अरुण जेटली: मोदी का यार या गद्दार

विपक्षी पार्टियां जहां खुलकर वित्तमंत्री के इस्तीफे की मांग कर रही हैं वहीं देश की आम जनता में जेटली के खिलाफ रोष फैलता जा रहा है।

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अरुण जेटली - मोदी का यार या गद्दार
अरुण जेटली - मोदी का यार या गद्दार

विजय माल्या का कहना है कि देश छोड़ने से पहले उसने वित्त मंत्री अरुण जेटली से मिलकर बैंको का पैसा चुकाने की पेशकश दोहराई थी।

विजय माल्या द्वारा किए गए ताजा खुलासे ने देश की राजनीति में भूचाल ला दिया है। माल्या को देश की जनता एक ऐसे उद्योगपति के रूप में देखती है जो देश के बैंकों के करोड़ों रुपए चुकाने की बजाय विदेश में जाकर छुप गया है। ऐसे में देश की जनता का उस सख्श को गद्दार के रूप में देखना भी जायज प्रतीत होता है जिसने माल्या को देश छोड़कर भागने में मदद की हो। और अगर वो शख्स देश के लोकप्रिय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का वो वरिष्ठ सहयोगी हो जिस पर मोदी ने हमेशा जरूरत से ज्यादा विश्वास जताया हो तो स्थिति ज्यादा पेचीदा हो जाती है। मोदी ऐसे संदेहास्पद आचरण वाले शख्स को अपनी कैबिनेट में क्यूं बनाए रखना चाहते हैं, यह समझ से परे हैं क्यूंकि दांव पर मोदी की अपनी छवि है ना कि उस शख्स की जो ना तो किसी लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनधित्व करता है और ना खुद को देश की आम जनता के प्रति जवाबदेह समझता है।

स्वामी के खुलासे के बाद लोकसभा के सीसीटीवी रिकॉर्ड्स में भी माल्या और जेटली की बातचीत पाए जाने की बात सामने आ रही है।

विजय माल्या का कहना है कि देश छोड़ने से पहले उसने वित्त मंत्री अरुण जेटली से मिलकर बैंको का पैसा चुकाने की पेशकश दोहराई थी। विजय माल्या के इस कथन के बाद राजनीतिक उठापटक शुरू हो गई है। राजनीतिक पार्टियां अपने अपने हिसाब से माल्या के कथन को तोड मरोड़ के पेश करने में लगी हुई हैं। अरुण जेटली ने जवाब में कहा कि उनके कार्यालय की तरफ से माल्या को कोई अपॉइंटमेंट नहीं दी गई लेकिन संसद के गलियारे में माल्या से कुछ चर्चा जरूर हुई थी।

इस सारे मामले में तब नया पेंच फंस गया जब जेटली की ही पार्टी के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने खुलासा किया कि जेटली अधीनस्थ वित्त मंत्रालय के आदेश पर ही सीबीआई द्वारा माल्या के खिलाफ जारी किया गया लुकआउट नोटिस रद्द किया गया था। इसके साथ ही स्वामी इस तथ्य पर भी जोर देते हैं कि माल्या ने संसद में मुलाक़ात के दौरान अपने लंदन प्रस्थान के बारे में वित्त मंत्री को अवगत करा दिया था। स्वामी के खुलासे के बाद लोकसभा के सीसीटीवी रिकॉर्ड्स में भी माल्या और जेटली की बातचीत पाए जाने की बात सामने आ रही है। इस बात की पुष्टि कई सांसद भी कर चुके हैं।

माल्या के खिलाफ जारी लुकआउट नोटिस को रद्द करने के मामले में जांच की मांग करने वाले स्वामी सीधे तौर पर जेटली का नाम लेने से चाहे कितना भी बचे लेकिन शक की सुई जेटली पर ही आकर ठहरती प्रतीत होती है। क्यूंकि जेटली खुद इस बात को स्वीकार कर चुके हैं कि संसद के गलियारे में ही सही लेकिन माल्या से उनकी मुलाकात और बातचीत हुई थी। विपक्षी पार्टियां जहां खुलकर वित्तमंत्री के इस्तीफे की मांग कर रही हैं वहीं देश की
आम जनता में जेटली के खिलाफ रोष फैलता जा रहा है। देश की जनता के बीच जेटली की छवि एक ऐसे नेता की बनकर उभरी है कभी लोकसभा तो दूर नगरपालिका का चुनाव जीते बिना मोदी का करीबी विश्वाश-पात्र और देश का वित्तमंत्री है लेकिन देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की कोशिश करने की बजाय देश का अरबों रूपए निगल गए वांछित अपराधियों को देश से भागने में मदद करता है।

अब देखना रोचक होगा कि मोदी अपने कंधो पर किसी और के तथाकथित कुकर्मों और संगीन आरोपों का भोझा ढोने का जोखिम उठाएंगे?

2014 के आम चुनाव में भ्रष्टाचार विरोधी एजेंडे को ढाल बनाकर सत्ता में आई भाजपा के लिए यह मुद्दा गले की फांस बन गया है। जहां एक तरफ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनके ज्यादातर कैबिनेट मंत्रियों की छवि अब तक साफ सुथरी रही है वहीं दूसरी तरफ जेटली अधीनस्थ वित्त मंत्रालय और उद्योगपतियों के बीच सांठ गांठ के आरोपों का चोली दामन का साथ रहा है। चाहे वित्त मंत्रालय अधीनस्थ सेबी द्वारा प्रसिद्ध उद्योगपति रतन टाटा पर अत्यंत संगीन आरोपों के बावजूद कार्रवाई का मामला हो या नोटबन्दी के दौरान व्यापक स्तर पर हुई गड़बड़ियों का मामला हो ; चाहे वित्त सचिव हसमुख अधिया द्वारा माल्या जैसे एक और भगोड़े उद्योगपति नीरव मोदी से लिए गए सोने के बिस्किट्स का मामला हो या जीएसटीएन पर लुटाए गए अरबों रुपए की कैग द्वारा जांच ना करवाए जाने का मामला हो; जेटली अधीनस्थ वित्त मंत्रालय पर संगीन आरोपों की फेहरिस्त बहुत लंबी है। अब देखना रोचक होगा कि मोदी अपने कंधो पर किसी और के तथाकथित कुकर्मों और संगीन आरोपों का भोझा ढोने का जोखिम उठाएंगे या फिर देश की जनता को किए गए अपने भ्रष्टाचार खत्म करने के वादे अनुसार वित्त मंत्रालय पर शिकंजा कसेंगे।

ध्यान दें:

1. यहां व्यक्त विचार लेखक के हैं और पी गुरुस के विचारों का जरूरी प्रतिनिधित्व या प्रतिबिंबित नहीं करते हैं।

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