न्यायपालिका पर उपराष्ट्रपति की टिप्पणी को गहलोत ने बताया गलत, कहा न्यायपालिका-विधायिका लोकतंत्र के मजबूत स्तंभ!

    मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी पार्टी लाइन पर चलते हुए उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की टिप्पणी को अनुचित बताया है।

    0
    296
    न्यायपालिका पर उपराष्ट्रपति की टिप्पणी को गहलोत ने बताया गलत
    न्यायपालिका पर उपराष्ट्रपति की टिप्पणी को गहलोत ने बताया गलत

    जगदीप धनखड़ की ओर से विधायिका में न्यायपालिका के हस्तक्षेप को लेकर की गई थी टिप्पणी

    राजस्थान विधानसभा में पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की ओर से विधायिका में न्यायपालिका के हस्तक्षेप को लेकर की गई टिप्पणी को लेकर जहां कांग्रेस के कई नेताओं ने इसे न्यायपालिका पर हमला बताया था तो वहीं अब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी पार्टी लाइन पर चलते हुए उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की टिप्पणी को अनुचित बताया है। हालांकि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने करीब 2 दिन के बाद उपराष्ट्रपति टिप्पणी पर अपना बयान दिया है।

    सीएम गहलोत ने शुक्रवार देर रात ट्वीट करते हुए कहा कि जयपुर में आयोजित अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की ओर से न्यायपालिका को लेकर की गई टिप्पणी से देश में अनावश्यक बहस छिड़ गई है, आज के इस दौर में ऐसी टिप्पणियां करना उचित प्रतीत नहीं होता है। न्यायपालिका और विधायिका दोनों लोकतंत्र के मजबूत स्तंभ हैं और दोनों ही अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।

    इससे पहले कांग्रेस के मीडिया विभाग के प्रमुख और पार्टी महासचिव जयराम रमेश और पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम ने भी न्यायपालिका को लेकर उपराष्ट्रपति की ओर से की गई टिप्पणी की आलोचना की थी। जयराम रमेश ने कहा था कि एक के बाद एक संवैधानिक संस्थाओं पर हमला किया जाना अप्रत्याशित है। मतों की भिन्नता अलग बात है लेकिन उपराष्ट्रपति सुप्रीम कोर्ट के साथ टकराव को एक अलग ही स्तर पर ले गए हैं, इससे पहले पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम ने भी कहा था कि राज्यसभा के सभापति के विचार सुनने के बाद आज संविधान प्रेमी नागरिकों को खतरों को लेकर सावधान होने की जरूरत है।

    पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन में उपराष्ट्रपति ने कहा था कि संविधान में संशोधन का संसद का अधिकार क्या किसी और संस्था पर निर्भर कर सकता है, क्या भारत के संविधान में कोई नई संस्था है जो कहेगी कि संसद में जो कानून बनाया है उस पर हमारी मुहर लगेगी तभी कानून बनेगा। उपराष्ट्रपति ने कहा था कि 1973 में बहुत बड़ी गलत परंपरा पड़ी। 1973 में शिवानंद भारती के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मूलभूत ढांचे का विचार रखा कि संसद संविधान में संशोधन कर सकती है लेकिन मूलभूत ढांचे में नहीं, उनका था कि यदि संसद के बनाए कानून को किसी भी आधार पर कोई भी संस्था अमान्य करती है तो यह प्रजातंत्र के लिए ठीक नहीं रहेगा, बल्कि यह कहना मुश्किल होगा कि क्या हम लोकतांत्रिक देश है।

    [आईएएनएस इनपुट के साथ]

    LEAVE A REPLY

    Please enter your comment!
    Please enter your name here

    This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.