धर्म परिवर्तन पर कानून को लेकर मध्यप्रदेश सरकार को न्यायालय से कोई राहत नहीं
धर्म परिवर्तन को लेकर नए कानून वाले मामले में मध्य प्रदेश सरकार को फिलहाल राहत मिलती नहीं दिख रही। दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के फैसले पर फिलहाल रोक लगाने से इनकार कर दिया है। फिलहाल अन्य धर्म में परिवर्तित होने से पहले 60 दिनों की पूर्व सूचना नहीं देने वाले पर कोई भी कठोर कार्रवाई नहीं होगी। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार की याचिका पर नोटिस जारी किया।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वो सात फरवरी को अंतरिम रोक पर विचार करेगा। इस दौरान एसजी तुषार मेहता ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने की मांग की। लेकिन जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच ने सुनवाई के दौरान कहा कि शादी या धर्मांतरण पर कोई रोक नहीं है। जिला मजिस्ट्रेट को केवल सूचित किया जा सकता है इसी पर रोक लगाई गई है।
ऐसे में सभी धर्मांतरण को अवैध नहीं कहा जा सकता है। हम ये तो कह सकते हैं कि सूचना दी जाए – लेकिन सूचना ना देने पर कोई दंडात्मक कार्रवाई होनी चाहिए? दरअसल राज्य सरकार ने हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी है, जिसमें राज्य सरकार को मध्य प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम की धारा 10 के तहत अनिवार्य रूप से अन्य धर्म में परिवर्तित होने से पहले डीएम को 60 दिनों की पूर्व सूचना नहीं देने के लिए कोई भी कठोर कार्रवाई करने से रोक दिया गया था।
पिछले साल नवंबर में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया था कि मप्र धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम 2021 में एक अनिवार्य प्रावधान, जिसके लिए किसी व्यक्ति के धर्मांतरण से पहले जिला मजिस्ट्रेट को अधिसूचित करने की आवश्यकता होती है, पहली नजर में ‘असंवैधानिक‘ है और राज्य सरकार को धारा 10 के तहत किसी भी व्यक्ति पर मुकदमा नहीं चलाने का निर्देश दिया था।
कानून के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए, हाईकोर्ट की मुख्य सीट जबलपुर की दो-न्यायाधीशों की पीठ, जिसमें जस्टिस सुजॉय पॉल जस्टिस और प्रकाश चंद्र गुप्ता शामिल हैं, ने 14 नवंबर के अपने फैसले में कहा कि याचिकाकर्ताओं द्वारा राहत प्रदान करने के लिए एक मजबूत प्रथम दृष्टया मामला बनाया गया है। धारा 10 के उल्लंघन के लिए दो वयस्क नागरिकों के विवाह के संबंध में उनकी इच्छा और किसी भी कठोर कार्रवाई के खिलाफ अंतरिम संरक्षण दिया जाता है।
“धारा 10 धर्मांतरण के इच्छुक नागरिक के लिए जिला मजिस्ट्रेट को इस संबंध में एक घोषणा देने के लिए अनिवार्य बनाती है, जो कि हमारी राय में, इस न्यायालय के पूर्वोक्त निर्णयों के अनुसार असंवैधानिक है। इस प्रकार, अगले आदेश तक, राज्य वयस्क नागरिकों पर मुकदमा नहीं चलाएगा यदि वे अपनी इच्छा से विवाह करते हैं और अधिनियम 21 की धारा 10 के उल्लंघन के लिए कठोर कार्रवाई नहीं करेंगे।
[आईएएनएस इनपुट के साथ]
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