भारत-अमेरिका संबंधों की मजबूती के लिए स्थाई राजदूत बहुत जरूरी
भारत में अमेरिका का स्थायी राजदूत दो साल से नहीं है। ऐसा पहली बार हुआ है, जब नई दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास इतने वक्त तक बगैर स्थायी राजदूत के रहा है। हालांकि राष्ट्रपति जो बाइडेन लॉस एंजिलिस के मेयर एरिक गार्सेटी की राजदूत के रूप में नियुक्ति की मंजूरी पिछले साल दे चुके हैं।
कई एक्सपर्ट इसको बाइडेन के जरिए भारत की अहमियत दिखाने के संदेश के रूप में देख रहे थे, लेकिन इस पर रिपब्लिकन पार्टी के दो सांसदों रोक लगा दी थी, जिसके बाद सीनेट में मंजूरी नहीं मिल पाई थी। गार्सेटी बाइडेन के करीबी दोस्त हैं ही, वह हिंदी और उर्दू भी जानते हैं।
एक्सपर्ट ने कहा कि भारत जैसे अहम देश में स्थायी राजदूत के न होने से दोनों देशों के बीच रिश्ते प्रभावित हो सकते हैं। अमेरिका के भारत में पिछले राजदूत रहे केनेथ जस्टर ने मीडिया को बताया- राजदूत की नियुक्ति में देरी ठीक नहीं है।
राजदूत को अहम मुद्दों पर स्थानीय नजरिए की समझ होती है, जिससे दोनों देशों के बीच विवादों के हल खोजने में मदद मिलती है। भारत-अमेरिका संबंध अभी अच्छी स्थिति में हैं, लेकिन राजदूत के न होने से मुद्दे उलझ सकते हैं। उन्होंने कहा कि दोनों देशों के बीच राजदूत की कमी से कारोबार में दिक्कतें आती हैं। पॉलिसी आगे बढ़ने में बाधाएं इसी कारण आ रही हैं।
जॉर्ज वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी में सिगुर सेंटर फॉर एशियन स्टडीज में प्रोफेसर दीपा ओलापल्ली कहती हैं कि अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार और हथियार सप्लायर है। जब जापान, आस्ट्रेलिया, द. कोरिया, श्रीलंका और पाकिस्तान जैसे देशों में अमेरिका के राजदूत मौजूद हैं तो भारत में अमेरिकी राजदूत का ना होना एक बड़ी चूक है।
इससे भी भारत के साथ डिफेंस, ट्रेड और एनर्जी से लेकर हेल्थ सर्विस के क्षेत्र तक कई लॉन्ग टर्म इंटरेस्ट प्रभावित होगा। बढ़ते चीन को रोकने के लिए स्थायी राजदूत जरूरी है। हाल ही में अमेरिका ने भारतीय दूतावास का 5वां अस्थायी प्रभारी नियुक्त किया है। स्थायी राजदूत न होने से ये दौर अमेरिका-भारत संबंधों का सबसे अधिक उथल-पुथल वाला रहा है।
भारतवंशी अमेरिकी सांसद रो खन्ना भी राजदूत की नियुक्ति को समय की जरूरत बताते हुए कहा कि चीन को देखते हुए मजबूत रक्षा और रणनीतिक साझेदारी करने की जरूरत है। वहीं एक अन्य विशेषज्ञ रौनक देसाई ने बताया कि अफगानिस्तान से सेना बुलाने, रूस-यूक्रेन युद्ध और पाकिस्तान से रक्षा समझौते जैसे मुद्दों पर भारत-अमेरिका के बीच टकराव दिखा है। स्थायी राजदूत होने से ऐसी स्थितियों को संभालने में मदद मिलती।
अमेरिकी राष्ट्रपति कार्यालय के सूत्रों का कहना है कि सीनेट की विदेशी संबंध कमेटी ने एकमत होकर गार्सेटी को चुन लिया है। जल्द ही नियुक्ति को मंजूरी मिलने के आसार हैं। कई विशेषज्ञों ने राष्ट्रपति द्वारा नामित राजदूतों को सीनेट में मंजूरी न मिलने के लिए राजनीतिक सुस्ती को जिम्मेदार ठहराया है। सऊदी अरब, कुवैत, कतर और यूएई समेत 50 देशों में अमेरिका के स्थायी राजदूत नहीं हैं।
[आईएएनएस इनपुट के साथ]
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