क्या भारत की विदेश नीति में एक नया रणनीतिक इरादा है?

विदेश मंत्री (एमईए) ने व्यक्त किया कि भारत की विकसित विदेश नीति की यात्रा में छह चरण हैं और आज जो व्यापक परिवर्तन हो रहा है वह अभूतपूर्व है।

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क्या भारत की विदेश नीति में एक नया रणनीतिक इरादा है?
क्या भारत की विदेश नीति में एक नया रणनीतिक इरादा है?

45 मिनट के भाषण को सुनते हुए मैं व्यवसाय की दुनिया से जुड़े कई सिद्धान्तों की प्रासंगिकता की उपयुक्तता से प्रभावित हुआ।

भारत के विदेश मंत्री (एमईए), सुब्रह्मण्यम जयशंकर ने नवंबर में रामनाथ गोयनका व्याख्यान दिया, जिसमें उन्होंने भारत की विदेश नीति में एक नई दिशा की ओर इंगित किया।

कुल मिलाकर, विदेश मंत्री (एमईए) ने व्यक्त किया कि भारत की विकसित विदेश नीति की यात्रा में छह चरण हैं और आज जो व्यापक परिवर्तन हो रहा है वह अभूतपूर्व है।

एमईए ने तब आज के जटिल मुद्दों का अवलोकन किया, जिसके बारे में उन्होंने बताया कि वे पाँच ख़्वांचे में गिर सकते हैं, हालाँकि ख़्वांचे के बीच कुछ अतिच्छादन (ओवरलैप) है। कुछ में हमें जोखिम लेने की आवश्यकता हो सकती है, दूसरों में खरीदार शक्ति के प्रयोग करने की, कुछ और में सावधानी से सोचने की जरूरत है।

रणनीतिक इरादा इसे जी 3, भारत को विश्व व्यवस्था के प्रमुख ध्रुवों में से एक बनाने का होना चाहिए। अन्य दावेदार, रूस और यूरोपीय संघ को गंभीर समस्याएं हैं।

भारत के लक्ष्यों का विवरण

45 मिनट के भाषण को सुनते हुए मैं व्यवसाय की दुनिया से जुड़े कई सिद्धान्तों की प्रासंगिकता की उपयुक्तता से प्रभावित हुआ[1]। शायद यह आश्चर्य की बात नहीं है, क्योंकि व्यवसाय की रणनीति अनिवार्य रूप से प्रथमतः सैन्य और राष्ट्रीय रणनीति का दोहराव है।

अधिकांश प्रासंगिक रणनीतिक इरादे और सहवर्ती मुख्य क्षमता की धारणाएं हैं, साथ ही यह धारणा भी है कि एक विकसित प्रणाली के एक चरण में नेता अक्सर अगले चरण में नेतृत्व को बनाए नहीं रखते हैं।

रणनीतिक इरादे, जिसे पहले प्रबंधन गुरु सीके प्रहलाद ने व्यक्त किया, कहते हैं कि संगठनों को एक अच्छी तरह से कल्पना की गई दीर्घकालिक लक्ष्य होना चाहिए, जो कि मात्रात्मक है।

लक्ष्य विवरणों से पृथक, रणनीतिक इरादे इतने सटीक हैं की उनके प्रगति औसत को मापे जा सकते है। इसके अलावा, आशय एक महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य है, अर्थात जो अभिनव प्रयास के बिना नहीं आएगा। इसके अलावा, वे रोमांचक लक्ष्य हैं जो लोगों को रचनात्मक रूप से सोचने के लिए प्रेरित करते हैं।

कैनन ने जेरॉक्स को कैसे हराया

उदाहरण के लिए, अनुभवहीन कैनन का लक्ष्य था, “10 साल में ज़ेरॉक्स को हराना”। और वास्तव में उन्होंने खेल के नियमों को बदलकर इस लक्ष्य को हासिल किया: बड़े, विभाग के आकार के उत्पादों के बजाय छोटे, पोर्टेबल, व्यक्तिगत कॉपियर।

रणनीतिक इरादे को पारंपरिक रणनीतिक योजना के साथ उलझाया नहीं जाना चाहिए, जो एक मध्यम-अवधि के उद्देश्य में वर्तमान क्षमता को बैठाने का प्रयास करता है। इरादा एक खेल परिवर्तक (गेम-चेंजर) है।

रणनीतिक इरादे का एक दिलचस्प उदाहरण है निम्नलिखित बयान (संभवतः शंकित) जिसका श्रेय जॉर्ज केनन को दिया जाता है, जिन्होंने अमेरिका की विदेश नीति के लक्ष्यों को निम्नानुसार व्यक्त किया है (मैं विवरण देता हूं):

“अमेरिका में दुनिया की आबादी का 8% है, लेकिन वह दुनिया के 35% संसाधनों का आनंद लेता है। हमारी विदेश नीति का लक्ष्य इसे उसी तरह बनाए रखना है”। उन्होंने बिल्कुल यही किया हैं।

इस खबर को अंग्रेजी में यहाँ पढ़े।

चीन ने अपने रणनीतिक इरादे को स्पष्ट किया है: रणनीतिक उद्योगों में नेतृत्व के लिए 2025 में निर्मित, और 2050 तक आर्थिक और सैन्य शक्ति में प्रभुत्व, उनकी क्रांति का शताब्दी।

भारत इस तरह के दुस्साहसी या स्पष्ट इरादे को स्पष्ट करने में मौन रहा है। यह सामान्य प्रदर्शन करने वाला बनकर ही संतुष्ट है इस तथ्य के बावजूद भी कि 2030 तक, इसके जापान और जर्मनी को पछाड़कर दुनिया में तीसरी सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति बनने की संभावना है।

विदेश मंत्रालय के बयानों से संकेत मिलता है कि भारत के लिए अभी एक रणनीतिक इरादा तैय्यार है। 2025 तक $5 ट्रिलियन तक पहुंचने के बारे में भी स्पष्ट बयान दिया गया है, हालांकि इसकी संभावना नहीं है क्योंकि इसके लिए निरंतर जीडीपी विकास स्तर की आवश्यकता होगी जो इस समय अवास्तविक लगते हैं।

रणनीतिक इरादा इसे जी 3, भारत को विश्व व्यवस्था के प्रमुख ध्रुवों में से एक बनाने का होना चाहिए। अन्य दावेदार, रूस और यूरोपीय संघ को गंभीर समस्याएं हैं।

एक आवश्यक शर्त भी है, जो मुख्य दक्षताओं की ओर ले जानेवाले संसाधन और क्षमताएं हैं। भारत की मुख्य दक्षताएं क्या है इसके बारे में कई कठिन सवाल उठते हैं। ‘सेवाएँ’ एक अच्छा जवाब नहीं है। हमारे अपर्याप्त शोध एवं विकास के चलते ‘प्रौद्योगिकी’ भी सही नहीं है।

अधिक से अधिक यथार्थवाद की आवश्यकता है: चीन और पाकिस्तान के साथ अनसुलझी सीमाएँ और असमान सीमा ‘वार्ता’ एक अनावश्यक अड़चन है और इनके समाधान की आवश्यकता है।

पहलू

उद्योग में यह पूर्वनिर्धारित है कि चरण परिवर्तन आमतौर पर अराजकता पैदा करता है, और नए चैंपियन उभरकर आते हैं। कंप्यूटर उद्योग इसका एक अच्छा उदाहरण है। प्रारंभ में, आईबीएम मेनफ्रेम लेकर आया; फिर डीईसी ने मिनीकंप्यूटर लाया; अगला सन अपने इंजीनियरिंग कार्य केंद्र लेकर आया।

अंत में विंडोज पीसी के साथ माइक्रोसॉफ्ट और इंटेल आए। और आज, कई मायने में, ऐपल और गूगल के नेतृत्व में, मोबाइल फोन ने पीसी की जगह ले ली है।

नेतृत्व ने हाथ बदला और खेल का मैदान बदल गया: यही मानक है।

आइए हम भारत की विदेश नीति के वातावरण के चरणों पर चर्चा करें जिस तरह एमईए ने उनकी पहचान की थी :-

1) 1946-62, गुटनिरपेक्ष आंदोलन आशावाद, द्विध्रुवीय शीत युद्ध विश्व दृष्टिकोण

2) 1962-71: यथार्थवाद और 1962 के सदमे से उबरना। नाम से परे सोचना

3) 1971-1991: क्षेत्रीय अभिकथन, लेकिन आईपीएफके दुर्घटना। चीन-अमेरिकी मेल-मिलाप और पारंपरिक मित्र यूएसएसआर का पतन। शक्तिशाली यूएस-चीन-पाक समझौता विकसित होता है

4) 1991-1998: एकध्रुवीय दुनिया, रणनीतिक स्वायत्तता के लिए भारत की खोज, परमाणु विकल्प

5) 1998-2014: एकध्रुवीयता में गिरावट, भारत एक संतुलन शक्ति की कोशिश करता है। अमेरिका के साथ परमाणु समझौता। लेकिन ब्रिक्स और जलवायु परिवर्तन द्वारा चीन से जुड़ते हैं

6) 2014 के बाद: चीन की गति से निपटना। अमेरिका पीछे हट गया। जापान के पुन: उदय के साथ (इंडो पैसिफिक) पर जोर दिया। बहुध्रुवीयता। ईयू अंदर की तरफ मुड़ता है

मुद्दा यह है कि जैसे-जैसे ये चरण बदलते हैं, भारत के अवसर और विकल्प भी बदलते जाते हैं। दोस्त और दुश्मन अलग-अलग धारणा लेते हैं। भारत को बदलना होगा और प्रतिकूल परिस्थितियों में खुद की रक्षा करनी होगी।

पुरानी नीतियां काम नहीं आएंगे, भारत को स्थिति के अनुरूप खुद को ढालना चाहिए। निश्चयपूर्वक होने की भी जरूरत है, और उसके लिए आत्मविश्वास की आवश्यकता है। भारत वहां पहुंचने लगा है।

कई कठिनाइयों में से एक यह है कि विदेशी सेवा अधिकारियों का एक कैडर है जिसने गुटनिरपेक्षता के सिद्धांत का समावेशन किया है, भले ही आज का मंत्र बहु-संरेखण का है।

प्रशिक्षण और अभ्यास की कमी है: सामान्य भारतीय रवैया है कि वे अंतिम क्षण के वीरतापूर्ण कारनामे के साथ तैयारी की कमी को पूर्ण कर सकते हैं। इससे काम नहीं बनता। उन्हें खेल सिद्धांत सिखाई जानी चाहिए और जटिल परिदृश्यों के कंप्यूटर सिमुलेशन द्वारा कसरत करवाया जाना चाहिए।

इसके अलावा, वर्तमान परिवेश अधिक जटिल है, जिसमें अक्सर बदलते गठबंधन और प्रभाव हैं, विशेष रूप से हमारे अपने पिछवाड़े में: देखें कि कैसे मालदीव, श्रीलंका और नेपाल को चीनियों द्वारा लुभाया जा रहा है, क्योंकि उन्होंने हिंद महासागर में भारत के प्राकृतिक प्रभुत्व का मुकाबला करना शुरू किया हैं।

अधिक से अधिक यथार्थवाद की आवश्यकता है: चीन और पाकिस्तान के साथ अनसुलझी सीमाएँ और असमान सीमा ‘वार्ता’ एक अनावश्यक अड़चन है और इनके समाधान की आवश्यकता है।

दक्षिण चीन सागर के छल-कपट और व्यापार युद्ध और भी खराब होंगे, और अमेरिका और चीन के बीच ‘थ्यूसिडाइड्स ट्रैप‘ युद्ध हो सकता है। भारत को निगरानी रखते हुए युद्ध से दूर रहना चाहिए और आने वाले अवसरों का फायदा उठाने की कोशिश करनी चाहिए। हमारे पड़ोस में ये दिलचस्प समय हैं।

ध्यान दें:
1. यहां व्यक्त विचार लेखक के हैं और पी गुरुस के विचारों का जरूरी प्रतिनिधित्व या प्रतिबिंबित नहीं करते हैं।

संदर्भ:

[1] Full speech: EAM Dr S Jaishankar delivers 4th RNG lecture 2019 | Indian Express Nov 14, 2019, YouTube.com

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