सीपीआई (एम) ने फिर से दलित नेताओं को अपने उच्चतम निर्णय लेने वाले बॉडी पोलितब्यूरो में नियुक्त नहीं किया!

पार्टी में सभी जानते हैं कि उन्होंने पोलीटब्युरो की सदस्यता पाने के लिए बहुत हो-हल्ला मचाया था।

0
758

सीपीआई(एम) ने कभी भी अपने पोलीटब्युरो में किसी दलित नेता को जगह नहीं दी है।

फिर एक बार सीपीआई(एम) ने एक और मौका गवा दिया। एक बार फिर सीपीआई(एम) ने अपने सर्वोच्च निर्णय समिति पोलीटब्युरो (रूसी साम्‍यवादी दल की केंद्रिय समिति का राजनीतिक विभाग) में किसी दलित को शामिल नहीं किया। वैसे तो ये हमेशा देश में दलितों की स्तिथि के लिए मगरमच के आंसू बहाते रहते हैं। सीपीआई(एम) की बैठक में केवल कांग्रेसीकरण ही हो रहा था, कैसे केरल में कांग्रेस का विरोध करते हुए उन्हीं से गटबंधन करें। इसी बात पर प्रकाश करात और येचुरी के समर्थकों के बीच वाद विवाद और लम्बी चर्चा होती रही और वह एक ही मुद्दे पर अटके हुए थे- कांग्रेस से गटबंधन। इसके चलते उन्होंने दलितों को भुला दिया और 17 सदस्यों वाले पोलीटब्युरो में एक भी दलित को शामिल नहीं किया।

अन्य पार्टियों की तरह, सीपीआई(एम) ने कभी भी अपने पोलीटब्युरो में किसी दलित नेता को जगह नहीं दी है। भारत की मुख्य पार्टी भाजपा और कांग्रेस ने अपने निर्णय समिति में दलितों को हमेशा शामिल किया है – संसदीय बोर्ड और वर्किंग कमिटी। अपने विद्यार्थी काल के कम्यूनिस्ट वैचारिक बुद्धि की वजह से, भारतीय लेखकों और पत्रकारों ने सीपीआई(एम) के इस मामले को दबा दिया। इसी तरह की दलित अस्पृश्यता कई सारी लेफ्ट पार्टियों की निर्णय समिति में देखी जा सकती है।

इससे साफ पता चलता है कि सीपीआई(एम) के अधिकतर नेता, केरल के कुछ नेताओं को छोड़कर, सोनिया गांधी एवँ राहुल गांधी के कांग्रेस का समर्थन कर सत्ता पाना चाहते हैं, जिन्हें देशवासियों ने अनियंत्रित भ्रष्टाचार की वजह से 2014 लोकसभा चुनावों में नकारा था।

इस बार ऐ. के. बालन, बहुत समय से केंद्रीय समिति के सदस्य एवँ केरल में पार्टी के दलित प्रतिनिधि, को पोलीटब्युरो में शामिल किए जाने के चर्चे थे। परंतु जब लिस्ट जारी की गई तब पता चला कि उन्हें स्थान नहीं दिया गया ताकि बहुत से जाने माने सदस्य पोलीटब्युरो में बने रहे। बालन जो अब मंत्री है, पूर्वकाल में सांसद और कई बार विधान सभा के सदस्य रह चुके हैं। वह पार्टी के विद्यार्थी संगठन एसएफएई के सदस्य रहे हैं और कड़ा परिश्रम करके यह पद हासिल किया है। जब 95 सदस्यों की केंद्रीय समिति और 17 सदस्यों के पोलीटब्युरो पर गौर करें तो यह स्पष्ट होता है कि बहुसंख्यक नेता जो चुने गए हैं वह ऊंची जातियों से है। कुछ मुसलमानों को और ओबीसी सदस्यों को छोड़कर, बाकी के सभी में से ज्यादातर नेता उच्च जाति के है। पार्टी के जनरल सेक्रेटरी सीताराम येचुरी स्वयं तेलुगू ब्राह्मण है। और यही पार्टी दलितों और निचली जाति के लोगों के लिए हल्ला मचाती है।

95 सदस्यों वाली केंद्रीय समिति में 14 महिलाएं शामिल हैं और एक महिलाओं के लिए आरिक्षत किया हुआ स्थान रिक्त है। यह रिक्त क्यों है? क्या पार्टी में महिला नेताओं की कमी है? इन 14 महिलाओं में से दो पोलीटब्युरो के सदस्य हैं – प्रकाश करात की पत्नी ब्रिंदा करात, जिन्होंने 2005 से अपना स्थान बचाकर रखा है। पार्टी में सभी जानते हैं कि उन्होंने पोलीटब्युरो की सदस्यता पाने के लिए बहुत हो-हल्ला मचाया था। सुभाषिनी अली जो 2015 में पोलीटब्युरो की सदस्य बनी और इस बार अपनी जगह बचाने में सफल हुई।

पार्टी समागम, जो हैदराबाद में हुआ, का बहुत सारा वक़्त येचुरी और करात के समर्थकों के बीच समझौता कराने में चला गया। दोनों दलों के बीच कांग्रेस से गटबंधन के मुद्दे पर यह वाद विवाद चल रहा था। अंततः कांग्रेस समर्थक येचुरी की जीत हुई। येचुरी गुप्त मतदान की वजह से जीत गए जबकि करात सामान्य मतदान (हाथ दिखाकर) कराना चाहते थे। इससे साफ पता चलता है कि सीपीआई(एम) के अधिकतर नेता, केरल के कुछ नेताओं को छोड़कर, सोनिया गांधी एवँ राहुल गांधी के कांग्रेस का समर्थन कर सत्ता पाना चाहते हैं, जिन्हें देशवासियों ने अनियंत्रित भ्रष्टाचार की वजह से 2014 लोकसभा चुनावों में नकारा था।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.