2019 का सेमी-फाइनल होगा मध्यप्रदेश चुनाव

कोई भी पार्टी एक ऐसे प्रदेश को खोना नहीं चाहेगी जिसकी सीमायें पांच राज्यों को प्रभावित करती हों |

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2019 का सेमी-फाइनल होगा मध्यप्रदेश चुनाव
2019 का सेमी-फाइनल होगा मध्यप्रदेश चुनाव

सभी पार्टियों का बीजेपी के खिलाफ मिलकर लड़ना, आम आदमी तथा कांग्रेस पार्टी की मजबूत सोशल मीडिया टीम का होना, यह सभी बातें इस बार बीजेपी को मध्यप्रदेश में परेशान कर सकती हैं |

हिंदुस्तान का दिल – मध्यप्रदेश एक ऐसा प्रदेश है जिसकी सीमायें पाँच बड़े राज्यों उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, छत्तीसगढ़ तथा राजस्थान को छूती हैं | एस.टी. या आदिवासियों की देश की सबसे बड़ी जनसँख्या इसी प्रदेश में रहती है | यही नहीं क्षेत्रफल के हिसाब से दूसरा तथा जनसँख्या के हिसाब से पांचवा सबसे बड़ा राज्य है | चन्द्रगुप्त और सिकंदर के समय के मालव गणराज्य से लेकर आवंती महाजनपद एवं मध्यप्रदेश तक यह राज्य भारत का अदभुत इतिहास अपने भीतर समेटे हुए है | जहाँ उत्तरप्रदेश से जुडा बुंदेलखंड अपनी विशेष संस्कृति को समेटे हुए है वहीँ गुजरात, महाराष्ट्र से लगा मालवा यहाँ का व्यापारिक केंद्र है | महान्कालेश्वर, ओम्कारेश्वर तथा हरसिद्धि जैसे कई सिद्ध स्थान इसी प्रदेश में हैं | इसीलिए राजनीति के क्षेत्र में भी इस प्रदेश का बहुत महत्त्व है क्योंकि यहाँ जिसकी सरकार होती है वह आस पास के पांच प्रदेशो में अपना असर डालती है | यही नहीं भारत को जोड़ने वाली कई रेलवे लाइन भी इस प्रदेश से होकर गुजरती हैं तथा दिल्ली से प्रदेश की राजधानी तक एवं प्रदेश की राजधानी से दिल्ली तक बहुत आसानी से पहुंचा जा सकता है | शायद यही कारण है की इस बार की चुनावी बिसात कांग्रेस एवं बीजेपी के बीच बिछ चुकी है |

आम आदमी पार्टी, समाजवादी पार्टी तथा बहुजन समाज पार्टी भी काफी सीटों पर अपनी किस्मत आजमा सकती हैं |

२००३ से मध्यप्रदेश में राज कर रही भाजपा सरकार जहाँ इस बार पूरी कोशिश करेगी की एंटी इनकमबेंसी के बाद भी सरकार बचा लें वहीँ दूसरी ओर कांग्रेस यह प्रयास करेगी की किसी तरह उनका पुराना राज वापस आ जाए | कांग्रेस की स्थिति इस समय देश में जिस तरह की है उसे देखते हुए बीजेपी को पिछली दो बार की तरह इस बार भी आसानी से चुनाव जीत जाना चाहिए था | मगर हाल ही में मंदसौर में हुए किसान आन्दोलन, पुराने कार्यकर्ताओं की नाराजगी तथा सामान्य वर्ग के हिन्दू वोटर का आरक्षण पर से नाराज होना आदि वजहों से बीजेपी की स्थिति थोड़ी कमजोर हुई है | वहीँ दूसरी और कांग्रेस में कार्यकर्ताओं का अत्यधिक जोश होने के बाद भी कमलनाथ, ज्योतिरादित्य, अरुण यादव, दिग्विजय सिंह , सुरेश पचोरी इत्यादि की गुटबाजी होने के कारण कांग्रेस भी बंटी हुई है तथा यही इनकी पिछले चुनावों में भी हार का कारण था |

जहाँ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तथा नए पार्टी अध्यक्ष राकेश सिंह जनता के बीच घूमकर तथा नयी नयी योजनायें लाकर पुराने कार्यकर्ताओं को तथा आम जनता को लुभाने में लगे हैं | वहीं कांग्रेस भी सभी वर्गों के तथा सभी नेताओं के चहेतों को उपाध्यक्ष पद देकर खुश कर रही है | इस बार का मुकाबला बराबरी का होने की सम्भावना है क्योंकि कर्नाटक चुनाव के बाद जहाँ बीजेपी ने यह सीखा है की सिर्फ 8 सीट कम रह जाने पर भी सभी पार्टियाँ कांग्रेस को समर्थन देकर उनकी सरकार बनवा देती हैं | वहीँ कांग्रेस का कर्नाटक के चुनाव के कारण मनोबल बड़ा हुआ है | दोनों ही पार्टियाँ इस बार मध्यप्रदेश में पूरा जोर आजमाने की कोशिश करेंगी | कांग्रेस के अध्यक्ष कमलनाथ ने जहाँ बीजेपी के तर्ज पर एक बूथ पर १० कार्यकर्त्ता की रणनीति अपनाई है तथा जीतने वाले उम्मीदवार को टिकट देने की घोषणा की है | वहीँ अटकले कुछ इस तरह हैं की चाणक्य माने जाने वाले भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह भी कई दिन मध्यप्रदेश में गुजार सकते हैं |

हालाँकि बीजेपी और कांग्रेस ही इस प्रदेश के मुख्य दल रहे हैं | मगर इस बार आम आदमी पार्टी, सपा तथा बसपा भी काफी सीटों पर अपनी किस्मत आजमा सकती हैं | जहाँ आम आदमी पार्टी अपने पुराने अन्ना आन्दोलन के समय के लोगों के साथ और दिल्ली की आईटी सेल के साथ प्रचार में उतरेगी वहीँ सपा मुस्लिम-यादव वोट बैंक तथा बसपा दलित वोट बैंक के बल पर चुनाव में उतर सकते हैं | सपा – बसपा इक्का दुक्का सीटों पर उत्तरप्रदेश से सटे इलाकों में अपना असर हर बार डालती रही हैं तथा आम आदमी पार्टी भी इस बार वोट काटने का काम कर सकती है | एक बात तो तय है की सत्ता में १५ साल तक रहने के कारण , यह सभी पार्टियाँ बीजेपी के खिलाफ ही प्रचार करने उतरेंगी | देश में बढ़ते दलित आन्दोलनों के कारण बसपा का वोट शेयर आदिवासी-दलित इलाको में बड सकता है | वहीँ कांग्रेस और विपक्षी दल हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवानी, कन्हैया और जे.एन.यू के छात्रों का समर्थन चुनाव प्रचार में ले सकते हैं | गुजरात से सटे इलाकों में हार्दिक पटेल के कुछ चक्कर लग भी चुके हैं तथा कुछ सूत्रों के अनुसार मध्यप्रदेश के आदिवासी इलाकों में वामपंथी एनजीओ भी सक्रीय हो गए हैं |

भारतीय जनता पार्टी तथा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कई सौगाते इस प्रदेश को दी है -कृषि के क्षेत्र में यह प्रदेश कई वर्षों से अव्वल नम्बर आ रहा है, बेटी बचाओ योजना इसी प्रदेश की देन है |

हाल ही के अख़बारों में छपी ख़बरों की माने तो बीजेपी इस बार कई मंत्रियों तथा मौजूदा विधायकों के टिकट काट सकती है क्योंकि उनकी रिपोर्ट अच्छी नहीं है वहीँ जिनके टिकट काटेंगे उनकी गुटबाजी तथा नाराजगी का सामना भी पार्टी को करना होगा | हालाँकि भारतीय जनता पार्टी तथा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कई सौगाते इस प्रदेश को दी है –कृषि के क्षेत्र में यह प्रदेश कई वर्षों से सारे देश में अव्वल नम्बर आ रहा है, बेटी बचाओ योजना इसी प्रदेश की देन है, इस बार स्वच्छता में भी प्रदेश के इंदौर – भोपाल अव्वल आये हैं | इसके आलावा दिग्विजय सिंह के समय की बिजली, पानी, सड़क की समस्या का भी काफी हद तक समाधान बीजेपी की सरकार ने किया है |

मगर इस बार सभी पार्टियों का बीजेपी के खिलाफ मिलकर लड़ना, आम आदमी तथा कांग्रेस पार्टी की मजबूत सोशल मीडिया टीम का होना, एंटी-इनकमबेंसी फैक्टर तथा कार्यकर्ताओं की नाराजगी यह सभी बातें इस बार बीजेपी को मध्यप्रदेश में परेशान कर सकती हैं | वहीँ यदि कांग्रेस में वही गुटबाजी अभी भी रही तो उनका भी बंटाधार होना निश्चित है | जो भी हो इस बार मामला ५०-५० का है तथा किसी भी पार्टी की जरा सी मेहनत में चूक उसे प्रदेश से बाहर कर सकती है | प्रधानमंत्री मोदी के लिए भी मध्यप्रदेश का चुनाव बहुत आवश्यक रहेगा क्योंकि इस चुनाव के कुछ ही महीने बाद लोकसभा चुनाव होना है तथा कोई भी पार्टी एक ऐसे प्रदेश को खोना नहीं चाहेगी जो देश के बिलकुल मध्य में स्थित हो तथा जिसकी सीमायें पांच राज्यों को प्रभावित करती हों |

ध्यान दें:
1) यहां व्यक्त विचार लेखक के हैं और पी गुरूस के विचारों का जरूरी प्रतिनिधित्व या प्रतिबिंबित नहीं करते हैं

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