हिन्दू, हिंदुत्व और हिंदुस्तान

जिस प्रकार से एक "मनुष्य" की पहचान उसके "मनुष्यता" से होती है, उसी प्रकार से "हिन्दू" की आत्मा ही "हिंदुत्व" है। अगर कोई मनुष्य समाज में कोई गलत काम करता है, अथवा किसी गरीब और परेशान व्यक्ति की मदद के लिए आगे नहीं आता, तो हम कह सकते हैं कि उस व्यक्ति में "मनुष्यता" नहीं है।

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जिस प्रकार से एक
जिस प्रकार से एक "मनुष्य" की पहचान उसके "मनुष्यता" से होती है, उसी प्रकार से "हिन्दू" की आत्मा ही "हिंदुत्व" है। अगर कोई मनुष्य समाज में कोई गलत काम करता है, अथवा किसी गरीब और परेशान व्यक्ति की मदद के लिए आगे नहीं आता, तो हम कह सकते हैं कि उस व्यक्ति में "मनुष्यता" नहीं है।

आखिर हिन्दू क्या है और वह किस प्रकार की जीवन शैली को जीने की प्रेरणा देता है।

हाल ही में कोरोना संकट के दौरान भारतीय हिन्दू समाज ने हिन्दू पर्वों के दौरान ईश्वर को  याद किया, इस बीच, यह विषय उठाना बिल्कुल हीसार्थक है की वास्तव में हिन्दू धर्म क्या है। आज के समय के कोरोना संकट काल के दौरान संकट मोचन हनुमान जी याद आते हैं। एक विषय और भी है जो अक्सर एक ख़ास तरह के बुद्धिजीवी वर्ग के द्वारा प्रसारित किया जाता है, इन तथाकथित बुद्धिजीवियों का तर्क रहता है कि मंदिरों के स्थान पर अस्पतालों के साथ-साथ विश्वविद्यालयों को स्थापित करना चाहिए। इनदोनों विषयों को समझने के लिए यह समझना जरूरी है की, आखिर हिन्दू क्या है और वह किस प्रकार की जीवन शैली को जीने की प्रेरणा देता है।

मंदिर और मठ सामने आकर भारतीय जनमानस को हिन्दू संस्कृति से परिचित कराते रहते हैं। विश्व भर में हिन्दू धर्म पहले से अपनी पहचान बना चूका है एवं बहुत सारे विदेशी लोग हिन्दू जीवन शैली को अपना चुके हैं।

हिंदुत्व और हिन्दू धर्म ये दोनों ही शब्द “हिन्दू” शब्द से निकले हुए हैं, हिन्दू धर्म वह धर्म है जो सब हिन्दुओं का सामान्य धर्म है। सावरकर जी के अनुसार हर वह मनुष्य हिन्दू है जो इस भारत भूमि में पला-बढ़ा है और जिसके धर्म की उत्पत्ति एवं श्रद्धा इस भारत भूमि में है। इस प्रकार से वेदों को मानने वाले, बुद्ध और जैन धर्म को मानने वाले, सिख, पहाड़ों में रहनेवाली जनजातियां हिन्दू हुए। जिस प्रकार से एक “मनुष्य” की पहचान उसके “मनुष्यता” से होती है, उसी प्रकार से “हिन्दू” की आत्मा ही “हिंदुत्व” है। अगर कोई मनुष्य समाज में कोई गलत काम करता है, अथवा किसी गरीब और परेशान व्यक्ति की मदद के लिए आगे नहीं आता, तो हम कह सकते हैं कि उस व्यक्ति में “मनुष्यता” नहीं है। हिंदुत्व उन सारे हिन्दू तत्वों का सार है जो भारतीय चित्त को दर्शाता है। आप सहज ही कल्पना कर सकते हैं कि अगर कोई व्यक्ति, बुद्धिजीवी या जमात “हिंदुत्व” पर भरोसा न करता हो तो वह कैसा होता होगा, कैसा दिखाई देता होगा, आज इस कोरोना संकट के दौरान हम लोग सब कुछ अपनी आँखों से देख एवं सुन रहे हैं और इन विषयों पर प्रत्यक्ष को प्रमाण की बिल्कुल भी जरूरत नहीं है।

जहाँ तक अस्पतालों और विश्वविद्यालयों को खोलने की बात है, निश्चितरूप से ये संस्थाएं स्वास्थ्य एवं शिक्षा की दृष्टि से अपना महत्त्वपूर्ण योगदानकरते हैं। हिन्दू मंदिरों और मठों की उपस्थिति से हिन्दू समाज को समय-समय पर मार्गदर्शन और दृष्टि मिलती रहती है और इस रूप में मानव समाजके आध्यात्मिक विकास में एक महत्वपूर्ण योगदान देती हैं। खास तौर पर जब भारतीय हिन्दू समाज आधुनिकता के दौर में अपनी संस्कृति और जड़ों सेदूर होता जाता है, ये मंदिर और मठ सामने आकर भारतीय जनमानस को हिन्दू संस्कृति से परिचित कराते रहते हैं। विश्व भर में हिन्दू धर्म पहले से अपनी पहचान बना चूका है एवं बहुत सारे विदेशी लोग हिन्दू जीवन शैली को अपना चुके हैं।

यह बात समझ से परे है जब इस राष्ट्रीय संकट के समय कुछ कथित वामपंथी, उदारवादी एवं सेक्युलर जमात के लोग अक्सर ये तर्क देते हैं की मंदिर और धार्मिक स्थलों को बनाने से अच्छा होता की चिकित्सालयों एवं विश्वविद्यालयों का निर्माण किया जाता। ऐसे लोग यह मान चुके हैं कि हरतरह के रोग और रोगी, मानव स्वास्थ्य और जीवनशैली अस्पताल मात्र में चले जाने से ठीक हो जाती है। ये भूल जाते हैं, आजकल होने वाली गंभीर बीमारियां मानव आचार-विचार एवं जीवन शैली से जुडी हुई है और वह अस्पताल मात्र में जाने से ठीक नहीं हो सकती, इसके लिए तो विषय की गहराइयों में उतरने की जरूरत है। इसी प्रकार विश्वविद्यालय भी ज्ञान अर्जन का एकमात्र केंद्र नहीं हैं। अगर ऐसा होता तो विश्वविद्यालय के छात्र कोचिंग में नहीं जाते या इंटरनेट पर कोई कोर्स नहीं कर रहे होते। निश्चितरूप से, एक तय समय अवधि में, कक्षा के अंदर, शिक्षकों द्वारा दिए हुए लेक्चर छात्रों का संपूर्ण विकास करने में असफल साबित होते हैं।

ऐसा नहीं है की लोग हिन्दू धर्म को नहीं समझते, खास तौर पर तब, जब कि एक बड़ी संख्या में लोग रामायण, महाभारत, उपनिषद्, पंचतंत्र की कहानियों को सुनकर बड़े होते हैं। समय के साथ-साथ जैसे-जैसे एक सामान्य भारतीय की बुद्धि का विकास होता जाता है, वह ये समझता जाता है कि हिंदू धर्म ध्यान, भक्ति और अंतर्दृष्टि की योग परंपराओं के साथ ही साथ एक महान आध्यात्मिक मार्ग है, जिसमें अनुष्ठान और प्रार्थना के करने के तरीके उतना महत्व नहीं रखते जितना की सोच। लेकिन जब भी विश्व-स्तर पर बात होगी, मंत्र, ध्यान, प्राण, कुंडलिनी, चक्र और आत्मबोध पर, हिन्दू धर्म स्वयं में एक अद्वितीय धर्म साबित होगा।

कोई जरूरी नहीं कि हिन्दू परिवार में जन्म ले लेने मात्र से उसको “कट्टर हिन्दू” होना पड़ेगा, लेकिन दूसरी जगह ऐसा नहीं है। पूर्व में, हिन्दू धर्म पर बहुत सारे आक्रमण हुए लेकिन इन सबके बावजूद हिन्दू धर्म की सार्थकता कम नहीं हुई है।

अगर, इसके बावजूद भी ऐसे बुद्धिजीवी मंदिर स्थापना का पुरजोरविरोध करते हैं, तो क्या कारण हो सकता है, साथ ही साथ ये लोग राष्ट्रविरोधी बातों और शहरी नक्सलवाद के पूरजोर समर्थक हैं। यह इन की सोची समझी कुंठित मानसिकता को दर्शाता है। मंदिर एवं मठ अपने सामाजिक दायित्वों को निभाने के साथ-साथ आपदा के समय भी हमेशा हीसरकारों, सामाजिक संगठनों एवं जनहित के कल्याण – हेतु दान करने में सबसे आगे रहते हैं, इसमें कुछ छिपा नहीं है। आज के समय में कोरोना वायरस जिसे हम चीनी वायरस भी कहते हैं, और अब एक जाहिल जमात द्वारा बढ़ाई और प्रसारित तकलीफ़ के बावजूद भी मंदिर एवं हिन्दू मठ कोरोना वायरस के खिलाफ इस लड़ाई में पुरजोर सहयोग कर रहे हैं।

देखा जाए तो हिन्दू धर्म एक धर्म ही है क्योंकि ये ईश्वर, आत्मा, कर्म, पाप, मुक्ति, मृत्यु, अमरता के बारे में बताता है। लेकिन हिन्दू दृष्टिकोण में निहित कुछ प्राकृतिक सिद्धांतों के जैसे दया, करुणा, प्रकृति से प्रेम, सुक्ष्म-से-सुक्ष्म जीवन का सम्मान के चलते यह, एक धर्म से ज्यादा एक जीवन जीने का तरीका है। “भारतीय धर्म-शाखाएं और उनका इतिहास” में वाचस्पतिगैरोला, गांधीजी के बारे में बताते हैं, कि:

गांधीजी का अभिमत था कि तर्क और शास्त्रार्थ से धर्म की सिद्धि नहीं हो सकती है। धर्म एक सहज भावना है, जो सनातन काल से मनुष्य-जीवन में सहज गति से समावर्तित होती आई है। वे धर्म की शाश्वत मान्यताओं को मानते थे और राजनीतिक विवादों को मिटाने के लिए धर्म को माध्यम बनानाचाहते थे।“

गाँधी वांग्मय” के खंड 23 के पेज 516 में इस विषय पर कि, हिन्दू धर्म कौन है? और कौन सा शख्स हिन्दू को हिन्दू कह सकता है?, बताया गया है। गाँधीजी का कहना था कि, “अगर मुझसे हिन्दू धर्म कि व्याख्या करने के लिए कहा जाए तो मैं इतना ही कहूंगा – अहिंसात्मक साधनों द्वारा सत्य की खोज। कोई मनुष्य ईश्वर में विश्वास नहीं करते हुए भी अपनी आप को हिन्दू कह सकता है।”

हिंदुओं की अपने धर्म और उसकी परंपराओं में गहरी आस्था है। लेकिन कुछ बुद्धिजीवियों जैसे श्री राजमोहन गाँधी ने एक किताब “हिन्दू होने का मतलब” में अपनी सोच जाहिर की है। इस किताब में अपने एक लेख, “अच्छा हिन्दू कौन है” के माध्यम से वो बताते हैं कि:

“हिन्दू होने का मतलब साधुओं और साध्वियों का भक्त होने से लिया जाता है, जिन्होंने प्रमुख जगहों पर मठ बना लिए हैं जबकि कुछ लोगों के लिए हिन्दू वह है जो योगाभ्यास करता है या शाकाहारी है, या “हरे राम हरे कृष्णा” का जाप करता है। इस मायने में हिन्दू होने का तात्पर्य चरित्र के बजाये आदत, आचरण एवं प्रावित्रियों से हैं।“

पुरुषोत्तम अग्रवाल के अनुसार हिंदुत्व भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत  को अभिव्यक्त करने में विफल रहा है। यह सरासर गलत बात है। अगरकोई हिन्दू होने पर गर्व करता है, तो समाज का अहित नहीं सोच सकता और कभी संकीर्ण सोच नहीं रख सकता। अगर हिन्दू होने पर किसी शख्स को कोई गर्व न होतो वो वही करेगा जो कुछ राष्ट्र विरोधी आजकल करते हैं और वो है अनर्गल दुष्प्रचार। अगर कोई हिन्दू कट्टर हो जाता मात्र इसी बात से कि वो तिलक लगाता है, रोज़ मंदिर जाता है, या जनेऊ पहनता है तो ऐसे कट्टरता से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए। वैसे भी बहुत सारे हिन्दू-समाज के लोग अपने-अपने तरह से पूजा-पाठ करते हैं। इसमें कोई “सेट-रूल” नहीं है। कोई जरूरी नहीं कि हिन्दू परिवार में जन्म ले लेने मात्र से उसको “कट्टर हिन्दू” होना पड़ेगा, लेकिन दूसरी जगह ऐसा नहीं है। पूर्व में, हिन्दू धर्म पर बहुत सारे आक्रमण हुए लेकिन इन सबके बावजूद हिन्दू धर्म की सार्थकता कम नहीं हुई है।

गाँधीजी ने “यंग इंडिया” के 6 अक्टूबर  1921 के अंक में लिखा, “मैं अपने को सनातनी हिन्दू इसलिए कहता हूँ क्योंकि, मैं वेदों, उपनिषदों, पुराणों और हिन्दू धर्मग्रंथों के नाम से प्रचलित सारे साहित्य में विश्वास रखताहूँ इस लिए अवतारों और पुनर्जन्म में भी। मैं गो-रक्षा में उसके लोक-प्रचलितरूपों से कहीं अधिक व्यापक रूप में विश्वास रखता हूँ। हर हिन्दू ईश्वर और उसकी अद्वितीयता में विश्वास रखता है, पुनर्जन्म और मोक्ष को मानता हूँ।”

गाँधी वांग्मय” 28 में पेज 204 पर गाँधीजी को ये कहते हुए उद्धरित किया गया है कि, “हिन्दू धर्म में हर धर्म का सार मिलेगा, जो चीज़ इसमें नहीं है वो असार और अनावश्यक है।” गाँधीजी के लिए धर्म “नैतिकता” का वाचक शब्द था और हिन्दू एक विशेष आस्था और जीवन दृष्टि का। इस कोरोना संकट की घड़ी में एक तरफ देश के बहुत सारे मंदिर हैं जो कोरोना वायरस संकट के खिलाफ लड़ाई में अपने अंशदान कि घोषणा कर चुके हैं वहीं एक सम्प्रदाय है जो “मरकज” के नाम पर देश भर में कोरोना वायरस को एक जमात सहयोग करने के बजाए कोरोना वायरस को फ़ैलाने का काम कर रही है और “तकलीफ़” बढ़ा रही है। कुछ बुद्धिजीवी जिनको हिन्दुओं का कट्टरपंथ दिखाई तो देता है परन्तु “तब्लीगी जमात” में शामिल लोगों का कट्टरपंथ एवं अन्धविश्वास न ही दिखाई देता है और न ही समझ आता है। कोरोना संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए लॉकडाउन जैसे विषम-परिस्थिति में देश के मंदिर व मठ न ही सिर्फ धन के साथ-साथ भोजन केपैकेट, सूखा-खाद्य – रसद सामग्री, मास्क एवं सैनिटाइज़र, बांटने का कार्य भी प्रमुखता के साथ कर रहे हैं। इन सब के बावजूद भी हिन्दू एवं हिन्दू-मंदिरों को इन जमातियों से किसी भी रूप में तुलना करना एक जहालत से ज्यादा कुछ नहीं है। मंदिरों की सकारात्मक भूमिका के लिए कभी क्रेडिट नहीं दिया जाता है। यही कारण है जो मंदिरों के अस्तित्व एवं औचित्य के ख़िलाफ़ एक झूठे प्रोपेगंडा फैलाते हैं, जबकि इनके स्वयं के सामाजिक दायित्वों पर एक बड़ा प्रश्न खड़ा होता है।

यही वजह है जो मैं आपके समक्ष उन मंदिर तथा मठों की एक सूची प्रस्तुतकर रहा हूँ जो यह सिद्ध कर रहा है कि इस विकट परिस्थिति में, तमाम मंदिर एवं मठ, राष्ट्र निर्माण एवं जनकल्याण हेतु अपने सहयोग की घोषणा करचुके हैं अपितु यह सूची एक शूरूआत मात्र है जो मंदिर एवं मठों की संवेदनशीलता और मानवीय पक्ष को उजागर करती है। कुछ प्रमुख सूची इसप्रकार है:

गोरखनाथ मंदिर में इस कोरोना महामारी को लेकर मठ के महंत एवं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथजी के निर्देश पर मंदिर कि यज्ञ-शाळा में वैदिक मन्त्रों के मध्य राष्ट-रक्षा यज्ञ का आयोजन किया गया। प्रति दिन आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए रसोई संचालित कर भंडारे की व्यवस्था तथा भोजन के पैकेट वितरण का महान कार्य किया जाता है। गोरक्षपीठ ने कोरोना संक्रमितों के इलाज़ के लिए गोरखपुर एवं बलरामपुर के तुलसीपुर में स्थित अस्पताल में क्रमशः 300 बेड का अस्पताल देने की व्यवस्था की है। यहाँ लोगों को “क्वारंटाइन” में रखकर इलाज़ किया जा सकेगा, गोरखपुर के गोरखनाथ अस्पताल में 10 बेड का वेंटिलेटर युक्त आईसीयू भी है। मठ ने गोरखपुर में रह रहे लॉकडाउन के समय कुछ लोगों को अपने घरों तक पहुँचाने का बीड़ा भी उठाया। गोरक्षपीठाधीश्वर सीएम योगी आदित्यनाथ नें लोक-कल्याण के लिए पहली बार रामनवमी पर गोरखनाथ मंदिर में उपस्थित न होकर चौबीस साल पुरानी परम्परा को तोडा। दरअसल, नाथ पंथ की परंपरा भी यही है कि वह किसी रूढ़ि परंपरा में ना बंध कर देश, काल, परिस्थिति और लोक कल्याण के लिए जितना संभव हो उतना कर सकें।

इसके साथ ही साथ कोरोना संकट को देखते हुए गोरखनाथ मंदिर के कपाट भले ही श्रद्धालुओं के लिए बंद हैं, लेकिन मंदिर कार्यालय योगी आदित्यनाथजी के निर्देश पर जनता की सेवा में चौबीस घंटे मुस्तैद है।

  1. गोरखनाथ पीठ, महाराणा प्रताप  शिक्षा परिषद् एवं पीठ से संबंधित अन्य संस्थाओं द्वारा अब तक 51 लाख रुपये की राशि पीएम् केयरफंड एवं सीएम् डिस्ट्रेस फंड में अब तक दिया जा चूका है, देना अभी भी जारी है।
  2. काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास, वाराणसी द्वारा पीएम केयर फंड में 11 लाख रुपये और चीफ मिनिस्टर डिस्ट्रेस रिलीफ फंड में 11 लाख रुपये देने के साथ-साथ खाद्य एवं रसद सामग्री तथा प्रतिदिन 1500 भोजन केपैकेट का वितरण किया जाता है।
  3. महाराष्ट्र के शिरडी साई बाबा संस्थान द्वारा महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रिलीफ फण्ड में 51 करोड़ रुपये का दान किया गया। योग गुरु बाबा रामदेव और पतंजलि ट्रस्ट द्वारा घोषणा कि गयी है कि वे पीएम केयरमें 25 करोड़ रुपयों का सहयोग करेंगे एवं इसके साथ ही साथ पतंजलि और रूचि सोया के सभी कर्मचारी अपने एक दिन का वेतन भी दान करेंगे। योग गुरु स्वामी राम देव ने अपने कुछ आश्रमों को कोरोना-रोगियों के इलाज़ के लिए भी देने की घोषणा की है, जिनके भोजन की व्यवस्था भी पतंजलि करेगा।
  4. गुजरात भर में फैले स्वामी नारायण मंदिरों ने कूल मिलाकर 1.88 करोड़ रुपये का सहयोग किया है। इसके साथ ही साथ कोरोना संक्रमित मरीजों को आइसोलेशन में रखने का इंतज़ाम किया गया है। गुजरात के ही सोमनाथ मंदिर ट्रस्ट ने मुख्यमंत्री राहत कोष में 1 करोड़ रुपये दान किया है।
  5. जम्मू एवं कश्मीर स्थित माता वैष्णव देवी मंदिर के गैर राजपत्रित स्टाफ ने जहाँ एक दिन की सैलरी वहीँ ट्रस्ट के राजपत्रित स्टाफ ने अपनी दो दिन की सैलरी राज्य के राहत कोष में दान की है।
  6. इसके अलावा श्राइन बोर्ड ने अपने आशीर्वाद काम्प्लेक्स को कोरोना संक्रमितों के इलाज़ के लिए सौंप दिया है तथा जरूरतमंदो में भोजनसामग्री का भी वितरण कर रहे हैं।
  7. उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर ट्रस्ट ने 2.5 लाख रुपये प्रधानमंत्री राहतकोष एवं मुख्यमंत्री राहत कोष में दान किया है।
  8. बिलासपुर छत्तीसगढ़ के माँ महामाया मंदिर ट्रस्ट मुख्यमंत्री सहायताकोष में 5 लाख 11 रुपये और रेड क्रॉस सोसाइटी को 1 लाख 11 हज़ार रुपये दान किया है।
  9. श्री नित्य चिंताहरण गणपति ट्रस्ट, रतलाम, मध्य प्रदेश नें 1 लाख 11 हज़ार रुपये का दान किया है।
  10. कांची कामकोटि पीठ नें प्रधानमंत्री राहत कोष एवं तमिलनाडु के मुख्यमंत्री राहत कोष में दान किया है।
  11. राधा स्वामी सत्संग बीस सोसाइटी द्वारा पीएम् केयर रिलीफ फंड में 2 करोड़ रुपये दिया गया एवं पंजाब, हरियाणा, हिमांचल प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली के मुख्यमंत्री राहत कोष में 1 करोड़ रुपये और जम्मूकश्मीर लेफ्टिनेंट गवर्नर रिलीफ फंड में 1 करोड़ रुपये दान किया है।
  12. महालक्ष्मी मंदिर, कोल्हापुर, महाराष्ट्र ने 2 करोड़ रुपये दान किये हैं, जिसमें 1.5 करोड़ रुपये मुख्यमंत्री राहत कोष तथा अन्य संस्थाओं को दान दिया है।

यह सूची अभी भी पूर्ण नहीं है परन्तु यह अवश्य सिद्ध करती है की हिन्दू समाज मानव रक्षा हेतु कृत संकल्पित है और मंदिर और मठों में अपूर्ण आस्था के साथ राष्ट्र-निर्माण के पथ पर हमेशा अग्रसर रहते हैं, ना कि उन जमातियों जो मानव, रक्षक तो होना दूर, मनुष्य और मनुष्यता को भी अपने अज्ञानता, कट्टरपंथ और अंधविश्वास के सामने कुछ नहीं समझते हैं और मानव-भक्षक बन चुके हैं।

इस अवसर पर पूज्य गुरूजी माधव सदाशिव गोलवलकर सहज ही याद आते हैं जिन्होंने कहा था, “हिंदुस्तान में रह रहे गैर हिन्दू, हिन्दू संस्कृति और भाषा अपना लें, हिन्दू धर्म का आदर करना सीख लें, सिर्फ उसी विचार को बढ़ावा दें जो हिन्दू धर्म की महिमा का बयान करे, तभी उन पर लेगा विदेशी होने का तमगा हटेगा।“

ध्यान दें:
1. यहां व्यक्त विचार लेखक के हैं और पी गुरुस के विचारों का जरूरी प्रतिनिधित्व या प्रतिबिंबित नहीं करते हैं।

Kunwar Pushpendra Pratap Singh

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