केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू संविधान का हवाला देकर जजों को दी नसीहत
केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा है कि देश के लोग जजों को नियुक्त करने के लिए बने कॉलेजियम सिस्टम से खुश नहीं हैं। उन्होंने कहा कि संविधान की आत्मा के अनुसार जजों को नियुक्त करने की जिम्मेदारी सरकार की है।
अहमदाबाद में एक कार्यक्रम में किरेन रिजिजू ने कहा कि उन्होंने महसूस किया है कि जज आधा समय नियुक्तियों की पेचीदगियों में ही व्यस्त रहते हैं, इसकी वजह से न्याय देने की उनकी जो मुख्य जिम्मेदारी है उस पर असर पड़ता है। कानून मंत्री किरेन रिजिजू इससे पहले भी कॉलेजियम सिस्टम पर सवाल उठा चुके हैं। पिछले महीने उन्होंने उदयपुर में कहा था कि उच्च न्यायपालिका में नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली पर फिर से विचार करने की आवश्यकता है। बता दें कि कॉलेजियम सिस्टम से सुप्रीम कोर्ट और देश के हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति की जाती है। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की अध्यक्षता भारत के चीफ जस्टिस होते हैं और इसमें 4 दूसरे वरिष्ठतम जज शामिल होते हैं।
जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया से जुड़े एक सवाल का जवाब देते हुए किरेन रिजिजू ने कहा कि 1993 तक भारत में सभी जजों की नियुक्ति कानून मंत्रालय द्वारा भारत के मुख्य न्यायाधीश के साथ परामर्श करके की जाती थी। तब हमारे पास प्रतिष्ठित न्यायाधीश थे। किरेन रिजिजू ने कहा कि जजों की नियुक्ति को लेकर संविधान में स्पष्ट प्रावधान है।
संविधान कहता है कि भारत के राष्ट्रपति जजों की नियुक्ति करेंगे। इसका मतलब यह है कि कानून मंत्रालय भारत के मुख्य न्यायाधीश के साथ परामर्श करके जजों की नियुक्ति करेगा। कानून मंत्री ने कहा कि 1993 में सर्वोच्च न्यायालय ने परामर्श को सहमति के रूप में परिभाषित किया। किसी दूसरे क्षेत्र में परामर्श (Consultation) को सहमति (Concurrence) के रूप में परिभाषित नहीं किया गया है बल्कि न्यायिक नियुक्तियों में ऐसा किया गया है।
केंद्र सरकार हालांकि सरकार कॉलेजियम की सिफारिशों के संबंध में आपत्तियां जता सकती है या स्पष्टीकरण मांग सकती है, लेकिन अगर ये पांच सदस्यीय कॉलेजियम उन्ही नामों को फिर से दोहराता है तो सरकार इन नामों को मंजूरी देने के लिए बाध्य है।
किरेन रिजिजू ने कहा कि मैं जानता हूं कि जजों की नियुक्ति की कॉलेजियम व्यवस्था से देश की जनता खुश नहीं है। अगर हम संविधान की भावना से चलते हैं तो जजों की नियुक्ति करना सरकार का काम है। दूसरी बात यह है कि भारत को छोड़कर दुनिया में कहीं भी यह प्रथा नहीं है कि न्यायाधीश अपने भाइयों को न्यायाधीश नियुक्त करते हैं।
कानून मंत्री ने कहा कि न्यायाधीशों के चयन के लिए परामर्श की प्रक्रिया इतनी जटिल है कि, मुझे ऐसा कहते हुए खेद है कि इससे ग्रुपिज्म विकसित होता है। नेताओं के बीच राजनीति तो लोग देख सकते हैं लेकिन न्यायपालिका के अंदर चल रही राजनीति को नहीं जानते। कानून मंत्री ने कहा कि एक न्यायाधीश आलोचना से तभी ऊपर होगा यदि वह दूसरे न्यायाधीश के चयन में शामिल नहीं है। लेकिन अगर वह प्रशासनिक कार्यों में शामिल है, तो वह आलोचना से ऊपर नहीं है।
एक सवाल के जवाब में किरेन रिजिजू ने कहा कि कई न्यायाधीश ऐसी टिप्पणियां करते हैं जो कभी भी फैसले का हिस्सा नहीं बनतीं। जजों के साथ चर्चा के दौरान, मैंने उनसे इससे परहेज करने का अनुरोध किया है, खासकर तब जब अदालती कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग हो रही हो।
[आईएएनएस इनपुट के साथ]
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