जब हिंदू धर्म पर व्यवस्थित हमला किया जाता है यह एक विशेष धर्म बदनाम करने के इरादे पर जोर देती है।
कई सालों से भारत के विद्यालयों में यह पढाया जाता रहा है की भारत एक त्यौहारों का देश है | मगर पिछले कुछ समय से यह देखने में आ रहा है की धीरे धीरे भारत के यह त्यौहार ख़त्म होते जा रहे हैं या यूँ कहिये की कुछ अति बुद्धिजीवियों द्वारा इन्हें बदनाम करने की साजिश की जा रही है | अंग्रेजों ने 1857 क्रांति के बाद भारत की शिक्षा और संस्कृति को नष्ट करने का तरीका अपनाया था |[i] उन्होंने धीरे धीरे भारत की संस्कृति तथा परम्पराओं को बदनाम करके उन्हें समाप्त करने के लिए अंग्रेजी शिक्षा तथा झूठे शोधो का सहारा लिया था जैसे सती प्रथा के झूठे आंकड़े दिखाकर भारत को बदनाम करना , या जाती प्रथा के विषय में गलत तथ्य लिखकर भारतीय संस्कृति को अपमानित करना इत्यादि|[ii] उस समय यह सब चर्च के इशारे पर होता था जिससे हिन्दुओं को उनके धर्म के विषय में गलत जानकारी देकर उनके धर्म से दूर किया जा सके तथा बाद में इसाई बनाया जा सके | इसके लिए अंग्रेजों ने भारतीय मूल ग्रंथों तथा शिक्षा व्यवस्था में कई गड़बड़ियाँ की थी[iii] ताकि भारतीय युवा सिर्फ वही सत्य पढ़ें जो अंग्रेज उन्हें पढ़ाना चाहते हैं तथा कभी अपने गौरवमयी अतीत के विषय में ना जान सकें |[iv] अंग्रेज इस प्रयोग में काफी हद तक सफल भी रहे मगर चूँकि उस समय अधिकतर भारत के बच्चे अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था में नहीं पढ़ते थे अतः सिर्फ समृद्ध घरों के चंद अमीर बच्चे ही उनकी शिक्षा में पढ़े और उनके अनुसार ढल गए | बाकी का भारत अपनी संस्कृति और परंपरा के अनुरूप जीवन जीता रहा |
आज़ादी के बाद नेहरु सरकार की यह जिम्मेदारी बनती थी की वह अंग्रेजों के बनाये पाठ्यक्रम को पूरी तरह बदलकर एक स्वदेशी पाठ्यक्रम की रचना करें | मगर दुर्भाग्य से आज़ादी के बाद शिक्षा व्यवस्था उन्ही लोगों के हाथ में आ गयी जो अंग्रेजों की शिक्षा व्यवस्था में पले बढे थे और उन्होंने अंग्रेजी तरह से ही पूरे भारत को शिक्षा देना प्रारंभ कर दिया | महात्मा गांधी और दीनदयाल उपाध्याय जैसे लोगों ने आज़ादी के बाद एक अलग तरह की शिक्षा व्यवस्था बनाने की मांग को कई बार उठाया मगर सरकारी लोग या तो विभाजन के कामो में व्यस्त थे या सत्ता मिलने से मस्त थे अतः उन्होंने इन लोगों की बातो को अनसुना कर दिया | इस तरह अंग्रेजी शिक्षा में ही ज्यादा से ज्यादा भारत के बच्चे पढ़कर निकलने लगे जिसका परिणाम यह हुआ की वह सब भी अपने धर्म, संस्कृति, परम्पराओं इत्यादि को बुरा भला कहने लगे | यही नहीं अंग्रेजों ने जाने के बाद भी कई बड़े घर के बच्चों को फेलोशिप देकर ब्रिटेन बुलाकर शिक्षा दी जिसमे उनके दिमाग में भारत के प्रति और हीन भावना या नफरत भर दी गयी | इससे कई समृद्ध घर के अमीर बच्चों का दिमाग अंग्रेजों की तरह सोचने लगा तथा वह भारत से दूर होते चले गए |
वामपंथियों जैसे एस.ऐ. डांगे. ने भारतीय गौरवमयी इतिहास और वेदों के विषय में जब सच्चाई लिखने का प्रयास किया तो उन्हें पार्टी से बाहर कर दिया |
सत्तर के दशक में जब इंदिरा गांधी की सत्ता कमजोर होने लगी तब उन्होंने वामपंथी लोगों से मदद मांगी तथा मदद करने के एवज में उन्हें भारत की पूरी शिक्षा व्यवस्था उपहार स्वरुप सौंप दी गयी| भारत के वामपंथी भी चूँकि अंग्रेजों की शिक्षा व्यवस्था में पढ़े हुए थे तो उनके मन में पहले से ही हिन्दू धर्म तथा भारत की परम्पराओं के प्रति घ्रणा थी , इसके साथ साथ वह कार्ल मार्क्स और स्टॅलिन के विचारों को मानते थे जिसमे धर्म से चिड़ना मूल सिद्धांत था | इसके कारण वामपंथियों ने अंग्रेजों से भी आगे बढ़कर हिन्दू समाज की परम्पराएँ तथा त्योहारों के विषय में गलत बातें भारत के पाठ्यक्रम में डालना शुरू कर दी | इन्होने सामाजिक विज्ञान तथा इतिहास में भारत के विषय में बहुत सी नकारात्मक बातें अंग्रेजों की किताबो का उदाहरण देते हुए डाल दी| कुछ वामपंथियों जैसे एस.ऐ. डांगे. ने भारतीय गौरवमयी इतिहास और वेदों के विषय में जब सच्चाई लिखने का प्रयास किया तो केरला के वामपंथियों ने डांगे पर कई इल्जाम लगाते हुए उन्हें पार्टी से बाहर कर दिया | इसके पीछे मूल कारण था केरल के वामपंथियों की वहां के जेहादी चरमपंथियों तथा इसाई मिशनरियों से नजदीकियां जिसे वह खोना नहीं चाहते थे |
अस्सी के दशक में जब हिन्दू समर्थक राजनैतिक पार्टियाँ ताकतवर होने लगी तथा भारतीय जनता पार्टी भारतीय संस्कृति के मुद्दे को लेकर शक्तिशाली पार्टी के रूप में उभरने लगी, उस समय कांग्रेस तथा वामपंथियों ने वोट बैंक की राजनीती के लिए अल्पसंख्यक तुष्टिकरण शुरू कर दिया | इस दौरान इन्होने जेहादी और मिशनरी ताकतों से एक गुप्त अनकहा समझौता कर लिया के देश में कोई भी दंगे या धार्मिक उम्माद हों उसमे यह हमेशा हिन्दू समाज को ही दोषी ठहराएंगे तथा नब्बे से २००९ तक बड़े बड़े केसेस में इन्होने जेहादी तथा मिशनरियों को नजरअंदाज करने का काम किया | यही नहीं इस समय कांग्रेस तथा वामपंथियों ने कई छोटे छोटे राज्य स्तरीय क्षेत्रीय दलों से सिर्फ बीजेपी और संघ परिवार को रोकने के लिए हिन्दुओं को कमजोर करने का फैसला किया | इसी समय में वामपंथियों ने मीडिया तथा शिक्षण संस्थानों में लगभग सभी बड़े पदों पर कब्ज़ा कर लिया | यहाँ से शुरू हुआ मीडिया और शिक्षण संस्थानों में हिन्दुओं को बदनाम करने का सिलसिला जो अब तक जारी है |
वामपंथियों और हिन्दू विरोधी ताकतों के द्वारा तैयार की गयी शिक्षा व्यवस्था से पिछले १० वर्षों में देश का हाल यह हो गया की देश की राजधानी में बड़े विश्वविद्यालयों में भारत को तोड़ने के नारे लगाए जाने लगे | यही नहीं मीडिया के वामपंथियों ने भी अपना काम बखूबी किया | हर हिन्दू त्यौहार से पहले इन्होने उस त्यौहार के खिलाफ जनमत तैयार करने की साजिशे शुरू कर दी | इन्हें इस तरह तर्कपूर्ण ढंग से रखा जाता था की हिन्दू बच्चे भी इनके साथ मिलकर अपने धर्म और त्योहारों से कोसने से नहीं चूकते थे | इसके कुछ उदाहरण हैं :
• दिवाली से वायु प्रदुषण होता है |
• होली में पानी बर्बाद होता है |
• शिवरात्रि में दूध बर्बाद होता है |
• जल्लीकट्टू में जानवरों पर अत्याचार होता है |
• करवाचौथ महिलाओं के खिलाफ है |
• दुर्गा पूजा दलित विरोधी है , महिषासुर दलित था इत्यादि |
• राम आर्यन है जिन्होंने दलित शम्भुक और तमिल (द्रविड़) रावण को मारा | (ऐसी कई झूठी कहानियाँ फैलाई जाती हैं)
यह तो सिर्फ चंद उदाहरण है इसी तरह सुनियोजित तरीके से हिन्दुओं के त्यौहार, परम्पराए तथा संस्कृति के खिलाफ भारतीय युवाओं के मन में जहर भरने का काम यह लोग करते हैं | आश्चर्यजनक बात यह है की यदि यह लोग सच्चे मानवाधिकारवादी या जीव रक्षक या महिला समर्थक होते तो यह – ईद पर जानवरों के कटने , ‘हलाला’ जैसी कुप्रथाओं तथा क्रिसमस एवं नव वर्ष पर बिजली का दुरूपयोग और पटाखों के प्रदुषण की भी बात करते मगर इन सभी मुद्दों पर यह एन.जी.ओ. तथा वामपंथी मीडिया गैंग शांत रहती है | यह इनके दोहरे चरित्र को दर्शाता है | यदि यह वामपंथी लोग सभी मजहबों की कमियों के विषय पर लिखते तो एक बार माना भी जा सकता था मगर जब यह जानबूझ कर हिन्दू धर्म पर हमला करते हैं तथा बाकियों की गलतियों पर भी पर्दा डालने का प्रयास करते हैं तो इनकी नीयत पर शक होना जायज़ है | इनके इस व्यवहार का कारण या तो इन्हें दूसरे मजहबो से मिल रही विदेशी फंडिंग हो सकती है या फिर अंग्रेजी और वामपंथी शिक्षा का असर | कारण जो भी हो मगर यह सब देश के लिए ठीक नहीं है क्योंकि इससे देश के युवाओं में अपने ही देश की संस्कृति और परम्पराओं के प्रति द्वेष भाव उत्पन्न हो रहा है , जो आपस में टकराव का कारण बन रहा है |
भारतीय युवाओं को भी सही आलोचना और किसी खास प्रयोजन से की गयी आलोचना के बीच के अंतर को समझना होगा | इस लेख को लिखने के पीछे का औचित्य सिर्फ इतना भर है की युवाओं को समाज में घट रही बातों के विषय में दोनों तरह के विचार पता चलें | एक तरफ वो विचार हैं जो अंग्रेजों के समय से तथा पिछले 70 वर्षों से लगातार युवाओं के मन पर थोपे जा रहे हैं जिनमे उन्ही के अपने देश को हर गलती का जिम्मेदार बताकर उनसे उनकी संस्कृति छुडवाई जा रही है , दूसरी तरफ वो लोग हैं जो अब जनता को सच बताने का प्रयास कर रहे हैं | सौभाग्य से सोशल मीडिया आने के बाद उन लोगों को भी अपनी बात कहने का मौका मिल गया जिनकी बात को सदियों से दबा कर रखा गया था | हिन्दू धर्म दुनिया का सबसे सहिष्णु धर्म है जिसने सदियों से सभी धर्म के लोगों की रक्षा की है एवं उनका सम्मान किया है , मगर बदले में हिन्दू धर्म को भी बराबर का सम्मान पाने का हक़ है | यदि चंद लोग इसी तरह भारत तथा हिन्दू धर्म की मान्यताओं का मजाक बनाते रहे तो शांति संभव नहीं है | यह समय है जब भारत की सरकार को अंग्रेजो द्वारा रचा गया भारत विरोधी पाठ्यक्रम पूरी तरह से बदल देना चाहिए तथा एक एकात्म मानवता तथा स्वदेशी के दर्शन कराता हुआ दीनदयाल और गांधी के अनुसार पाठ्यक्रम बनाना चाहिए जिससे देश में एकता और अखंडता फिर से कायम हो सके तथा देश को नकारात्मकता के वातावरण से छुटकारा मिल सके |
संदर्भ:
[i] “An Era of darkness”- Shashi Tharoor
[ii] “Sati”- Meenakshi Jain
[iii] “The Battle For Sanskrit”- Rajiv Malhotra
[iv] “A beautiful Tree”- Dharampal
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