दूरसंचार विभाग ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि भारती एयरटेल, वोडाफोन, और सरकार के स्वामित्व वाली एमटीएनएल और बीएसएनएल जैसी प्रमुख निजी दूरसंचार कंपनियों के पास अब तक 92,000 करोड़ रुपये से अधिक की लाइसेंस फीस बकाया है। दूरसंचार कंपनियों और टेलीकॉम ट्रिब्यूनल से जुड़े एक मामले में दूरसंचार विभाग ने शीर्ष अदालत को भारी बकाया का हलफनामा दायर किया।
ये घटनाएं स्पष्ट रूप से दिखाती हैं कि जनता से पैसा इकट्ठा करने के बाद भी, जब इन प्राइवेट फर्मों द्वारा सरकार को कर देने की बात आती है तो वे कंजूस और लोभी साबित होती हैं।
एयरटेल पर दूरसंचार विभाग के लाइसेंस फीस के रूप में 21,682.13 करोड़ रुपये बकाया हैं। दूरसंचार विभाग ने कहा कि वोडाफोन पर बकाया कुल 19,823.71 करोड़ रुपये है, जबकि अनिल अंबानी के रिलायंस कम्युनिकेशंस पर कुल 16,456.47 करोड़ रुपये बकाया है। राज्य के स्वामित्व वाले बीएसएनएल पर 2,098.72 करोड़ रुपये जबकि एमटीएनएल पर सरकारी खजाने का 2,537.48 करोड़ रुपये बकाया है। सभी दूरसंचार कंपनियों से वसूल की जाने वाली कुल राशि 92,641.61 करोड़ रुपये है।
नई दूरसंचार नीति के अनुसार, दूरसंचार ऑपरेटरों को अपने समायोजित सकल राजस्व का एक निश्चित प्रतिशत वार्षिक लाइसेंस शुल्क के रूप में सरकार के साथ साझा करना आवश्यक है। इसके अलावा, मोबाइल टेलीफोन ऑपरेटरों को उन्हें आवंटित किए गए रेडियोफ्रीक्वेंसी स्पेक्ट्रम के उपयोग के लिए स्पेक्ट्रम उपयोग शुल्क (एसयूसी) का भुगतान करने की भी आवश्यकता थी।
2016 में, नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग / सीएजी) ने छह टेलीकॉम कंपनियों को सरकारी खजाने के 45000 करोड़ रुपये से अधिक का भुगतान न करने और उसे छुपाने के लिए पकड़ा था। दूरसंचार कंपनियों की धोखाधड़ी को लेखापरीक्षण एजेंसी ने 2006 से 2010 की अवधि के दौरान उनके राजस्व का निरीक्षण करने के बाद पकड़ा था। 2 जी घोटाले के बाद, कैग ने सभी दूरसंचार कंपनियों के राजस्व का लेखापरीक्षण करने का फैसला किया क्योंकि लाइसेंस समझौते के अनुसार उन्हें राजस्व का एक हिस्सा सरकार को देना अनिवार्य है। सभी टेलीकॉम कंपनियों ने कैग को ऑडिट करने से रोकने के लिए दिल्ली हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और केस हार गयीं।
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सीएजी रिपोर्ट 11 मार्च 2016 को संसद में पेश की गई थी। सरकार ने 1999 से दूरसंचार कंपनियों के राजस्व की जांच करने की सिफारिश की, सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में खुलासा किया कि 2006 से 2010 तक, छह प्रमुख ऑपरेटरों ने 46045.75 करोड़ रुपये के कम-चालान (under-invoice) किए थे जिससे सरकारी खजाने को 12488.93 करोड़ रुपये का कर नुकसान हुआ। शीर्ष लेखा परीक्षक ने एयरटेल, टाटा, रिलायंस कम्युनिकेशंस, आइडिया, वोडाफोन और एयरसेल को अपनी आमदनी छुपाते हुए पकड़ा, ताकि उन्हें सरकार को आमदनी का अनिवार्य हिस्सा ना देना पड़े, जो जनता से कमाया गया था।
विस्तृत लेखापरीक्षण रिपोर्ट में चार साल के दौरान प्रत्येक दूरसंचार कंपनी के राजस्व के लिए एक अध्याय और कर चोरी के लिए समर्पित किया गया है। 12488 करोड़ रुपये से अधिक की कुल कर चोरी के बीच, रिलायंस कम्युनिकेशंस ने 3728.54 करोड़ रुपये और टाटा ने 3215.39 करोड़ रुपये की चोरी की। कैग ने पाया कि एयरटेल ने 2651.89 करोड़ रुपये की चोरी की, इसके बाद वोडाफोन (1665.39 करोड़ रुपये), आइडिया (964.89 करोड़ रुपये) और एयरसेल (262.83 करोड़ रुपये) की चोरी की।
ये घटनाएं स्पष्ट रूप से दिखाती हैं कि जनता से पैसा इकट्ठा करने के बाद भी, जब इन प्राइवेट फर्मों द्वारा सरकार को कर देने की बात आती है तो वे कंजूस और लोभी साबित होती हैं।
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