कौशल रिपोर्ट – प्रियंका वाड्रा राजनीति में शामिल होने को मजबूर

देश के संघीय ढांचे और भारत के संविधान को बचाने के लिए किसी भी राज्य में हुए भ्रष्टाचार और अपराध के मामलों में सीबीआई और ईडी की भूमिका को संक्षिप्त करना चाहिए।

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प्रियंका वाड्रा राजनीति में शामिल होने को मजबूर
प्रियंका वाड्रा राजनीति में शामिल होने को मजबूर

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय के एक आदेश ने प्रियंका गांधी वाड्रा को सक्रिय राजनीति में प्रवेश करने के लिए मजबूर किया। सर्वोच्च न्यायालय के इस आदेश ने विपक्षी दलों को भी एकजुट होने के लिए मजबूर कर दिया, भले ही कुछ दल एकमत नहीं होते। लेकिन आइए हम भारतीय राजनीति में पिछले 30 वर्षों में हुए बड़े बदलावों को देखें। विशेष रूप से क्षेत्रीय दलों के विकास।

नेहरू/गांधी सल्तनत (राजवंश), जिन्हें 1947 के सत्ता के हस्तांतरण की संधि के तहत ब्रिटिश/मुग़ल हमदर्दों द्वारा सुभास चन्द्र बोस को युद्ध अपराधी घोषित करते हुए (श्री मोहनदास जी द्वारा अनुमति दी गई और वैध करार दिया गया) स्थापित किया गया, ने आज़ादी के बाद से 1989 तक निर्बाध रूप से शासन किया, 1977 से 1979 तक की संक्षिप्त अवधि को छोड़कर। वीपी सिंह ने ही बोफोर्स तोपों की खरीद में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सीधे तौर पर तत्कालीन पीएम राजीव गांधी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए और वामपंथी, दक्षिणपंथी, समाजवादी, मंडलवाद आदि का एक अनोखा गठजोड़ बनाया, जिसने अंततः नई दिल्ली में गांधी राजवंश को समाप्त कर दिया। वीपी सिंह शासन जल्द ही समाप्त हो गया, लेकिन 1990 में जनता दल के विघटन के परिणामस्वरूप राज्य स्तरीय क्षेत्रीय दलों का विकास हुआ, जिन्होंने आंतरिक लोकतंत्र के बिना क्षेत्रीय दलों को चलाने और कामकाज की कांग्रेस शैली को अपनाया। इस प्रकार इन क्षेत्रीय दलों ने लोकतांत्रिक राजनीतिक दलों की जगह रजवाड़ों (प्रिंसली एस्टेट्स) की तरह काम किया।

समस्या के मूल में यह कानून है कि एक राजनेता, जिसे दो वर्ष से अधिक की सजा दी जाती है, को अगले छह वर्षों के लिए किसी भी चुनाव में उतरने से रोक दिया जाता है।

ये रजवाड़े पूरे भारत में उगे जिनमें उल्लेखनीय है; समाजवादी यादव और यूपी (उत्तर प्रदेश) की दलित रानी रजवाड़ा, बिहार के चारा (चारा घोटाला) यादव रजवाड़ा, पोंजी दीदी बंगाल रजवाड़ा, महाराष्ट्र के मराठा पेशवा रजवाड़ा, चिदंबरम, नायडू, गौड़ा, रेड्डी दक्षिण के रजवाड़े आदि। इन रजवाड़ा दलों की शक्ति संरचना में अजीब समानता यह है कि वे सच्ची दरबार (न्यायालय) संस्कृति का पालन करते हैं जहां राजा या रानी सर्वोच्च हैं; असंतोष की आवाज राजद्रोह के बराबर है और वंशवाद योग्यता और पार्टी के आंतरिक लोकतंत्र पर हावी होता है।

उनके वोट बैंक में अल्पसंख्यक (कांग्रेस से चुराए गए) और एक या दो प्रमुख स्थानीय जातियां शामिल होते हैं। अब, ये रजवाड़े लोकसभा और राज्यसभा के गठन और संरचना में एक बड़ी भूमिका निभाते हैं, संख्या में छोटे होने के बावजूद गठबंधन सरकार बनाने या संसद में विधेयक पारित करने के लिए उनकी संयुक्त ताकत बहुत अधिक है। सत्ता में बस कुछ ही वर्षों में, इन रजवाड़ों ने उपलब्ध सभी साधनों से बड़ी संपत्ति अर्जित की है। वे बिना किसी पश्चाताप के अपने धन और शक्ति के अशिष्ट प्रदर्शन में खुशी महसूस करते हैं। सब ठीक चल रहा था। 2014 में सत्ता बदलने के बाद अच्छा समय क्षीण होना शुरू हो गया जब एक नया चौकीदार (ईमानदार रक्षक प्रधानमंत्री मोदी) सत्ता में आया। लेकिन आखिरी झटका हाल ही में आए एससी (सर्वोच्च न्यायालय) के आदेश द्वारा था।

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आपराधिक राजनेताओं के लिए एससी का नया आदेश: एससी ने एक आदेश पारित किया कि राजनेताओं के खिलाफ लंबित सभी आपराधिक मामलों का छह महीने के भीतर फैसला किया जाना है और इस उद्देश्य के लिए विशेष अदालतें बनाई जानी चाहिए। एससी ने एचसी (उच्च न्यायालयों) को इस उद्देश्य के लिए नए न्यायाधीशों को नियुक्त करने का निर्देश भी दिया है। इस आदेश ने अशांति पैदा की है क्योंकि सुल्तान, राजा, रानी, राजकुमार, राजकुमारी, दामाद और अन्य लुटेरे (पार्टी सदस्य) भ्रष्टाचार के आरोपों और आपराधिक मामलों का सामना कर रहे हैं। कई मामलों में आरोप पत्र दायर किए गए है और मामले सुनवाई के विभिन्न चरणों में हैं। रजवाड़ा वासियों के लिए विद्यमान संकट उत्पन्न होंगे जिस क्षण आरोप सही साबित हो जाएंगे क्योंकि वे परिवार द्वारा चलाने वाले छोटे राजनैतिक दल होते हैं जहाँ पार्टी के अन्य सदस्यों को पार्टी मामलों में बोलने का कोई हक नहीं होता। एक बार राजा शह-मात हो जाए तो खेल समाप्त हो जाता है।

तात्कालिक समस्या को दूर करने के लिए हर रजवाड़े के संकट प्रबंधक राज परिवार (द रूलिंग फैमिली) के उत्तराधिकारी की तलाश कर रहे हैं, जो किसी भी आपराधिक आरोप का सामना नहीं कर रहा ताकि संभावित घटना के दौरान वह कुर्सी को बचाकर रख सके, यदि राजा या रानी को गिरफ्तार कर लिया जाता है। इस तरह, प्रियंका गांधी वाड्रा को राजनीति में लाने के लिए गांधी राजवंश को मजबूर किया गया क्योंकि राजमाता, राजकुमार और दामाद पर चार्जशीट दाखिल किए गए हैं और उन्हें जेल जाना पड़ सकता है। इसी तरह बिहार के चारा यादव वंश का बेचारा राजा जेल में है। रानी, छोटे राजकुमार, राजकुमारी सभी भ्रष्टाचार और आपराधिक मामलों में आरोपित हैं। इस वजह से, परिवार की अरुचि के बावजूद, केवल परिवार का बड़ा राजकुमार अकेला सदस्य है, जिसे किसी भी मामले में आरोपित नहीं किया गया है, हालांकि वह सभी गलत कारणों के लिए खबरों में है और परिवार को विभिन्न विवादों में डाल दिया है और बदनामी करा रहा है, जो उत्तराधिकारी के रूप में एकमात्र विकल्प रह गया है।

यूपी यादव वंश किसी भी न्यायिक सक्रियता के चलते अंतिम उपाय के रूप में अपने बाहुओं पर निर्भर कर है। यूपी और बंगाल के अविवाहित रानियों ने तुरंत ही अपने ही भतीजों को पार्टी में सक्रिय भूमिका में लाया। लेकिन ये सभी व्यवस्थाएं बनावट में अनौपचारिक और अस्थायी हैं। एक स्थायी समाधान तभी संभव है जब रजवाड़ा नई दिल्ली में सत्ता में आएगा और नीचे दिए गए कुछ कानूनों को हटाएगा।

वह कानून जो राजनेताओं को चुनाव लड़ने से रोकता है: समस्या के मूल में यह कानून है कि एक राजनेता, जिसे दो वर्ष से अधिक की सजा दी जाती है, को अगले छह वर्षों के लिए किसी भी चुनाव में उतरने से रोक दिया जाता है। यह कानून एससी आदेश के कारण और घातक हो गया है। इस कानून को निरस्त करना रजवाड़ा दलों की सर्वोच्च प्राथमिकता है।

देश के संघीय ढांचे और भारत के संविधान को बचाने के लिए राज्य में भ्रष्टाचार और अपराध के मामले में सीबीआई और ईडी की भूमिका पर अंकुश लगाया जाना चाहिए।

बेनामी संपत्ति अधिनियम: वर्षों से, इन रजवाड़ों ने अपने रहस्यमय व्यापार तंत्र के माध्यम से भारत और विदेशों में अरबों डॉलर की नकदी और संपत्ति अर्जित की है। लेन-देन शेल कंपनियों के माध्यम से कई-स्तरित धन हस्तांतरण के माध्यम से किया गया है। अधिकांश संपत्ति बेनामी (वास्तविक लाभार्थी नहीं या नाम नहीं) हैं।

बेनामी संपत्तियों अधिनियम के कार्यान्वयन के परिणामस्वरूप इन रजवाड़ों द्वारा अपनी कड़ी मेहनत और आम जनता की सेवा के नाम पर अर्जित किए गए हजारों करोड़ (= 10 मिलियन) की संपत्ति जब्त की गई है। लेकिन चौकीदार उन्हें जब्त करके और लाखों खोल (शेल) कंपनियों (100,000) को बंद करके उनकी संपत्ति को बर्बाद करने पर तुला हुआ है। वास्तव में यह संभावना है कि अधिकांश रजवाड़े नेताएं इस कठोर कानून के कारण सलाखों के पीछे जाएँगे।

लगभग 25 से 30 साल पहले वे सड़कों पर थे और अपने कठिन परिश्रम और सामाजिक कार्यों से, अब उनके पास मर्सिडीज और बीएमडब्ल्यू, महल और विदेशी बैंकों में नकदी हैं। यदि यह चौकीदार उनके खिलाफ अपना प्रतिशोध जारी रखता है तो वे जल्द ही फिर से सड़कों पर आ जाएंगे।

वैसे भी, यह सख़्त कानून जो कि संघवाद की भावना के खिलाफ है (संघवाद से रजवाड़ों का मतलब है कि राज्य शासन को केंद्रीय कानून और हस्तक्षेप मुक्त होना चाहिए) उसे संघीयता के मूल हित में निरस्त करना चाहिए।

केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग: चौकीदार उन्हें परेशान करने और उनके खिलाफ झूठे मामले दर्ज करने के लिए सीबीआई (केंद्रीय जांच ब्यूरो) और ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) जैसी एजेंसियों का दुरुपयोग कर रहा है। संघीय ढांचे के तहत, एक रजवाड़ा अपने इच्छानुसार केंद्रीय सरकार या उसकी एजेंसियों से किसी भी हस्तक्षेप के बिना राज्य (संपत्ति) पर शासन करने (लूटने) के लिए स्वतंत्र है। कानून और व्यवस्था (एक संपत्ति के संसाधनों की लूट और चोरी) एक राज्य विषय है और राज्य पुलिस के पास विशेष अधिकार हैं और ऐसे मामलों की जांच करने और अपराधी पर मामला दर्ज करने के लिए पूरी वे तरह से सक्षम हैं।

इसलिए, देश के संघीय ढांचे और भारत के संविधान को बचाने के लिए राज्य में भ्रष्टाचार और अपराध के मामले में सीबीआई और ईडी की भूमिका पर अंकुश लगाया जाना चाहिए।

दरअसल, नायडू रजवाड़ा और बंगाल की पोंजी रानी ने अपने राज्यों (संपदा) में सीबीआई और ईडी जैसी बुरी और गैर-संवैधानिक शक्तियों पर प्रतिबंध लगाकर एक अच्छी शुरुआत की है। भव्य रजवाड़ा महा-गतबंधन के सत्ता में आने के बाद, संघवाद और भारत के संविधान को बचाने के लिए सीबीआई और ईडी जैसी एजेंसियों की सभी शक्तियां छीन ली जाएंगी।

इन नव उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए, प्रमुख मुद्दा लोक सभा में बहुमत प्राप्त करना है न कि पीएम का पद पाना ताकि लोकतंत्र बचाया जा सके।

मतदान में कागजी मतपत्रों का परिचय: 1980, 1990 और 2000 के शुरुआती वर्षों के कागजी मतपत्रों की प्रणाली ने रजवाड़ों को कार्यकर्ताओं (कार्यकर्ता/ गुंडों/बाहुबलियों) की मतदाताओं को धमकाने, बूथ हथियाने और लूटने और अन्य माध्यम से किए गए कार्यों की वजह चुनाव जीतने में मदद मिली।

ईवीएम के समावेशन ने हमारे लोकतंत्र की मूल भावना को मार दिया। कार्यकर्ता (बाहुबलियां) बेरोजगार हो गए और वोटों की गिनती निष्पक्ष और आसान हो गई। दुष्ट इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) को बंद करना चाहिए। यह तभी संभव है जब रजवाड़ा महा-गठबंधन सत्ता में आएगा।

ये सभी अच्छी चीजें केवल तभी संभव हैं जब मजबूत (बलशाली) चौकीदार को मजबूर (अक्षम, जिसके नियंत्रण में नहीं है) रजवाड़ा महा-गठबंधन द्वारा प्रतिस्थापित किया जाता है। लोकतंत्र, संघवाद और संविधान को बचाने के लिए उपर्युक्त पाँच जन-विरोधी कानूनों, कार्यवाहीयों और केंद्रीय एजेंसियों को अमान्य ठहराना चाहिए।

इन नव उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए, प्रमुख मुद्दा लोक सभा में बहुमत प्राप्त करना है न कि पीएम का पद पाना ताकि लोकतंत्र बचाया जा सके। अब यह भारत के आम लोगों पर निर्भर करता है कि वे या तो मजबूत चौकीदार का चयन करें या फिर मजबूर महा-गठबंधन का।

Note:
1. The views expressed here are those of the author and do not necessarily represent or reflect the views of PGurus.

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