सर्वोच्च न्यायालय में फिर छिड़ी मुस्लिम तलाक पद्धति पर बहस
सर्वोच्च न्यायालय में तलाक-ए-किनाया और तलाक-ए-बैन को असंवैधानिक घोषित करने के लिए याचिका दायर हुई। इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अब केंद्र से जवाब मांगा है। जस्टिस एस ए नजीर और जस्टिस जे बी पार्डीवाला की बेंच ने इसके लिए नोटिस जारी किया है।
सर्वोच्च न्यायालय कर्नाटक की रहने वाली एक महिला की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इस दौरान जस्टिस नजीर ने कहा- यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। इसके बारे में पढ़कर मैं हैरान रह गया। याचिका में तलाक-ए-किनाया और तलाक-ए-बैन सहित मुसलमानों के बीच एकतरफा तलाक के सभी रूपों को अवैध और असंवैधानिक घोषित करने के लिए निर्देश देने की मांग की गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने 22 अगस्त 2017 को केवल तीन तलाक बोल कर शादी तोड़ने को असंवैधानिक बताया। तलाक-ए-बिद्दत कही जाने वाली इस प्रक्रिया पर अधिकतर मुस्लिम उलेमाओं ने भी कहा था कि यह कुरान के मुताबिक नहीं है।
कर्नाटक की रहने वाली डॉक्टर सैयदा अमरीन की अक्टूबर 2020 में शादी हुई थी। कुछ महीने बाद उसका पति और ससुरालवाले दहेज के लिए प्रताड़ित करने लगे। लेकिन जब सैयदा के पिता ने दहेज देने से मना कर दिया तो उसके पति ने उसे तलाक-ए-किनाया/तलाक-ए-बैन दे दिया।
याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में कहा कि ऐसी प्रथाएं न केवल महिला की गरिमा के खिलाफ हैं, बल्कि संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 का उल्लंघन करती हैं। याचिका में कहा गया- इन शब्दों को किनाया शब्द कहा जाता है यानी अस्पष्ट शब्द या अस्पष्ट रूप से कुछ कहा जाना, जैसे- मैंने तुम्हें आजाद किया, अब तुम आजाद हो, तुम/ये रिश्ता मुझ पर हराम है, अब तुम मुझसे अलग हो गए हो। तीन तलाक की तरह ही तलाक-ए-किनाया/ तलाक-ए-बैन में भी एक ही बार में (बोलकर/ लिखित रूप में भेजकर) तलाक दिया जाता है।
सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति जेबी पार्डीवाला ने पूछा कि लोगों को ऐसी शब्दावली कहां से मिल रही है। इसके जवाब में याचिकाकर्ता के वकील अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि इस तरह के तलाक नए हैं और किसी अन्य देशों में ऐसा कुछ नहीं होता है।
[आईएएनएस इनपुट के साथ]
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