जम्मू के सनज्वन में स्थित आर्मी कॅम्प पर हुआ हमला, खतरे की गहराई को दर्शाता है।
जम्मू एवँ कश्मीर उच्च न्यायालय बार असोसिएशन, जम्मू (जम्मू बार असोसिएशन) ने बार कौंसिल ऑफ इंडिया द्वारा गठित समिति को बताया कि उनके द्वारा की गई हड़ताल जम्मू में जनसांख्यिकीय बदलाव लाने की साज़िश और राज्य के अल्पसंख्यक हिंदुओं की भावनाओं को ठेस पहुंचाने के प्रयास की वजह से की गई।
जम्मू बार असोसिएशन ने बताया कि अवैध रोहिंग्या और बांग्लादेशियों को जम्मू के महत्वपूर्ण जगह जैसे सेना कॅम्प, रेलवे स्टेशन, एयरपोर्ट, ब्रिज और जम्मू के नेशनल हाइवे के किनारे पर स्थित ऊंची पहाड़ियों पर बसाया जा रहा है।
उन्होंने तालिब हुसैन जैसे व्यक्ति, तथाकथित समाज सेवक, की जांच की मांग की। हुसैन कठुआ के रसाना गाँव के लड़की की हत्याकांड में सीबीआई जांच कराने के खिलाफ मुहिम चला रहे हैं और बार असोसिएशन का यह भी कथन है कि वह राज्य में धार्मिक तनाव पैदा करने की कोशिश कर रहा है।
बार कौंसिल ऑफ इंडिया के प्रतिनिधि 19 अप्रैल 2018 को रसाना गाँव गए और 20 अप्रैल को जम्मू शहर पहुंचे। जम्मू बार असोसिएशन ने बार कौंसिल ऑफ इंडिया को बताया कि राज्य सरकार ने 14 फरवरी 2018 में वन अधिकारियों को आदेश दिया कि वह राज्य के वनों में आदिवासियों द्वारा किए गए अतिक्रमण को नज़रअंदाज़ करे और जम्मू के इंस्पेक्टर जनरल को अतिक्रमण के खिलाफ चल रही मुहिम में अधिकारियों की सहायता ना करे और आरपीसी के अनुभाग 188 को लागू ना करे। जम्मू बार असोसिएशन ने ये भी बताया कि आदिवासी ज्यादातर जम्मू में बसते हैं और वे राष्ट्रवादी हैं एवँ तिरंगे का सम्मान करते हैं।
जब उन्हें आदेश के बारे में जानकारी मिली तो उन्होंने तुरंत उनके सलाहकार, कार्यकारी अधिकारी और विशेष आमंत्रियों की समितियों की बैठक 16 मार्च 2018 को बुलाई ताकि इस अवैध आदेश पर, अवैध रूप से बसे हुए आप्रवासियों (जो सुरक्षा के लिए खतरा हो सकते हैं) को राज्य से बाहर निकालने, नोशेरा, सुंदरबनी और कालाकोटे के लोगों के समस्याओं को सुलझाना और रसाना घटना में सीबीआई जांच की मांग करना, पर चर्चा करें।
जम्मू बार असोसिएशन ने बताया कि अवैध रोहिंग्या और बांग्लादेशियों को जम्मू के महत्वपूर्ण जगह जैसे सेना कॅम्प, रेलवे स्टेशन, एयरपोर्ट, ब्रिज और जम्मू के नेशनल हाइवे के किनारे पर स्थित ऊंची पहाड़ियों पर बसाया जा रहा है। इसके चलते राज्य सरकार के पुलिस ऑफिसर और आईजी को जारी किए गए आदेश को चुनौती देना ज़रूरी हो गया था। राज्य सरकार के आदेश से जनसांख्यिकीय बदलाव और गौ चोरी को बड़ावा मिलेगा। जम्मू के सनज्वन में स्थित आर्मी कॅम्प पर हुआ हमला, खतरे की गहराई को दर्शाता है।
रसाना हत्याकांड में सीबीआई जांच की मांग पर स्पष्टीकरण देते हुए बार एसोसिएशन ने बताया कि एफआईआर दर्ज होने के तुरंत बाद मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने घटना को बलात्कार और हत्याकांड घोषित कर दिया जब कि चिकित्सकों ने वैद्यक-संबंधी और ऑटोप्सी रिपोर्ट जारी नहीं की थी। ध्यान देनेवाली बात यह है कि मेडिकल बोर्ड को दो बार बदला गया।
विशेष जांच टीम, जिसमें अपराध विभाग के अधिकारी थे, को तीन बार बदला गया और हर बार अध्यक्ष भी बदला गया। पीड़ित के परिवार ने जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय को (ओडब्ल्यूपी 259/2018 शीर्षक मोहम्मद अख्तर बनाम राज्य एवँ अन्य) वकील दीपिका सिंह राजावत द्वारा बताया कि वे अपराध विभाग के कार्य से असंतुष्ट हैं। हीरानगर, कठुआ के लोग अपराध विभाग के कार्य से खुश नहीं थे।
इसलिए बार असोसिएशन का यह मानना है कि पीड़ित को सीबीआई जांच के बिना न्याय नहीं मिलेगा। उच्च न्यायालय केस पर निगरानी रखे हुए है क्योंकि यह केस कभी भी सांप्रदायिक विभाजन का आधार बन सकता है, भले ही ऐसे शर्मनाक घटना के आरोपी या पीड़ित को किसी धर्म से जोड़ना उचित नहीं होगा। सांप्रदायिक विभाजन को रोकने हेतु, क्योंकि जांच एजेंसी ने हिंदू धार्मिक स्थल को घटनास्थल बताया और तीन युवाओं को मैजिस्ट्रेट के समक्ष जुर्म कबूल करने को मजबूर किया (धारा 164-A CrPC के अंतर्गत दर्ज किया गया), जम्मू बार असोसिएशन ने सीबीआई जांच की मांग की।
बार असोसिएशन की सामान्य सभा ने इन मांगों का 3 अप्रैल 2018 को समर्थन किया। उन्होंने जम्मू के जनसमुदाय और अन्य पेशेवर संगठनों से 7 अप्रैल को उच्च न्यायालय बार असोसिएशन के ऑफिस में मुलाकात की ताकि इन विषयों पर जनता की राय सामने ला सके। एसोसिएशन ने 4 से 7 अप्रैल तक कार्य निलंबित कर दिया और इन विषयों के समर्थन में 6 अप्रैल को जम्मू शहर में विरोध रैली की।
अप्रैल 7 को, विविध संस्थाओं और विविध संस्थाओं के नेताओं ने बार एसोसिएशन के सदस्यों से मुलाकात की और 11 अप्रैल को जम्मू बन्द एवँ चक्का जाम करने का निर्णय लिया। जम्मू के लोगों ने बन्द का समर्थन किया और कोई अप्रिय घटना नहीं हुई।
जम्मू कश्मीर के अपराध विभाग ने जम्मू से 100 किलोमीटर दूर कठुआ के मुख्य मैजिस्ट्रेट के न्यायालय में चार्जशीट दर्ज की। जम्मू बार असोसिएशन की पूरी हड़ताल को जिला एवँ मुफस्सिल एसोसिएशन ने सदैव समर्थन दिया है।
जम्मू बार ने आरोप लगाया कि श्रीनगर बार “हुर्रियत का एक घटक है” और कहा कि इसे अदालतों का बहिष्कार करने के लिए मजबूर होना पड़ा – एक दुर्लभ कार्य – क्योंकि जम्मू के लोगों का राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक न्याय खड़ा था।
परंतु नेशनल मीडिया ने जम्मू बार असोसिएशन पर चार्जशीट दर्ज करने की क्रिया में बाधा डालने का झूठा आरोप लगाया। चार्जशीट को तो दूर कठुआ में दर्ज किया जा रहा था तो संघ के सदस्यों पर बाधा डालने के लिए दोष नहीं दिया जा सकता।
कठुआ में चार्जशीट दर्ज होने के बाद, जम्मू बार असोसिएशन ने जम्मू बन्द में दो ही मांगे रखी – रोहिंग्या और बांग्लादेशियों को जम्मू छोड़ भारत के अन्य किसी स्थान में बसाना और 14 फरवरी के आदेश को वापस लेने, जो कि मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के अध्यक्षता में किया गया था। बार ने सीबीआई जांच की मांग को बन्द से नहीं जोड़ा क्योंकि न्यायालय में केस दर्ज हो चुका था।
इतने सोच समझ कर किए गए कार्य के बावजूद, कुछ मीडिया चैनलों ने जम्मू बन्द के खिलाफ दुर्भावनापूर्ण अभियान चलाया। इस अभियान ने सर्वोच्च न्यायालय को रसाना, कठुआ के तथाकथित बलात्कार एवँ हत्याकांड का संज्ञान कराते हुए जिला न्यायालय बार एसोसिएशन कठुआ और जम्मू बार असोसिएशन को नोटिस जारी करने और उन पर चार्जशीट के दाखले में बाधा डालने की क्रिया की सफाई की मांग करने पर मजबूर किया।
बार कौंसिल ऑफ इंडिया, जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय का सम्मान करते हुए जम्मू बार असोसिएशन ने फिर से कार्य पर आने का निर्णय लिया और रोहिंग्या और बांग्लादेशियों को जम्मू छोड़ भारत के अन्य किसी स्थान में बसाने की मांग को शांतिपूर्ण तरीके से पेश करने का फैसला लिया। बार एसोसिएशन ने महबूबा मुफ्ती की अध्यक्षता में किये गए 14 फरवरी 2018 के आदेश को रद्द करने की मांग की है।
बार ने एडवोकेट दीपिका सिंह राजावत, जो पीड़ित के परिवार का प्रतिनिधित्व कर रही थी, के कार्य में बाधा डालने के आरोप को झुठलाया। मोहम्मद अख्तर ने जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय में एडवोकेट दीपिका सिंह राजावत द्वारा रिट याचिका दर्ज की (OWP 259/2018), जिसकी पहली सुनवाई 9 फरवरी 2018 को रखी गयी। अंतरिम आदेश के मुताबिक एडवोकेट दीपिका सिंह राजावत OWP 259/2018 के अंतर्गत न्यायालय में हाज़िर हुई, उच्च न्यायालय ने जांच की निगरानी हर तारीख में की, फरवरी 9, 19, 21, मार्च 9, 14, अप्रैल 9 और 11 जब कठुआ में चार्जशीट दाखिल की गई।
इस घटनाक्रम का वर्णन करते हुए जम्मू बार सदस्यों ने बार कौंसिल ऑफ इंडिया को बताया कि उन्हें अपने सुरक्षा, संपत्ति एवँ जीवन की चिंता हो रही है क्योंकि राज्य सरकार अपने संवैधानिक कर्तव्य का पालन करने में असमर्थ रही है। राज्य सरकार की व्यवस्था में चूक की वजह से कुछ ताकतों द्वारा जम्मू की जनसांख्यिकी बदलने की कोशिश को प्रोत्साहन मिला है। इसके पीछे उनकी मंशा है कि राज्य के अल्पसंख्यक भयभीत होकर देशद्रोहियों के हिसाब से चलें और इसमें विदेशी ताकतों, खासकर पाकिस्तान, का हाथ है।
जम्मू बार का दावा है कि श्रीनगर बार हुर्रियत के अधीन है और उन्हें (जम्मू बार को) न्यायालय का बहिष्कार करना पड़ रहा है क्योंकि जम्मू के लोगों का राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक न्याय खतरे में है।
जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय बार असोसिएशन के सदस्य जिन्होंने बार कौंसिल ऑफ इंडिया से मुलाकात की वह हैं अध्यक्ष बी. एस. सलातीया, उप-अध्यक्ष सचिन गुप्ता, महासचिव प्रेम. एन. सदोतरा और अन्य सदस्य।
- दो बलात्कार: एक के लिए अत्यधिक सम्मान, दूसरे के लिए अपरिहार्य उदासीनता। - April 29, 2018
- हलचल का कारण लोकतांत्रिक डर है : जम्मू बार एसोसिएशन - April 23, 2018
- कठुआ की विकराल समस्या! - April 22, 2018