सर्वोच्च न्यायालय के तीन जजों ने आर्थिक आधार आरक्षण को सही ठहराया
सामान्य वर्ग में आर्थिक रूप से कमजोर तबके को 10% आरक्षण दिए जाने के फैसले को सर्वोच्च न्यायालय ने भी सही ठहराया है। 5 न्यायाधीशों में से 3 ने ईडब्ल्यूएस आरक्षण के सरकार के फैसले को संवैधानिक ढांचे का उल्लंघन नहीं माना है। यानी यह आरक्षण जारी रहेगा। चीफ जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस रवींद्र भट्ट ने ईडब्ल्यूएस के खिलाफ फैसला सुनाया है, जबकि जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस बेला त्रिवेदी और जस्टिस जेबी पारदीवाला ने पक्ष में फैसला सुनाया है।
केंद्र की ओर से पेश तत्कालीन अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सुनवाई के दौरान कहा था कि आरक्षण के 50% बैरियर को सरकार ने नहीं तोड़ा। उन्होंने कहा था- 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने ही फैसला दिया था कि 50% से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जाना चाहिए ताकि बाकी 50% जगह सामान्य वर्ग के लोगों के लिए बची रहे। यह आरक्षण 50% में आने वाले सामान्य वर्ग के लोगों के लिए ही है। यह बाकी के 50% वाले ब्लॉक को डिस्टर्ब नहीं करता है।
बेंच ने मामले की साढ़े छह दिन तक सुनवाई के बाद 27 सितंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था। सीजेआई ललित 8 नवंबर यानी मंगलवार को रिटायर हो रहे हैं। इसके पहले 5 अगस्त 2020 को तत्कालीन सीजेआई एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने मामला संविधान पीठ को सौंपा था। सीजेआई यूयू ललित की अध्यक्षता वाली बेंच ने कुछ अन्य अहम मामलों के साथ इस केस की सुनवाई की।
ईडब्ल्यूएस रिजर्वेशन को लेकर सुप्रीम कोर्ट में लगातार जोरदार बहस हुई। वकीलों की दलील थी कि सवर्णों को आरक्षण देना संविधान के सीने में छुरा घोंपने जैसा है। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय इस बात से सहमत नहीं दिखा था। तब बेंच ने कहा था कि इस बात की जांच की जाएगी कि ये सही है या गलत। सितंबर में इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में तीखी बहस हुई। इस दौरान संविधान, जाति, सामाजिक न्याय जैसे शब्दों का भी जिक्र हुआ।
[आईएएनएस इनपुट के साथ]
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