उच्च न्यायालय ने काले धन के मामले में रॉबर्ट वाड्रा के खिलाफ आयकर विभाग द्वारा कर आकलन की अनुमति दी। अंतिम आदेश उच्च न्यायालय मामले के बाद

दिल्ली उच्च न्यायालय का आदेश है कि काला धन अधिनियम (ब्लैक मनी एक्ट) से संबंधित लंदन की संपत्ति अधिग्रहण मामले में आयकर विभाग (आईटी) वाड्रा के खिलाफ कार्रवाई कर सकता है!

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दिल्ली उच्च न्यायालय का आदेश है कि काला धन अधिनियम (ब्लैक मनी एक्ट) से संबंधित लंदन की संपत्ति अधिग्रहण मामले में आयकर विभाग (आईटी) वाड्रा के खिलाफ कार्रवाई कर सकता है!
दिल्ली उच्च न्यायालय का आदेश है कि काला धन अधिनियम (ब्लैक मनी एक्ट) से संबंधित लंदन की संपत्ति अधिग्रहण मामले में आयकर विभाग (आईटी) वाड्रा के खिलाफ कार्रवाई कर सकता है!

दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि आयकर अधिकारी रॉबर्ट वाड्रा के खिलाफ लंदन संपत्ति की खरीद से जुड़े काले धन अधिनियम से संबंधित मामले में कार्यवाही कर सकते हैं, लेकिन कहा कि अंतिम आदेश उच्च न्यायालय में मामले के बाद पारित किया जायेगा। न्यायमूर्ति राजीव शकधर और न्यायमूर्ति तलवंत सिंह की खंडपीठ ने कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा के पति रॉबर्ट वाड्रा को काला धन अधिनियम 2015 (अघोषित विदेशी आय और संपत्ति) के तहत अधिकारियों द्वारा उन्हें जारी नोटिस पर अपना जवाब दाखिल करने के लिए तीन सप्ताह का समय दिया। मामले की अगली सुनवाई 10 अगस्त को होगी।

काला धन मामले के अन्य सभी आरोपियों की तरह, वाड्रा का मुख्य तर्क यह था कि काला धन अधिनियम 2015 में पारित किया गया था और उससे पिछली खरीद के लिए शुल्क नहीं लिया जाना चाहिए। पूर्व वित्त मंत्री चिदंबरम के परिवार वालों और बेटे कार्ति का भी यही तर्क था।

सीसी थंपी एक केरलवासी है जो खाड़ी क्षेत्र में एक बड़ा शराब व्यवसाय और होटल चला रहा है और सोनिया गांधी के परिवार के सदस्यों के बहुत करीब है।

दिसंबर 2018 में, रॉबर्ट वाड्रा को अतिरिक्त आयकर आयुक्त, सेंट्रल रेंज-VII के कार्यालय से काला धन अधिनियम की धारा 10(1) के तहत एक संचार प्राप्त हुआ था, जिसमें उन्हें वर्ष 2019-2020 के लिए मूल्यांकन के संबंध में कुछ जानकारी प्रस्तुत करने के लिए कहा गया था। आयकर विभाग के अनुसार 2010 में वाड्रा ने ब्लैक मनी एक्ट का उल्लंघन करते हुए 12 एलर्टन हाउस, ब्रायनस्टन स्क्वायर, लंदन में 1.9 मिलियन जीबीपी में एक संपत्ति का लाभकारी स्वामित्व हासिल किया था।

इस खबर को अंग्रेजी में यहाँ पढ़े।

आयकर विभाग के अनुसार, खरीद संजय भंडारी द्वारा किसी स्काईलाइट इन्वेस्टमेंट एफजेडई (यूएई) को संपत्ति की बिक्री के माध्यम से की गई थी, जिसकी शेयरधारिता 2009 से 2016 तक सीसी थंपी से जीवी चेरू से याह्या अब्राहम पर स्थानांतरित हो गई थी। मनोज अरोड़ा (वाड्रा के पीए), सुमित चड्ढा और वाड्रा के बीच 18 ईमेल के आदान-प्रदान के आधार पर अधिकारियों ने आरोप लगाया कि वाड्रा ने संपत्ति में व्यापक नवीनीकरण कार्य किया।

पीगुरूज ने रॉबर्ट वाड्रा के बेनामी एजेंटों संजय भंडारी और सीसी थंपी पर लेखों की एक श्रृंखला प्रकाशित की है। संजय भंडारी हथियारों के लेन-देन में भी शामिल था और राजनैतिक दलों से परे कई राजनेताओं के साथ इसके संबंध हैं। हिंदुस्तान टाइम के कार्यकारी संपादक शिशिर गुप्ता को भंडारी के साथ भ्रष्ट संबंधों के लिए पकड़ा गया था। जैसे ही मोदी सरकार के तहत एजेंसियों ने कार्रवाई शुरू की, भंडारी नेपाल के रास्ते लंदन भाग गया। यह सर्वविदित है कि भाजपा के अंदर कई लोगों ने उसे भारत से भागने में मदद की[1]

सीसी थंपी एक केरलवासी है जो खाड़ी क्षेत्र में एक बड़ा शराब व्यवसाय और होटल चला रहा है और सोनिया गांधी के परिवार के सदस्यों के बहुत करीब है। थंपी जिन्होंने बार अटेंडी के रूप में अपना करियर शुरू किया और बाद में संयुक्त अरब अमीरात के अजमान में बिचौलिया तस्कर (बूटलेगर) बन गया और 90 के दशक के मध्य तक अरबपति बन गया। उसे जनवरी 2020 में प्रवर्तन निदेशालय ने गिरफ्तार किया था और अब वह जमानत पर बाहर है। थम्पी लोकप्रिय रूप से कल्लू (केरल की स्थानीय शराब) थम्पी के रूप से जाना जाता है और जब सोनिया गांधी के परिवार के सदस्य संयुक्त अरब अमीरात जाते हैं तो थंपी सभी सदस्यों की मेजबानी करता है[2]

वाड्रा की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता और कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने तर्क दिया कि संपत्ति मूल रूप से वर्टेक्स नाम की एक कंपनी की थी, जो संजय भंडारी के स्वामित्व में थी और यह साबित करने के लिए रिकॉर्ड पर एक भी दस्तावेज मौजूद नहीं है कि वाड्रा किसी भी पक्ष से संबंधित हैं। उन्होंने यह भी कहा कि यह साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं है कि संपत्ति के संबंध में वाड्रा द्वारा किसी भी पक्ष को भुगतान किया गया था। सिंघवी ने कहा कि विचाराधीन 18 ईमेल में से केवल एक वाड्रा ने सुमित चड्ढा को भेजा था और वह केवल “मरम्मत के बारे में भुगतान” पर था[3]

सिंघवी ने यह भी तर्क दिया कि काला धन अधिनियम जो 2015 में पारित किया गया था, उसे पूर्वव्यापी रूप से इस मामले में लागू नहीं किया जा सकता है। आयकर अधिकारियों का प्रतिनिधित्व करते हुए, सरकार के वकील (सॉलिसिटर जनरल) तुषार मेहता ने कहा कि 2018 में नोटिस जारी होने के तीन साल बाद मूल्यांकन के खिलाफ उच्च न्यायालय का रुख करना वाड्रा की ओर से दुर्भावनापूर्ण है। उन्होंने कहा कि वाड्रा को 31 मई की समय सीमा तक अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया जाना चाहिए और अंतिम मूल्यांकन आदेश पारित करने की अनुमति दी जानी चाहिए।

अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल बलबीर सिंह ने भी यह तर्क दिया कि लंदन में “संपत्ति के विकास” पर चर्चा करने वाले “एक के बाद एक कई ईमेल” थे। यह देखते हुए कि काला धन अधिनियम की पूर्वव्यापीता का मुद्दा अन्य याचिकाओं में भी अदालत के समक्ष विचाराधीन था, अदालत ने उनके साथ वाड्रा की याचिका पर भी सुनवाई करने का फैसला किया। पीठ ने कहा – “सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के कारण सीमा लागू नहीं हो सकती। उन्हें समय दें। आप मूल्यांकन के साथ आगे बढ़ें लेकिन कोई अंतिम आदेश नहीं है। हमें आपके और उनके तर्क पर विचार करना होगा।”

संदर्भ:

[1] Why is MSM silent over involvement of Shishir Gupta of Hindustan Times with arms dealer Bhandari?Jun 02, 2016, PGurus.com

[2] ED slaps Rs.288 crore FEMA notice on Janpath’s Dubai man C C ThampiFeb 25, 2017, PGurus.com

[3] “Assessment can go on but no final order”: Delhi High Court in Black Money Act proceeding against Robert Vadra in connection with London propertyMay 28, 2021, Bar and Bench

1 COMMENT

  1. […] “रॉबर्ट वाड्रा के खिलाफ काले धन के मामलों में भी यही स्थिति है। साथ ही, वित्त मंत्रालय और इंडियन ओवरसीज बैंक (आईओबी) ने चिदंबरम की पत्नी नलिनी से जुड़े भूमि हड़पने के मामले में आरोपी बैंक अधिकारियों के खिलाफ सीबीआई को अभियोजन की मंजूरी नहीं दी है। सीबीआई ने इस तथ्य को सितंबर 2020 में दिल्ली उच्च न्यायालय को बताया था। यह स्पष्ट रूप से इंगित करता है कि वित्त मंत्रालय में कई लोग सह-आरोपी अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी नहीं देकर चिदंबरम को बचाने की कोशिश कर रहे हैं। एयरसेल-मैक्सिस और आईएनएक्स मीडिया मामलों में भी ऐसा ही हुआ है। सरकार द्वारा एयरसेल-मैक्सिस और आईएनएक्स मीडिया मामलों में अभियोजन की मंजूरी देने के बाद भी कई सह-आरोपी अधिकारियों को निलंबित नहीं किया गया है। इसी तरह मामले में देरी या छेड़छाड़ की जा रही है। […]

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