चुनाव आयोग की फ्रीबीज पर लगाम लगाने की कोशिश को झटका
देश में राजनीतिक दलों के मुफ्त उपहार के वादों पर लगाम लगाने की कोशिशें सफल होती नहीं दिख रही हैं। फ्रीबीज पर लगाम लगाने की चुनाव आयोग की पहल को उस वक्त बड़ा झटका लगा, जब चुनावी वादे से जुड़े फॉर्म का कई राजनीतिक दलों ने विरोध किया। कांग्रेस, आम आदमी पार्टी से लेकर सीपीएम और एआईएमआईएम ने चुनाव आयोग के इस प्रस्ताव का विरोध किया है। हालांकि, आयोग को अब तक भाजपा और अन्य दलों के जवाब का इंतजार है।
दरअसल, फ्रीबिज पर लगाम लगाने के लिए चुनाव आयोग ने पार्टियों को चुनावों के वक्त एक फॉर्म भरने का प्रस्ताव दिया था, जिसे भरकर बताना होगा कि चुनावी वादे को पूरा करने के लिए कहां से धन आएगा। यह फॉर्म मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट का हिस्सा होगा। निर्वाचन आयोग ने बीते दिनों सभी मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनीतिक दलों से कहा था कि वे चुनावी वादों को पूरा करने को लेकर वित्तीय स्थिति के संबंध में मतदाताओं को सही जानकारी उपलब्ध कराएं क्योंकि आधी-अधूरी जानकारी का दूरगामी प्रभाव हो रहा है।
चुनावी वादे को पूरा करने का स्रोत और वित्तीय असर बताने के लिए चुनाव आयोग ने एक फॉर्म जारी किया था और आयोग ने 4 अक्टूबर को सभी राष्ट्रीय और राज्यस्तरीय दलों को पत्र लिखकर 19 अक्टूबर जवाब मांगा था। चुनाव आयोग के फॉर्म में चुनावी वादे से जुड़े छोटे-छोटे विवरण को देना था और चुनाव आयोग ने फार्म बनाने में आरबीआई, सीएजी और बजट के पैरामीटर्स का इस्तेमाल किया था। फॉर्म में बताना था कि चुनावी वादे को पूरा करने के लिए पैसा कहां से आएगा और इस वादे को कैसे पूरा किया जाएगा।
चुनाव आयोग से जुड़े सूत्रों का कहना है कि राजनीतिक दलों को चुनावी वादे करने से रोका नहीं जा सकता है, लेकिन मतदाता को भी यह जानने का हक है कि उनसे किए गए वादे पूरे कैसे किए जाएंगे। इसी मकसद से चुनाव आयोग ने राजनीतिक पार्टियों के साथ राज्य तथा केंद्र सरकार से विस्तृत खुलासे की मांग की है। इससे वोटरों को राजनीतिक दलों की तुलना करने और यह समझने में मदद मिलेगी क्या चुनावी वादे हकीकत में तब्दील किए जा सकते हैं। चुनाव आयोग ने इस संबंध में प्रस्ताव दिया है कि जब भी या कहीं भी चुनाव हों, तब उस राज्य के मुख्य सचिव या केंद्र के वित्त सचिव एक तय फॉर्मैट में टैक्स और खर्चों का विवरण प्रदान करें।
[आईएएनएस इनपुट के साथ]
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