आप टीवी पर अक्सर देखते होंगे कोंग्रेसी नेताओ को चिल्लाते, “अगर गांधी वाड्रा ख़ानदान भ्रष्टाचारी है तो मोदी उन्हें ज़ैल में क्यूँ नही डाल देता?”
न्यायालय को सबूत चाहिए होते है, ठोस, लिखित सबूत।
यस बैंक के संस्थापक राणा कपूर ने प्रियंका गांधी वाड्रा की पेंटिंग दो करोड़ रुपये में ख़रीदी। किसी पेंटिंग का कोई दाम नहीं होता है, सिवाय उसके जो ख़रीददार लगाए वही कीमत होता है। पेंटिंग अरबों में भी बिकती है, वही कैन्वस, वही लकड़ी का फ़्रेम, वही रंग। व उसी सामान से बनी पेंटिंग को हो सकता है कोई मुफ़्त में भी न ले। अगर कल कोई उद्योगपति प्रियंका गांधी वाड्रा के बच्चे की नर्सरी में काग़ज़ पर खींची गयी लाइनों वाले पेज को दो अरब में ख़रीद ले तो इसमें कुछ भी ग़ैरक़ानूनी, आपराधिक नही होगा।
समाजवाद में ऐसी शक्ति सदैव सरकार के पास रहेंगी ही, प्रियंका वाड्रा की पेंटिंग ऐसे ही दो करोड़ रुपये में बिकती रहेंगी, व आप ग़रीब रहेंगे, आपका बेटा बेरोज़गार रहेगा, व बेटी असूरक्षित रहेगी। न मोदी कुछ कर पाएगा, न कोई कोर्ट।
बदले में राणा कपूर के लिए प्रियंका वाड्रा ने क्या किया होगा? कुछ भी नहीं। उसने किसी फ़ाइल पर कुछ भी नहीं लिखा होगा, कोई फ़ोन नहीं किया होगा। हो सकता है उसने मनमोहन सिंह या चिदम्बरम को चाय पर बुलाया हो व बैंको के लिए वैसी नीति बनाने को कहा हो जिससे, यस बैंक को कई हज़ार करोड़ का फ़ायदा हो जाय। मतलब उसने अगर कुछ भी किया है तो उसका कही कोई सबूत नही होगा।
आप बताए, आप प्रधानमंत्री होते तो प्रियंका गांधी वाड्रा को कैसे ज़ैल भेजते अपनी पेंटिंग दो करोड़ रुपये में बेचने के लिए उस व्यक्ति को जिसने अब पता चला है कि आम लोगों को तेरह हज़ार करोड़ रुपये का चुना लगाया? बताइए। प्लीज़, बताईए ना!!!
आप पूछेंगे, हल क्या है?
प्रथम हल, सरकार के पास ऐसी कोई शक्ति नहीं होनी चाहिए जिससे वो किसी व्यवसायी को लाभ या हानि पहुँचा सके। ये काम बाज़ार करता है विकसित देशों में। लेकिन आप को समाजवाद भी चाहिए। समाजवाद में ऐसी शक्ति सदैव सरकार के पास रहेंगी ही, प्रियंका वाड्रा की पेंटिंग ऐसे ही दो करोड़ रुपये में बिकती रहेंगी, व आप ग़रीब रहेंगे, आपका बेटा बेरोज़गार रहेगा, व बेटी असूरक्षित रहेगी। न मोदी कुछ कर पाएगा, न कोई कोर्ट।
दूसरा हल, या ये कहे कि हल का दूसरा भाग, ये है कि लोकतंत्र में आवश्यक है कि वोटर बुद्धिमान हो व विवेक वाला हो जो इस पेंटिंग के लूटतंत्र को समझ सके, कि यह लूट-दर-पेंटिंग है या नहीं । अगर वोटर ऐसा नहीं है तो गांधी वाड्रा परिवार ऐसे ही लंदन में छुट्टी मनाता रहेगा, व वोटर का बेटा नौकरीयो की लाइन में खड़े जीवन बिता देगा। वोटर अगर नेता का भ्रष्टाचार न पहचान सके, व उस भ्रष्टाचार का वोटर के जीवन पर क्या असर पड़ता है, ये ना जान सके, व फिर भी भ्रष्टाचारी नेता को वोट देता रहे जाति या मुफ़्तखोरी के नाम पर, तो नेता मलाई खाएगा व वोटर भूखा मरेगा।
(ममता बैनर्जी भी पेंटिंग करती है, उनकी पेंटिंग भी करोड़ों में बिकती है।)
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