महंगाई की मार से दुनिया पस्त: भारत, अमेरिका, ब्रिटेन समेत दूसरे देशों का भी हाल-बेहाल

मार्च 2022 में भारत में खुदरा महंगाई 17 महीने के उच्च स्तर पर पहुंच गई। यह 6.95 फीसदी की दर से बढ़ी है।

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महंगाई की मार से दुनिया पस्त: भारत, अमेरिका, ब्रिटेन समेत दूसरे देशों का भी हाल-बेहाल
महंगाई की मार से दुनिया पस्त: भारत, अमेरिका, ब्रिटेन समेत दूसरे देशों का भी हाल-बेहाल

महंगाई से दुनिया पस्त

महंगाई ने दुनियाभर के देशों की अर्थव्यवस्थाओं को नुकसान पहुंचाया है। इसकी मार से भारत ही नहीं, बल्कि दुनियाभर के देशों पर असर पड़ा है। साल 2022 की शुरुआत तमाम देशों के लिए बेहद खराब साबित हुई है। जहां बीते साल 2021 में महंगाई के हल्के-हल्के झटके लगे थे, तो 2022 में जिस प्रकार से भू-राजनैतिक हालात बदले हैं, महंगाई का जोरदार झटका भारत समेत अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी समेत अन्य देशों को लगा है।

जिस हिसाब से दुनिया भर में महंगाई बढ़ी है, पश्चिमी देशों के लिए हैरान करने वाली रही। एक रिपोर्ट के मुताबिक, पश्चिमी देशों ने दशकों बाद ऐसी महंगाई का अनुभव किया है। बीती कुछ तिमाहियों में तो इसमें तेजी से इजाफा देखने को मिला है। इसकी शुरुआत जिंस की कीमतों में तेजी के साथ हुई। खासतौर पर तेल और धातुओं के दाम में बढ़ोतरी से। 2020 में कोविड की दस्तक के बाद कमोडिटी की काफी हद तक कम रही थीं। लेकिन, 2021 में इसमें कुछ उतार-चढ़ाव आया और 2022 में तो एकदम से इनके दाम आसमान छूने लगे।

2021 की बात करें तो कोरोना महामारी के प्रकोप के कारण लागू तमाम प्रतिबंधों से आपूर्ति शृंखला प्रभावित हुई, जिसका सीधा असर कीमतों पर पड़ा। यह सिलसिला जो शुरू हुआ तो अब तक बदस्तूर जारी है। दरअसल, कोरोना महामारी का प्रभाव कम होने के बाद फरवरी के अंत में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन पर हमले का एलान कर दिया। युद्ध शुरू होने के साथ ही दुनियाभर के निवेशकों की धारणाओं पर नकारात्मक असर हुआ और शेयर बाजार धराशाई हो गए। वहीं अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें आसमान पर पहुंच गई। सप्लाई चेन प्रभावित होने के कारण अन्य चीजों पर भी इसका असर पड़ा।

अमेरिका और अन्य विकसित देशों में घरों की कीमतों पर भी महंगाई का जो असर दिखाई दिया वो चौंकाने वाला है। दरअसल, कोरोना ने अचल संपत्तियों में निवेश को बढ़ाने का काम किया। इसके चलते के साथ मकानों की कीमत में इजाफा हुआ। वहीं दूसरी ओर रूस और यूक्रेन में जारी जंग ने ऐसा असर डाला कि भारत समेत दुनियाभर में रसोई से लेकर सड़क पर निकलने तक के लिए जनता की जेब पर बोझ बढ़ गया। कच्चे तेल, प्राकृतिक गैस से लेकर एल्युमिनियम, पैलेडियम, निकल, पोटाश ही नहीं, बल्कि गेंहू, पेट्रोल-डीजल, खाद्य तेलों समेत अन्य जरूरी चीजों की कीमतों में 30 फीसदी से ज्यादा का इजाफा देखने को मिला।

सबसे पहले बात करते हैं भारत की, तो बता दें कि मार्च 2022 में देश में खुदरा महंगाई 17 महीने के उच्च स्तर पर पहुंच गई। यह 6.95 फीसदी की दर से बढ़ी है। इससे पहले अक्तूबर 2020 में खुदरा महंगाई 7.61 फीसदी की दर से बढ़ी थी। वहीं इससे पिछले यानी फरवरी महीने की बात करें तो यह आंकड़ा 6.07 फीसदी था। मार्च में खाद्य वस्तुओं के दाम 7.47 प्रतिशत बढ़े। कपड़े और फुटवियर के दाम 9.40 फीसदी बढ़े, तो ईंधन और बिजली की कीमतों में 7.52 फीसदी का इजाफा हुआ। वहीं अन्य चीजों पर महंगाई सालाना आधार पर 7.02 फीसदी और मकानों के दाम 3.38 फीसदी की दर से बढ़ी है। देश में खाद्य तेलों पर महंगाई 18.79 फीसदी, तो सब्जियों पर 11.64 फीसदी की दर से बढ़ी है।

अमेरिका में करीब चार दशकों के बाद लोगों ने इतनी महंगाई देखी है। यहां वर्तमान हालात की बात करें तो यूएस में महंगाई 8.5 फीसदी के शिखर पर पहुंच चुकी है। पहले कोरोना की मार और अब रूस-यूक्रेन युद्ध से बिगड़े हालातों ने यूएस में भी महंगाई को और बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई है। कुल मिलाकर अमेरिका में महंगाई खाद्य वस्तुओं और बिजली की कीमतों में जोरदार तेजी से सबसे अधिक प्रभावित दिखी है। महीने दर महीने इजाफे के साथ खाद्य वस्तुओं की कीमतें अमेरिका में 10 फीसदी चढ़ गई हैं, तो बिजली की कीमतों में 32 फीसदी का इजाफा दर्ज किया गया है। एनएफआईबी स्माल बिजनेस सर्वे के मुताबिक, देश में 31 फीसदी व्यापारियों ने महंगाई को अपनी सबसे महत्वपूर्ण समस्या माना है।

अमेरिका के साथ ही ब्रिटेन में भी महंगाई ने लोगों का हाल-बेहाल कर रखा है। यहां महंगाई दर 30 साल के उच्च स्तर पर पहुंच चुकी है। मार्च में देश में महंगाई 7 फीसदी की दर से बढ़ी, जो कि इससे पिछले महीने में 6.2 फीसदी की दर से बढ़ी थी। देश में ईंधन की कीमतों में 31 साल में सबसे ज्यादा इजाफा देखने को मिला है और इसकी कीमत फरवरी में 9.9 फीसदी की दर से बढ़ीं। रिपोर्ट के मुताबिक, जरूरी सामनों की 25 फीसदी श्रेणियां जिनका असर महंगाई में पड़ता है उनके दाम में 10 फीसदी से ज्यादा वृद्धि दर्ज की गई है।

अमेरिका और ब्रिटेन ही नहीं बल्कि, जर्मनी भी महंगाई की तगड़ी मार झेल रहा है। यहां मुद्रास्फीति दर 7.3 फीसदी पर पहुंच गई है, जो कि साल 1981 के बाद से सबसे ऊंचा स्तर है। यहां खाद्य वस्तुओं के दाम में साल-दर-साल 5.9 फीसदी, हाउसिंग, पानी, बिजली, गैस और अन्य ईंधन पर महंगाई 8.8 फीसदी, जबकि परिवहन का चार्च 17.5 फीसदी तक बढ़ गया है। बिजली की कीमतों की बात करें तो साल-दर-साल इसमें 39.5 फीसदी की तेजी आई है। इस बीच मार्च में स्पेन में महंगाई 9.8 फीसदी, इटली में 7 फीसदी और फ्रांस में 5.1 फीसदी की दर से बढ़ी है। खास बात ये है कि इस महंगाई में खाद्य वस्तुओं की कीमतों और बिजली-ईंधन के दामों में बढ़ोतरी का बड़ा असर हुआ है।

[आईएएनएस इनपुट के साथ]

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