चीन में होती है या फिर दक्षिण पूर्वी एशिया में।
हालाँकि ये डील इस मायने में अहम बताई जा रही है कि भारत भी अब इससे ग्लोबल सप्लाई चेन में शामिल हो सकेगा। इसलिए गुजरात में इस प्रोजेक्ट का आना बहुत अहम है और पूरी-पूरी संभावना है कि अहमदाबाद के पास का ये इलाक़ा सिलीकॉन वैली के लिए रूप में तैयार हो जाए। कई और कंपनियां भी यहाँ आ सकती हैं। जानकारों का मानना है कि चिप्स की मैन्युफै़क्चरिंग भारत में होने के बाद भारत के इंपोर्ट बिल में कमी आएगी।
[आईएएनएस इनपुट के साथ]
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