आरबीआई के लिए अब रेपो रेट बढ़ाना नहीं होगा आसान! अर्थव्यवस्था के लिए होगा काफी संवेदनशील!

वित्त वर्ष 2022-23 में भारत की जीडीपी के 7 फीसदी की दर से वृद्धि करने का अनुमान है। हालांकि, इसके लिए आरबीआई और सरकार को सस्टेनेबल ग्रोथ के लिए नियमित तौर पर कदम उठाने होंगे।

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आरबीआई के लिए अब रेपो रेट बढ़ाना नहीं होगा आसान! अर्थव्यवस्था के लिए होगा काफी संवेदनशील!
आरबीआई के लिए अब रेपो रेट बढ़ाना नहीं होगा आसान! अर्थव्यवस्था के लिए होगा काफी संवेदनशील!

आरबीआई की अगली मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक में नीतिगत दरों में 50 बेसिस पॉइंट यानी 0.50 फीसदी का इजाफा किया जा सकता है

अगस्त में खुदरा महंगाई के आंकड़े निराश करने वाले रहे। सीपीआई आधारित खुदरा मुद्रास्फीति एक बार फिर 7 फीसदी तक पहुंच गई जो जुलाई में गिरकर 6.7 फीसदी पर आ गई थी। अर्थशास्त्री पहले से ही अनुमान लगा रहे थे कि रिजर्व बैंक (आरबीआई) आगे भी रेपो रेट में वृद्धि कर सकता है। अब इन आंकड़ों ने इस आशंका को और प्रबल कर दिया है। इकोनॉमिस्ट्स का मानना है कि आरबीआई की अगली मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक में नीतिगत दरों में 50 बेसिस पॉइंट यानी 0.50 फीसदी का इजाफा किया जा सकता है।

फिलहाल रेपो रेट 5.45 फीसदी के स्तर पर है। यह कोविड-19 पूर्व स्तर के बराबर की स्थिति है। अब अगर आरबीआई इसी राह पर चलता है तो इस साल के अंत तक रेपो रेट 6 फीसदी तक पहुंच जाएगी। इसका नतीजा यह होगा कि बैंकों का आरबीआई से और आपका बैंकों से लोन लेना महंगा हो जाएगा। इससे आर्थिक वृद्धि को चोट पहुंचेगी।

बैंक ऑफ बड़ौदा की अर्थशास्त्री जाह्नवी प्रभाकर के अनुसार, “रेपो रेट में वृद्धि का मतलब होगा कि लोन महंगा हो जाएगा। लोन महंगा होने से निवेश प्रभावित होगा जो अभी रिकवरी के बिलकुल शुरुआती दौर में है।” अर्थशास्त्रियों का कहना है कि आरबीआई यह सुनिश्चित करे कि ब्याज दरों में वृद्धि के चलते व्यवसायों को लोन मिलना न बंद हो जाए।

वित्त वर्ष 2022-23 में भारत की जीडीपी के 7 फीसदी की दर से वृद्धि करने का अनुमान है। हालांकि, इसके लिए आरबीआई और सरकार को सस्टेनेबल ग्रोथ के लिए नियमित तौर पर कदम उठाने होंगे। एचडीएफसी की अर्थशास्त्री स्वाति अरोड़ा कहती हैं कि सरकार को पूंजीगत व्यय (कैपेक्स) पर जोर देना चाहिए ताकि टिकाऊ और तेज रिकवरी हो सके। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि आर्थिक रिकवरी पर आगे बढ़ने के लिए जरूरी है कि आपूर्ति पक्ष को दुरस्त रखा जाए। अभी तक आपूर्ति श्रृंखला ठीक चल रही है लेकिन इसका ध्यान नहीं रखा जाता है तो यह आर्थिक विकास की राह में रोड़ा बन सकती है।

लोन महंगा होने की आशंका के बीच कर्ज लेने वालों को इसके विकल्प के बारे में सोचना होगा। जाह्नवी प्रभाकर के मुताबिक, ग्राहक ईसीबी और बॉन्ड मार्केट का रुख कर सकते हैं। इसके अलावा सरकार ने आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए पहले ही चावल और गेहूं समेत कई उत्पादों के निर्यात पर रोक लगा दी है।

[आईएएनएस इनपुट के साथ]

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