क्या पूजा स्थल अधिनियम रद्द होगा?
प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 यानी पूजा स्थल अधिनियम के खिलाफ दायर की गईं याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में आज बुधवार को सुनवाई हुई। पूजा स्थल अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया और दो सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का आदेश दिया। बता दें कि इससे पहले की सुनवाई में सीजेआई ने केंद्र सरकार से सवाल किया था कि आपको नोटिस बहुत पहले जारी किया जा चुका है, आप जवाब दाखिल करना चाहते हैं या नहीं? अब सुप्रीम कोर्ट 14 नवंबर को इस मामले की सुनवाई करेगा।
दरअसल, मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस यूयू ललित ने कहा कि हम जानना चाहते हैं कि केंद्र सरकार का पक्ष क्या है। पीठ ने एसजी तुषार मेहता से पूछा आप कब तक जवाब दाखिल करेंगे। इस पर एसजी मेहता ने कहा कि दो सप्ताह में जवाब दाखिल कर देंगे। बता दें कि पूजा स्थल अधिनियम (प्लेसेज ऑफ वरशिप एक्ट) को संसद से 18 सितंबर, 1991 को पारित किया गया था। इस अधिनियम के तहत सिर्फ राम मंदिर विवाद मामले को अलग रखा गया था। काशी, मथुरा विवाद मामले में मुस्लिम पक्ष इसी एक्ट की दलील देकर विरोध जता रहा है। इस एक्ट को रद्द करने की मांग को लेकर दाखिल याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट इस एक्ट की वैधानिकता का परीक्षण कर रहा है।
बता दें कि मार्च 2021 में कोर्ट ने वकील अश्वनी कुमार और विष्णु जैन की दो याचिकाओं पर नोटिस जारी किया था। हालांकि केंद्र सरकार की तरफ से अभी तक कोई जवाब दायर नहीं किया गया है। मथुरा निवासी देवकीनंदन ठाकुर द्वारा दायर याचिका में 1991 के अधिनियम की धारा 2, 3, 4 की वैधता को चुनौती दी गई है। याचिका में दावा किया गया है कि यह हिंदुओं, जैनों, बौद्धों और सिखों के उनके उपासना स्थलों और तीर्थयात्रा एवं उस संपत्ति को वापस लेने के न्यायिक उपचार का अधिकार छीनती है।
दरअसल, प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट यानी पूजा स्थल अधिनियम ऐसा कानून है, जो 15 अगस्त 1947 को मौजूद किसी भी उपासना स्थल के स्वरूप को बदलने पर पाबंदी लगाता है। बता दें कि वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा में श्री कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद के ऐतिहासिक स्थलों पर हिंदू पक्षों द्वारा स्वामित्व और पूजा करने के अधिकार के लिए नए मुकदमों ने 1991 के एक कानून को सुर्खियों में ला दिया था।
[आईएएनएस इनपुट के साथ]
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