एलजीबीटी जज के नाम पर केंद्र को आपत्ति; शीर्ष न्यायालय कॉलेजियम द्वारा की गई थी सिफारिश!

    सौरभ समलैंगिक हैं और एलजीबीटी+क्यू के अधिकारों के लिए मुखर रहे हैं। उन्होंने 'सेक्स एंड द सुप्रीम कोर्ट' किताब को एडिट भी किया है।

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    एलजीबीटी जज के नाम पर केंद्र को आपत्ति
    एलजीबीटी जज के नाम पर केंद्र को आपत्ति

    समलैंगिक और एलजीबीटी अधिकारों के मुखर समर्थक सीनियर वकील सौरभ कृपाल के नाम पर केंद्र और शीर्ष न्यायालय आमने सामने

    केंद्र ने सीनियर एडवोकेट सौरभ कृपाल (एलजीबीटी) को दिल्ली हाईकोर्ट के जज के रूप में पदोन्नत करने की सिफारिश पर आपत्ति जताई है। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम से उनके नाम पर फिर विचार करने के लिए कहा है। इसके अलावा, केंद्र ने शीर्ष न्यायालय के जजों के रूप में नियुक्ति के लिए भेजे गए कई नाम भी शीर्ष न्यायालय कॉलेजियम को वापस भेज दिए हैं।

    सौरभ समलैंगिक हैं और एलजीबीटी+क्यू के अधिकारों के लिए मुखर रहे हैं। उन्होंने ‘सेक्स एंड द सुप्रीम कोर्ट‘ किताब को एडिट भी किया है। वह भारत के पूर्व सीजेआई बी एन कृपाल के बेटे हैं। पिछले साल, भारत के तत्कालीन सीजेआई एनवी रमना की अध्यक्षता वाले कॉलेजियम ने सौरभ की पदोन्नति की सिफारिश की थी। कॉलेजियम के एक बयान में कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने 11 नवंबर, 2021 को हुई बैठक में दिल्ली हाईकोर्ट में जज के रूप में सौरभ की पदोन्नति के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है।

    कृपाल का नाम बार-बार सरकार को भेजा गया है। 2017 में, दिल्ली हाईकोर्ट कॉलेजियम ने सर्वसम्मति से सौरभ कृपाल को दिल्ली हाईकोर्ट के स्थायी जज के रूप में नियुक्ति की सिफारिश की थी। तब मेरिट का हवाला देते हुए सौरभ का नाम आगे नहीं बढ़ पाया था। इसके बाद सितंबर 2018, जनवरी और अप्रैल 2019 में भी सौरभ के नाम पर सहमति नहीं बन पाई।

    कहा जाता है कि इंटेलीजेंस ब्यूरो की एक रिपोर्ट सौरभ के पक्ष में नहीं थी। दरअसल, सौरभ के पार्टनर यूरोप से हैं और स्विस दूतावास के साथ काम करते हैं। उनके विदेशी पार्टनर की वजह से सुरक्षा के लिहाज से उनका नाम रिजेक्ट कर दिया गया था। हालांकि, टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए एक इंटरव्यू में सौरभ ने कहा है कि अभी तक जज नहीं बनने की वजह कहीं न कहीं मेरा सैक्सुअल ओरिएंटेशन भी है, क्योंकि अगर मंजूरी मिल जाती है तो कृपाल भारत के पहले गे (समलैंगिक) जज बन जाएंगे।

    सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर 2018 में समलैंगिकता को अवैध बताने वाली आईपीसी की धारा 377 पर अहम फैसला दिया था। कोर्ट ने कहा था कि समलैंगिक संबंध अपराध नहीं हैं। इसके साथ ही अदालत ने सहमति से समलैंगिक यौन संबंध बनाने को अपराध के दायरे से बाहर कर धारा 377 को रद्द कर दिया था। इस मामले में सौरभ कृपाल ने पिटिशनर की तरफ से पैरवी की थी।

    सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र सरकार के प्रति नाराजगी जाहिर की। कोर्ट ने कहा कि कॉलेजियम के सुझाए हुए जजों के नामों को क्लियर करने में सरकार जितनी देर लगा रही है उससे जजों के अपॉइंटमेंट के तरीके में खलल पड़ रहा है। पूरी प्रक्रिया फ्रस्ट्रेट हो रही है। जस्टिस एसके कॉल और एएस ओका की बेंच ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने अपॉइंटमेंट प्रोसेस के पूरे होने की टाइमलाइन तय की थी। ये डेडलाइन इसलिए दी जाती है, ताकि इनका पालन हो सके।

    कोर्ट ने पहले भी हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम की ओर से अनुशंसित नामों को लंबित रखने के लिए केंद्र से निराशा व्यक्त की है। कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि नामों को होल्ड पर रखना स्वीकार्य नहीं है, क्योंकि यह इन व्यक्तियों को अपना नाम वापस लेने के लिए मजबूर करने का एक तरीका बनता जा रहा है, जैसा कि हुआ है।

    [आईएएनएस इनपुट के साथ]

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