म्यांमार में सैन्य तानाशाह सरकार के अत्याचारों से पीड़ित शरणार्थियों का भारत आने का सिलसिला जारी
पूर्वोत्तर के राज्य मिजोरम में म्यांमार से लगभग साढ़े 30 हजार शरणार्थी पनाह लिए हुए हैं। मिजोरम सरकार ने राज्य में पहुंचे इन शरणार्थियों की प्रोफाइलिंग कर डेटा भी तैयार कर लिया है। मिजोरम सरकार ने सभी शरणार्थियों को विशेष पहचान-पत्र जारी किए हैं।
राज्य सरकार के अधिकारी का कहना है कि इन पहचान-पत्रों का उपयोग सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने में नहीं किया जा सकता। मिज़ोरम की आबादी लगभग साढ़े 12 लाख है। इनमें भी 30 हजार शरणार्थियों के आने से यहां का जनसंख्या संतुलन बिगड़ने की आशंका है। मिजोरम के लगभग 160 शरणार्थी शिविरों में चौकसी तेज कर दी गई है। ताकि ये शरणार्थी स्थानीय क्षेत्रों में नहीं बस पाएं।
बीते साल फरवरी में म्यांमार में सेना के सत्ता पर कब्जे के बाद से ही आतंकित लोग समूहों में टिआऊ नदी को पार कर मिजोरम पहुंच रहे हैं। ये शरणार्थी मूल रूप से म्यांमार के चिन प्रांत के रहने वाले हैं। इन शिविरों में नेता आंग सांग सू की के नेतृत्व वाली पूर्ववर्ती लोकतांत्रिक सरकार के 14 जनप्रतिनिधि भी शामिल हैं।
मिजोरम में पहुंचे म्यांमार के शरणार्थी चंफाई, सियाहा, लांग्तलाई, सेरछिप, ह्नाहथियाल और सेतुआल जिलों के 160 राहत शिविरों में रह रहे हैं। मिजोरम में रह रहे म्यांमार के 30 हजार शरणार्थियों में से 11,800 बच्चे और 10,200 महिलाएं हैं। राज्य सरकार ने शरणार्थियों के लिए अब तक करीब 80 लाख रुपए मंजूर किए हैं।
हाल ही में म्यांमार की सीमा से लगे मणिपुर के चुराचांदपुर जिले में 20 बच्चों सहित 80 म्यांमार नागरिकों को गिरफ्तार किया था। इन्हें बाद में इंफाल में न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। भाजपा की प्रदेश इकाई ने शरणार्थियों के आने पर राेक की मांग की है।
मणिपुर में म्यांमार के 5000 से 10000 नागरिक रह रहे हैं। इससे मैते और नागा जनजाति के लोगों को आशंका है कि इनकी आमद से जातीय संतुलन बिगाड़ सकता है। बहुसंख्यक हिंदू समुदाय मैते की भी जनसंख्या लगातार घट रही है। 2011 की जनगणना के अनुसार, मैते राज्य की कुल आबादी का 51% थे। जबकि 1971 में 66% के करीब थे।
[आईएएनएस इनपुट के साथ]
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