गृह मंत्रालय की रिपोर्ट- पीएफआई के निशाने पर आर्थिक रूप से कमजोर मुस्लिम और सामाजिक तौर पर पिछड़े हिंदू

पीएफआई का 2047 तक भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने का प्लान

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गृह मंत्रालय की रिपोर्ट
गृह मंत्रालय की रिपोर्ट

गृह मंत्रालय की खुफिया रिपोर्ट में दावा; सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गो को अपने पाले में करने की पीएफआई की साजिश

पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया यानी पीएफआई ने 2047 तक भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने का प्लान तैयार किया है। पीएफआई का मानना है कि पढ़े-लिखे और संपन्न मुसलमान कभी साथ खड़े नहीं होंगे, इसलिए उसके टारगेट पर पसमांदा या आर्थिक रूप से कमजोर मुस्लिम और सामाजिक तौर पर पिछड़े हिंदू हैं। ये दावा गृह मंत्रालय की खुफिया रिपोर्ट में किया गया है।

ये रिपोर्ट सभी सेंट्रल एजेंसियों से शेयर की गई है। इसी के बाद पीएफआई पर शिकंजा कसने के लिए सरकार ने एजेंसियों के साथ मिलकर ऑपरेशन ऑक्टोपस शुरू किया। ऑपरेशन में एनआईए, ईडी, 11 राज्यों की पुलिस, सीआरपीएफ और एटीएस को शामिल किया गया।

पहली कड़ी में 22 सितंबर को 11 राज्यों में 96 जगहों पर रेड हुई और 106 से ज्यादा पीएफआई कार्यकर्ताओं को अरेस्ट किया गया। यह पहली बार है जब सभी एजेंसियों ने मिलकर पीएफआई पर इतनी बड़ी कार्रवाई की है। दूसरी कड़ी की शुरुआत जल्द ही दक्षिण और पश्चिमी राज्यों में हो सकती है।

मीडिया को यह रिपोर्ट गृह मंत्रालय के हवाले से मिली है। इसमें मिशन-2047 का डिटेल प्लान और इसे कैसे पूरा किया जाना है, इसकी जानकारी है। रिपोर्ट के मुताबिक,पीएफआई का प्लान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की छवि खराब कर देश की 60% आबादी को उसके खिलाफ करना है। इस 60% में से 50% एससी/एसटी और ओबीसी समुदाय के लोग और 10% मुस्लिम हैं।

ऑपरेशन ऑक्टोपस की पहली रेड में खुलासा हुआ है कि पीएफआई के पास बड़े पैमाने पर विदेशों से पैसा आ रहा है। ईडी ने भी कोर्ट में कहा है कि भारत से बाहर रह रहे पीएफआई के सदस्य भारत में अपने एनआरआई अकाउंट्स में पैसे भेज रहे थे। फॉरेन फंडिंग रेगुलेशन लॉ से बचने के लिए उन्हें संगठन के नेताओं को ट्रांसफर किया गया।

एनआईए ने कोर्ट में दी रिमांड एप्लिकेशन में बताया है कि केरल के जमात-ए-इस्लामी, पीएफई, उसके सहयोगी सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) और नेशनल डेवलपमेंट फ्रंट (एनडीएफ़) के नेता अक्सर संयुक्त अरब अमीरात जाते हैं। वे ज्यादातर अबू धाबी और दुबई का टूर करते हैं। अमीरात इंडिया फ्रेटरनिटी फोरम (ईआईएफएफ) और इंडियन कल्चरल सोसाइटी (आईसीएस) के कर्नाटक चैप्टर दुबई में पीएफआई के फ्रंट के तौर पर काम कर रहे हैं।

गृह मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार पीएफआई कथित तौर पर हवाला के जरिए भारत में पैसे मंगवा रहा है। संगठन के लोग रियल एस्टेट में भी बड़ी मात्रा में इन्वेस्टमेंट कर रहे हैं। सूत्रों के अनुसार, केरल के चावाकाडु जिले में पीएफआई से जुड़ा एक बिल्डर अबु धाबी में रियल एस्टेट में इन्वेस्ट कर रहा है। इसके अलावा पीएफआई से जुड़े लोग ‘कार रेंट’ के बिजनेस में भी हैं। केरल में इनका बड़ा नेटवर्क काम कर रहा है।

सऊदी अरब में पीएफआई, आईएसएफ और आईएफएफ के नाम से एक्टिव है। हज के वक्त भारतीयों की मदद के नाम पर संगठन बड़ी रकम जुटाता है। यही पैसा हवाला और गोल्ड स्मगलिंग के जरिए भारत लाया जाता है। पीएफआई यहां कानूनी मदद और कम्युनिटी सर्विस के नाम पर ई-वॉलेट के जरिए भी फंड भेजता है।

पीएफआई, आईएसएफ और आईएफएफ के साथ मिलकर ओमान में सोशल फोरम नाम से काम करता है। पीएफआई की केरल शाखा, नेशनल डेवलपमेंट फ्रंट (एनडीएफ) भी ओमान में एक्टिव है। जांच एजेंसियों को पता चला है कि इसने हवाला के जरिए पीएफआई को 44 लाख रुपए भेजे हैं। ओमान में एनडीएफ और पीएफआई के लीडर अशफाख चैकीनाकथ पुयिल को फंड जमा करने का जिम्मा सौंपा गया है। ये पैसे ‘रिहैब इंडिया फाउंडेशन’ नाम की संस्था के जरिए पीएफआई तक पहुंचाए जाते है।

गृह मंत्रालय की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारतीय छात्रों की मदद से पीएफआई ने तुर्की में जड़ें जमा ली हैं। उसने नौशाद नाम के एक स्टूडेंट को सबाहैतिन जैम यूनिवर्सिटी में पीएचडी करने के लिए तुर्की भेजा। वह वहां पीएफआई के लिए फंडिंग जुटा रहा था।

कुवैत इंडियन सोशल फोरम (केआईएसएफ), पीएफआई का शेल ऑर्गेनाइजेशन है। यह सालाना सदस्यता के नाम पर लोगों से पैसे लेता है। उसका दावा है कि पैसे जुटाने का मकसद मुस्लिम हितों की मदद करना है। यह ग्रुप कुवैत के अमीर कर्मचारियों और कारोबारियों को टारगेट करता है। उन्हें बाद में हिंसा और बाबरी मस्जिद तोड़ने के वीडियो दिखाकर कट्टरपंथी बना दिया जाता है।

ओमान में पीएफआई, कल्चरल फोरम नाम से चलता है। इससे मलयाली समुदाय के लोग जुड़े हैं। ये संगठन सीरिया में इस्लामिक स्टेट के समर्थक थे। इनमें से एक मुहम्मद फहीमी, सीरिया में आईएसआईएस नेटवर्क को गाड़ियां बेचता था। आईएसएफ, आईएफएफ और सीएफ कतर में बसे भारतीयों से पीएफआई और एसडीपीआई के नाम पर पैसे जुटाता है।

पीएफआई अपने सदस्यों का रिकॉर्ड नहीं रखता। इसलिए एजेंसियों को कार्रवाई करने में दिक्कत आती है। हाल में हुई कार्रवाई के बाद पीएफआई के कई पदाधिकारियों से संपर्क किया गया, लेकिन ज्यादातर के नंबर बंद आए। संगठन की आधिकारिक वेबसाइट http://www.popularfrontindia.org/ भी ओपन नहीं हो रही है। इनके सभी सोशल मीडिया अकाउंट 23 सितंबर के बाद से इनएक्टिव हैं।

देश भर में पीएफआई पर रेड और केरल में हिंसक प्रदर्शन के बाद संगठन फिर चर्चा में हैं। देश के कई शहरों में सांप्रदायिक हिंसा और हत्याओं में पीएफआई का नाम आया था। केरल हाईकोर्ट ने अपनी टिप्पणी में पीएफआई को ‘चरमपंथी संगठन’ बताया था। हिंदूवादी संगठन पहले से पीएफआई पर बैन लगाने की मांग करते रहे हैं। जांच एजेंसियों की रडार पर होने के बावजूद अब तक झारखंड के अलावा कहीं भी पीएफआई पर बैन नहीं लगा है।

[आईएएनएस इनपुट के साथ]

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