देश में वेस्ट वॉटर ट्रीटमेंट का हो रहा उल्टा असर; एंटीबायोटिक पानी से शरीर पर दवाएं कम असरदार हुईं!

    जांच में कई जगहों के पानी में एंटीबायोटिक की मौजूदगी अधिकतम सीमा से ज्यादा मिली।

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    देश में वेस्ट वॉटर ट्रीटमेंट का हो रहा उल्टा असर
    देश में वेस्ट वॉटर ट्रीटमेंट का हो रहा उल्टा असर

    वेस्ट वॉटर ट्रीटमेंट के कारण खड़ी हो रही समस्या

    भारत, चीन में कई सोर्स से आने वाले पानी के वेस्ट ट्रीटमेंट प्लांट एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस (एएमआर) पैदा करने का बड़ा ठिकाना बन रहे हैं। ये खुलासा ‘दि लैंसेट प्लानेट्री’ की रिपोर्ट से हुआ है। स्टडी में चीन और भारत में वेस्टवॉटर और ट्रीटमेंट प्लांट्स से पानी के नमूने लिए गए।

    जांच में कई जगहों के पानी में एंटीबायोटिक की मौजूदगी अधिकतम सीमा से ज्यादा मिली। चीन में एएमआर का सबसे ज्यादा जोखिम नल के पानी में पाया गया। इसमें सिप्रोफ्लोएक्सिन की मात्रा बेहद ज्यादा मिली।

    भारत में शहरी इलाकों में नगर निकाय लोगों को नल से पानी की सप्लाई करती हैं। वहां ट्रीटमेंट प्लांट में पानी अस्पताल, पोल्ट्री फार्म, डेयरी और दवा फैक्ट्रियों जैसे स्रोतों से पहुंचता है। इस पानी में मौजूद एंटीबायोटिक अगर ट्रीटमेंट के बाद भी मौजूद रहा, तो सप्लाई होने वाले पानी में भी एंटीबायोटिक होगा।

    इसके इस्तेमाल से एएमआर का जोखिम बढ़ेगा। ट्रीटमेंट प्लांट की मौजूदा व्यवस्थाएं ऐसे तत्वों को हटाने में गैर असरदार हैं। एंटीमाइक्रोबियल जीवाणु या फंगी जैसे सूक्ष्मजीवों को खत्म करता है। उन्हें बढ़ने और बीमारी फैलाने से रोकता है। इसी से जुड़ी स्थिति है एएमआर, जिसमें बैक्टीरिया एंटीबायोटिक्स से लड़ने की क्षमता विकसित कर लेते हैं। इसके चलते दवाएं बेअसर हो जाती हैं।

    पेयजल सुरक्षा के पूर्व राष्ट्रीय नोडल अधिकारी सुधींद्र मोहन शर्मा ने मीडिया से बातचीत में बताया कि देश के जल स्रोतों में एएमआर तेजी से बढ़ रहा है। ये स्थिति चिंताजनक है। इसके बढ़ने की वजह पोल्ट्री फार्म और डेयरी हैं। वहां जीवों को संक्रमण से बचाने के लिए बड़े पैमानें पर एंटीबायोटिक का इस्तेमाल होता है।

    इसके इस्तेमाल के बाद मेडिकल वेस्ट का सही निस्तारण नहीं किया जाता है, जो उस क्षेत्र के अंडरग्राउंड पानी में मिलते रहते हैं। दूसरी वजह जागरुकता में कमी है। लोग बेकार या इलाज के बाद बची हुई दवाओं को यूं ही नालियां और सड़क किनारे फेंक देते हैं। इससे भी जल प्रदूषित होता है। यही जल अंडरग्राउंड वॉटर में मिलता है।

    इसी कारण जलाशयों, नदियों के पानी में एएमआर बढ़ा है। खतरा इसलिए है, क्योंकि हमारी 85% आबादी भू-जल इस्तेमाल करती है। चौंकाने वाली बात यह है कि कोरोना मरीजों के इलाज में दवाएं असरदार नहीं पाई गईं, क्योंकि मरीजों में एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस था।

    जिन इलाकों में आर्सेनिक और फ्लोराइड जैसे खतरनाक तत्व मिले हैं, वहां सरकार ने बड़े पैमाने पर अभियान चलाया है। फिर भी तेजी से एंटीबायोटिक से प्रदूषित हो रहे पानी की तरफ ध्यान नहीं दिया जा रहा है। इसके लिए जरूरी है कि जिला स्तर पर इस तरह की लैब बनाएं, जो एएमआर की जांच करें।

    इसके साथ ही तमाम संस्थानों डेयरी, पोल्ट्री फार्म के साथ आम नागरिकों के लिए मेडिकल वेस्ट निस्तारण की गाइडलाइन जारी की जाए। लोग मेडिकल वेस्ट नालियों में न फेंकें, इसकी निगरानी की जाए। मध्य प्रदेश, हरियाणा, पंजाब आदि राज्यों के डेयरी बहुल इलाकों में एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस के हॉटस्पॉट पहचाने जाएं। एक और खास बात ये है कि घरों में इस्तेमाल होने वाले आरओ सिस्टम भी एएमआर को रोक नहीं सकते।

    [आईएएनएस इनपुट के साथ]

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